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प्राकृत नूतनवर्षाभिनंदनं

सादर प्रकाशनार्थ *पागद- णूयणवस्साहिणंदणं* (प्राकृत- नूतनवर्षाभिनंदनम्) प्रो.अनेकान्त जैन, नई दिल्ली पंचत्थिकायलोये ,संदंसणं सिक्खदि समयसारो। णाणं पवयणसारो ,चारित्तं खलु णियमसारो ।।1।। 'पंचास्तिकाय' स्वरूपी इस जगत में 'समयसार' सम्यग्दर्शन सिखाते है,'प्रवचनसार' सम्यग्ज्ञान और 'नियमसार' सम्यग्चारित्र सिखाते हैं ।।1।। सिरिकुण्डकुण्डप्पं य , अट्ठपाहुडो य सिक्खदि तिरयणा। रयणसारो य धम्मं ,भावं बारसाणुवेक्खा।।2।। आचार्य कुन्दकुन्द आत्मा सिखाते हैं,'अष्टपाहुड' रत्नत्रय सिखाते हैं , 'रयणसार' धर्म  और 'बारसाणुवेक्खा' भावना सिखाते हैं ।।2।। सज्झायमवि सुधम्मो, पढउ कुण्डकुण्डमवि णववस्सम्मि। करिदूण दसभत्तिं य,अणुभवदु संसारम्मि सग्गसुहं।।3।। स्वाध्याय भी सम्यक धर्म है ,अतः नव वर्ष में आचार्य कुन्दकुन्द को भी अवश्य पढ़ें और उनके द्वारा रचित 'दशभक्ति' करके संसार में ही स्वर्ग सुख का अनुभव करें । पासामि उसवेलाए , संणाणसुज्जजुत्तो णववस्सं । होहिइ पाइयवस्सं, आगमणवसुज्जं उदिस्सइ ।।4।। मैं उषा बेला में सम्यग्ज्ञान रूपी सूर्य से युक्त नववर्ष को दे

दर्शन एवं जैनागम के गूढवेत्ता थे प्रो सागरमल जैन

दर्शन एवं जैनागम  के गूढवेत्ता थे प्रो सागरमल जी प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली  दिनांक 2 दिसंबर को दर्शन एवं जैनागम के गूढवेत्ता 90 वर्षीय प्रो सागरमल जैन जी ने संथारा पूर्वक लोकोत्तर प्रयाण कर लिया ।  इनके साथ इस लोक से जैन आगमों विशेषकर अर्धमागधी आगमों के एक कर्मठ और गूढ़ दार्शनिक वरिष्ठ मनीषी का एक विशाल युग समाप्त हो गया । मुझे उनका सान्निध्य बाल्यकाल से ही प्राप्त रहा जब वे बनारस में पार्श्वनाथ विद्याश्रम के निदेशक के रूप में थे । मुझे उनकी गोदी में खेलने का सौभाग्य प्राप्त है । 1980 से आज तक जब से मैंने उन्हें देखा जाना उनका एक सा व्यक्तित्त्व मेरे दिलो दिमाग में बसा रहा । आकर्षक व्यक्तित्त्व, मुस्कुराता चेहरा,गौर वर्ण, श्वेत कुर्ता पैजामा और पैरों में हवाई चप्पल । मैंने आज तक इसके अलावा उन्हें किन्हीं अन्य परिधान में देखा ही नहीं । मेरे पिताजी (प्रो डॉ फूलचंद जैन जी ) तथा मां (डॉ मुन्नीपुष्पा जैन ) से अत्यधिक वात्सल्य भाव होने से वे अक्सर अपनी धर्म पत्नी के साथ बनारस में रवींद्रपुरी स्थित हमारे आवास पर आते थे और पिताजी के साथ घंटों दार्शनिक चर्चाएं करते थे । उनके पास एक अलग र

प्रचंड वैराग्य का निमित्त बन रहा है 2020

*प्रचंड वैराग्य का निमित्त बन रहा है 2020* लगभग रोज ही आये दिन हम अपने गुरुओं ,रिश्तेदारोँ, परिजनों,मित्रों तथा अन्यान्य लोगों का वियोग सहन कर रहे हैं । 2020 में कॅरोना ने हमें अनित्य की सिर्फ भावना ही नहीं करवायी है बल्कि प्रयोग भी करवाया है । इसके बाद भी हम आजकल अपने ही साधर्मी,सहकर्मी,सह निवासी,पड़ोसी  जनों से भी कितना द्वेष करने लगे हैं ।  हम अक्सर उन जीवों की रक्षा की चिंता,उनसे क्षमा प्रार्थना तो करते हुए दिखते हैं जो आंखों से दिखाई तक नहीं देते किन्तु जो सामने दिख रहे हैं,जो हमारे साथ रह रहे हैं, जिनसे हमारे साक्षात सरोकार हैं उनकी विराधना ,असातना की चिंता नहीं करते हैं । प्रत्युत अन्य लोगों की अपेक्षा उनसे ही ज्यादा द्वेष कर रहे हैं । जरा जरा सी बात पर उन्हें नीचा दिखाने और उनका अपमान करने से बाज नहीं आते । लोग रोज मर रहे हैं और हम अमरता के भ्रम में जी रहे हैं और जरा से परिग्रह के लिए दूसरों को कष्ट देकर पाप बांधे जा रहे हैं । जीवन में परिवर्तन नहीं कर रहे,कषाय कम नहीं कर रहे और सोच रहे हैं कि 11000/- की बोली लेकर सब पाप धुल जाएंगे । पिछले कई महीनों से शोक संदेश पढ़ रहे हैं ,उस प

न तेरी न मेरी

न तेरी न मेरी ..... 1. वैक्सीन अभी तक इसलिए नहीं आ पाई क्यों कि अनुसंधान से ज्यादा व्यापार की चिंता है कि इसकी कमाई पहले कौन करेगा । 2. लोग वैक्सीन के भरोसे न रहें , आनी होती तो अभी तक आ गयी होती । 3. हमें जगह जगह पोस्टर लगा कर यह उपदेश दिया गया कि कॅरोना के साथ जीना सीखिए , हम सीख रहे हैं लेकिन लगता है वो ही तैयार नहीं है । 4. दिल्ली में मरीज इसलिए ज्यादा आ रहे हैं क्यों कि ज्यादा हैं ,न कि जांच ज्यादा हो रही है इसलिए । 5. दावा किया जा रहा है ये जो वैक्सीन आने वाली है उसका असर 95% होगा । यानि इससे अच्छे तो हमारे साबुन हैं जो 99.9% सुरक्षा देने का दावा कर रहे हैं । 6. जब वायरस का माप हमारी एक कोशिका से 10 लाख गुना छोटा है तो किसी भी किस्म के मास्क के द्वारा  उससे बचाव कैसे हो रहा है ? यह समझ में नहीं आ रहा । 2000₹ जुर्माने से अर्थ व्यवस्था जरूर सुधर जाएगी । 7. संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी का नियम और उपदेश भी ठीक उतना ही प्रभावशाली है जितना कि जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए ब्रह्मचर्य का उपदेश । 8. अब स्कूल तब खुलेंगे जब भावी पीढ़ी ऑनलाइन क्लासों से अंधी और बहरी हो जाएगी और शिक्षक म

अद्वितीय थे आचार्य ज्ञानसागर जी

*अद्वितीय थे आचार्य ज्ञानसागर जी* - प्रो अनेकान्त कुमार जैन  दीपावली की शाम जब हम घरों में ज्ञान के प्रतीक स्वरूप दीप प्रज्वलित कर रहे थे तभी सहसा एक दुखद समाचार मिला कि एक श्रुत ज्ञान दीप अभी अभी बुझ गया है ....।  सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ कि  वर्तमान में जैन धर्म दर्शन संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेकर एक अद्वितीय  जिनधर्म विजय अभियान लेकर चलने वाले ,जन जन की श्रद्धा के आसन पर विराजने वाले दिगम्बर जैन परंपरा के महान साधक आचार्य ज्ञान सागर जी की समाधि अचानक हो गयी है । अपने कुछ हाथ में नहीं था तो एकांत ध्यान में बैठकर महामंत्र का जाप किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की ।  मन में बचपन के वे दिन भी स्मृति पटल पर चलचित्र की भांति चलने लगे जब पिताजी( डॉ फूलचंद जैन प्रेमी जी) के साथ मैंने उनके सर्वप्रथम दर्शन तब किये थे जब वे बनारस पधारे थे । मेरी अभिरुचि को देखकर उन्होंने मुझे शाकाहार आदि पर लेख लिखने को प्रेरित किया था जो तब से आज तक सतत चल ही रहा है । मेरी तरह उन्होंने लाखों बच्चों और युवकों की प्रतिभा को अपनी प्रेरणा से जैन संस्कृति की सेवा करने को प्रेरित किया और लगाया है । 2003 में व

महावीर-णिव्वाण-दीवोसवो

  महावीर-णिव्वाण- दीवोस वो महावीर-णिव्वाण- दीवोस वो   जआ  अवचउ काल स्स   सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा ।   तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।१।। जब  अवसर्पिणी  के  चतुर्थ काल के  तीन वर्ष साढ़े आठ मास  शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी ।   कत्तियकिण्ह तेरसे  जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे ।    वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।२।। योग निरोध करके  कार्तिक  कृष्णा त्रियोदशी को वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।     चउदसरत्तिसादीए पच्चूस काले  पावाणयरीए  ।         ते   गमिय परिणिव्वुओ   देविहिं   अच्चीअ  माव से ।।३ ।। चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में  वे ( भगवान् महावीर )   परिनिर्वाण को प्राप्त हुए  और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई  ।   गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं  ।   णाणलक्खीपूया य   दीवोस वपव्वं  जणवएण   ।।४ ।। इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व  मनाया

शाकाहार हाईकू पंचक

*शाकाहार हाईकू पंचक* कुमार अनेकान्त, नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com  11/11/2020 1. जीवन सार  हमारा शाकाहार न मांसाहार 2. खाकर मांस  पेट को कब्रिस्तान  मत बनाओ 3. रखो करुणा आहार शाकाहार जीवों की दया  4. मानव धर्म जीवन शाकाहार  सात्विक कर्म  5. अपनाएगा  हिन्दु मुसलमान सच्चा ईमान

जैन आगमों में दीपोत्सव

*जैन आगमों में दीपोत्सव* प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन , आचार्य-जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली-१६ drakjain2016@gmail.com दीपावली भारत का एक ऐसा पवित्र पर्व है जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं से है |भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैं |आइये आज हम इस अवसर पर दीपावली के जैन महत्त्व को समझें |ईसा से लगभग ५२७  वर्ष पूर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन होते ही अमावस्या के लगभग प्रारम्भ में स्वाति नक्षत्र में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का वर्तमान में बिहार प्रान्त में स्थित पावापुरी से निर्वाण हुआ था। भारत की जनता  ने  प्रातः काल जिनेन्द्र भगवान की पूजा कर निर्वाण लाडू (नैवेद्य) चढा कर पावन दिवस को उत्साह पूर्वक मनाया । यह उत्सव आज भी अत्यंत आध्यात्मिकता के साथ देश विदेश में मनाया जाता है |इसी दिन रात्रि को शुभ-बेला में भगवान महावीर के प्रमुख प्रथम शिष्य गणधर गौतम स्वामी को केवल ज्ञान रुपी  लक्ष्मी की प्राप्ति हुई थी |  दिगंबर आचार्य जिनसे

सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार

सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार वर्तमान में जितनी तीव्रता से सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है उससे कहीं ज्यादा तीव्रता से उसका दुरुपयोग भी बढ़ा है । इसलिए अब इससे संबंधित अपराधों के लिए  कानून भी निर्मित हो गए हैं तथा सजाएं भी मिल रही हैं जो कि कुछ वर्षों पहले तक संभव नहीं थी । आज यह आवश्यक हो गया है कि सोशल मीडिया पर कानून के साथ साथ सोशल कंट्रोल भी हो । हमें वर्तमान के अनुरूप अपनी प्रासंगिकता स्थापित करनी पड़ती है ।  कॅरोना काल में लॉक डाउन के कारण ज़ूम ,गूगल मीट,जिओ मीट, मीटिंग एप्प आदि का उपयोग उन लोगों ने भी सीखा जिन्हें मोबाइल लैपटॉप छूना भी पसंद न था । यूट्यूब,व्हाट्सएप,फ़ेसबुक,टेलीग्राम,इंस्टाग्राम,ट्विटर आदि जनसंचार के सबसे ज्यादा माध्यम बने हुए हैं । मोबाइल सभी के अधिकार और पहुंच में होने से आज इस पर कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर कैसा भी लिख और लिखवा सकता है । कितने ही विषयों में ऐसा लगता है कि बंदरों के हाथों में उस्तरा लग गया है । इसके लिए अब हमें सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार के नियम स्थापित करने होंगे और उनका कड़ाई से पालन भी करना और करवाना होगा ।अभी आरम्भ में सोशल मीडिया से उत्पन्न

विद्यार्थियों को पत्र

प्रिय विद्यार्थियों  आज आप सभी का डिप्लोमा जैन विद्या का द्वितीय सत्र पूरा हो गया है । कॅरोना की विपरीत परिस्थितियों में भी हम सभी ने अध्ययन एवं अध्यापन किया । आप सभी ने परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है । जहां तक मुझे लगता है जिन्होंने भी परीक्षा दी है, उनमें सभी उच्च श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले हैं । कई विद्यार्थी हमेशा कहते हैं कि हम तो बस पढ़ने आये थे , डिग्री लेने नहीं ,इसलिए वे परीक्षा नहीं देते हैं। किन्तु मेरा अनुभव रहा है जिनका लक्ष्य परीक्षा या डिग्री नहीं रहता ,वे गंभीरता से पढ़ते भी नहीं हैं ।  आप सभी ने परीक्षा के दौरान यह अनुभव किया होगा कि जब तक सकारात्मक तनाव हमारे ऊपर नहीं रहता तब तक हम भी जोर नहीं लगाते हैं । परीक्षा के निमित्त से स्वाध्याय और अध्ययन और गहरा होता है । अपने ज्ञान पर खुद का विश्वास बढ़ता है ।  चलिए , अब एक बहुत बड़े भार से तो आप निर्भार हो गए । औपचारिकताओं के बाद डिप्लोमा भी आपको प्राप्त हो ही जायेगा ।  लेकिन अब अवसर है गुरु दक्षिणा का । पिछले एक डेढ़ वर्षों में हमने मिलकर हर संभव आप सभी को अपनी तरफ से यथा शक्ति , यथा मति जैन विद्या का वह अमूल्य तत्त्

दसधम्मसारो की pdf

दसलक्षण धर्म पर सरल प्राकृत गाथाएं एवं सरल और संक्षिप्त हिंदी व्याख्या के साथ अब *दसधम्मसारो* ग्रंथ की पीडीएफ जैन ई लाइब्रेरी में भी उपलब्ध है आप  निम्नलिखित लिंक पर जाकर डाउन लोड कर सकते हैं -  धन्यवाद https://jainelibrary.org/book-detail/?srno=035362

तुम भी यार कॅरोना निकले

*तुम भी यार कॅरोना निकले*  झूठ ही बिकता रहा बाज़ार में, दाम बहुत पर ऊपर निकले । सच्चाई की भीख मांगने, लेकर हम कटोरा निकले ।। अंदर बैर बैठा ही रहा, मंदिर मस्जिद सैर को निकले । क्रीम पाउडर हल्दी उबटन , देखें कौन सलोना निकले ।। एहसानों को सह न पाए , अच्छे अच्छे सपोला निकले । उफ रिश्तों से इतनी दूरी, तुम भो यार कॅरोना निकले ।। कुमार अनेकान्त  14/08/2020

अनुभव

अनुभव को लिखा अनुभव  मुझे जैन विद्या प्राकृत भाषा रूप जिनवाणी का तत्वज्ञान परंपरा से प्राप्त हुआ है। मेरे माता पिता स्वयं इस विद्या के विशेषज्ञ हैं। उन्हीं की प्रेरणा पाकर के मुझे भी संस्कृत विद्या जैन दर्शन आदि विषयों के साथ अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गुरू जनों का मुझ पर बहुत उपकार हुआ और यही कारण है कि मैंने अपने संपूर्ण अध्ययन काल में इस विषय में उच्च से उच्च शिक्षा तथा इससे संबंधित समस्त शैक्षणिक योग्यताएं अर्जित करने का प्रयास किया ।  यह मेरा इस जन्म में बहुत बड़ा सौभाग्य रहा कि मुझे जैन दर्शन के माध्यम से  तत्त्व ज्ञान प्राप्त हुआ तथा उसी को प्रचारित प्रसारित करने के लिए अध्यापन करने के लिए तथा शोध कार्य करने के लिए सौभाग्य से आजीविका भी मिल गई। अध्ययन के दौरान यह अवश्य लगता था की मेरे कैरियर का क्या होगा ? किंतु मेरे माता पिता ने हिम्मत बंधाई और मैंने भी अन्यत्र न भटकते हुए यह सोच लिया था कि जो होगा सो होगा ,मेरी तरफ से कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, बस । इसी विद्या से मैंने यह सीखा कि यदि पूरे परिश्रम भावना और समर्पण के साथ यदि कार्य किया जाए तो कोई ना कोई दिशा भी अवश्य म

समकालीन प्राकृत कविता पीड़ा

समकालीन प्राकृत   कविता पीड़ा पीडियो सहइ पीडा तं ण खलु गच्छइ पीडा जं ददइ | कसायेण सयं दहइ परकत्ताभावेण जीवो || भावार्थ पीड़ित व्यक्ति तो पीड़ा सह भी जाता है ,लेकिन जो पीड़ा देता है निश्चित ही उसकी पीड़ा नहीं जाती | पीड़ा देने वाला जीव मिथ्या ही पर कर्तृत्व के भावों से , कषाय से   स्वयं जलता रहता है | कुमार अनेकांत १८/०६/२०२०

पिता नहीं भगवान् हैं वे

पिता नहीं भगवान् हैं वे  - कुमार अनेकांत© ( 16/06/2019) पिता नहीं भगवान् हैं वे  भले ही एक इंसान हैं वे  ईश्वर तो अभी तक अनुमान हैं  मेरे प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वे  जब मन भटका इन्द्रियां भटकीं मति सुधारी मतिज्ञान हैं वे आगम पढ़ाया आप्त समझाया श्रुत समझाया श्रुतज्ञान हैं वे  मम मन समझें मनोविज्ञानी मेरे मनः पर्ययज्ञान हैं वे  मैं दूर रहूं तो भी रखें नज़र दूरदृष्टा अवधिज्ञान हैं वे  मेरे तीनों काल को जाने  मेरे सर्वज्ञ- केवलज्ञान हैं वे  कोई चाहे कुछ भी कह ले मेरे प्रत्यक्ष भगवान् हैं वे  पाठकों से निवेदन -     छंद नहीं अनुभूति देखें     शब्द नहीं भाव को परखें     जरूरी नहीं कि कवि ही लिखे     अकवि की भी कविता देखें ।

सुशांत से हमने क्या सीखा ?

सुशांत से हमने क्या सीखा ? करोड़ों की मज़राती कार, रेंज रोवर, BMW बाइक 90 करोड़ की प्रॉपर्टी और ग्लैमर । सुना है इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का इकलौता ऐक्टर था, जिसने चाँद पर लूनर प्रॉपर्टी के थ्रू पीस ऑफ लैंड खरीद रखा था । पर इन सब के ऊपर डिप्रेशन भारी पड़ा और सुशांत फांसी लगा के खत्म हो गया । *अध्यात्म विद्या को जीवन में आत्मसात कीजिए ।* *ज्ञान का फल है "मुस्कान" उसे अपने चेहरे पर बनाए रखिए ।* सिर्फ दो नियम १. अपने से मिलते रहिए( ध्यान योग)( रहें भीतर) २. अपनो से मिलते रहिये, बात करते रहिए । ( व्यवहार योग - जिएं बाहर ) *जग- जीवन की क्षण भंगुरता को समझे रहिए ।* *कोई किसी का सगा नहीं - अंदर में निर्णय करके रखिए*  *मेरा सो जावे नहीं* *अप्पसहावो गच्छइ ण कया खलु मत्त गच्छइ विहावो |* *जो गच्छइ सो य ण मम जो मम सो ण गच्छइ खलु सहावो ||* भावार्थ – आत्मा का मूल शुद्ध स्वभाव कभी नहीं जाता, निश्चित ही मात्र विभाव जाता है और जो चला जाता है वह मेरा नहीं है और जो मेरा है वह जाता नहीं है ,निश्चय से वही मेरा स्वभाव है |  *डिप्रेशन का अर्थ है आपने अध्यात्म सिर्फ पढ़ा है ज

जिनवाणी नष्ट क्यों हुई ?

*जब चारों वेद बचा लिए गए तो द्वादशांग आगम क्यों हो गए नष्ट ?* *क्या हम आगे भी भगवान महावीर की शेष बची जिनवाणी बचा पाएंगे ?*  *हमारा क्या है प्लान ?* *सुनें सोचें और विचार करें* Must listen An eye opening lecture by  *Dr Anekant Kumar Jain* New Delhi  https://youtu.be/3-gNxLmWpYI

अवश्य सुनें ऐतिहासिक प्राकृत श्रुत व्याख्यान श्रृंखला

सादर प्रकाशनार्थ अवश्य सुनें ऐतिहासिक प्राकृत श्रुत व्याख्यान श्रृंखला श्रुत पंचमी प्राकृत दिवस पर दिनांक 13/05/2020 से 27/ 05/2020   तक पंद्रह दिवसीय प्राकृत भाषा एवं साहित्य से सम्बंधित ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला का भव्य आयोजन फेस बुक के PRAKRIT LANGUAGE AND LITERATURE नामक पेज पर किया गया | इसमें देश विदेश के प्राकृत भाषा , आगम एवं साहित्य के वरिष्ठ मनीषियों के सरल एवं सारगर्भित व्याख्यान देकर सभी के ज्ञान को समृद्ध किया | अभी तक देश विदेश के लगभग 35 हज़ार लोग इन व्याख्यानों को सुन चुके हैं तथा निरंतर उनकी संख्या आशातीत रूप से बढ़ रही है | यदि किन्हीं कारणों से आप इनमें से कोई नही व्याख्यान सुनने से चूक गए हों तो हम यहाँ क्रम से प्रत्येक व्याख्यान का लिंक एक साथ प्रेषित कर रहे हैं |आप उन्हें अपने अनुकूल समय में कभी भी सुन सकते हैं |प्रत्येक व्याख्यान औसतन एक घंटे के हैं | 1. प्रथम व्याख्यान : 13 /05 / 2020 : प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ,वाराणसी : “ प्राकृत भाषा का वैभव ” https://www.facebook.com/PrakritLanguage/videos/ 545895272783657/ 2. द्वितीय व्याख्यान : 15 /05/

णमो माआअ

अनेकांत कुमार जैन जी की एक प्राकृत कविता के संस्कृत अनुवाद का प्रयास मातृदिवस पर  नैव कल्याणमेवास्ति, जीवश्वासश्च यां विना | या च लोकत्रयाचार्या, तस्यै मात्रे नमो नमः || *णमो माआअ* ............. *जेण विणा जीवणस्स ,सासो वि कल्लाणो वि खलु ण हवइ।* *तस्स भुवणेक्कं गुरु,पढमो णमो णमो माआअ ।।* भावार्थ -  जिसके बिना जीवन का श्वास भी नहीं चलता और निश्चित रूप से जीवन का कल्याण भी नहीं होता ,उस तीनों लोकों में पहली शिक्षिका , मां ( माता) को नमन है  नमन है । कौशल तिवारी

प्राचीन संस्कृत ग्रंथ - आत्मानुशासनम्

*प्राचीन संस्कृत ग्रंथ - आत्मानुशासनम्* *निज पर शासन ,फिर अनुशासन* का संदेश देने वाले ग्रंथ ' आत्मानुशासनम् ' के रचयिता आचार्य गुणभद्र दक्षिण भारत में आरकट जिले के तिरुमरूङ कुंडम नगर के निवासी थे तथा संघसेन  संघ के आचार्य थे ।इनके गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय थे तथा इनके दादा गुरु का नाम वीरसेन था । आचार्य गुणभद्र ने अपने गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय के ग्रंथ महापुराण को पूर्ण किया था । आचार्य गुणभद्र का समय नवमी शताब्दी माना जाता है । आचार्य गुणभद्र की अन्य रचनाएं आदि पुराण, उत्तर पुराण तथा जिन दत्त चरित काव्य है । आचार्य गुण भद्र ने आत्मानुशासन ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की है जिसमें अध्यात्म धर्म तथा नीति से संबंधित 269 पद्य हैं । इस ग्रंथ पर 11 वीं शताब्दी में आचार्य प्रभाचंद्र ने संस्कृत में टीका लिखी थी जिसका संपादक डॉ ए. एन. उपाध्येय एवम् डॉ हीरालाल जैन ने किया था तथा शोधपूर्ण प्रस्तावना भी लिखी थी ।  मोक्षमार्ग प्रकाशक नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ लिखने वाले जयपुर के  सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमल जी ने ढूंढारी भाषा में एक विशाल टीका लिखी जो प्रकाशित भी है । इस ग्रंथ पर एक ट

मंदिर मस्जिद भी खुलवा देंगे

*मंदिर मस्जिद भी खुलवा देंगे* अब  मंदिर मस्जिद की जगह घर में ही बनाओ और  भगवान् की फोटो की जगह  रखो दर्पण  रोज निहारो  अपना रूप और करो  खुद से ही  सवाल  कि क्या तुम  खुद को खुदा की बंदगी के भी काबिल  समझते हो ? और मिल जाए  जवाब तो बता देना  धर्म स्थान का लॉक डाउन भी खुलवा देंगे । कुमार अनेकांत©️ ६/०४/२०२०

प्राकृत साहित्य में लॉक डाउन

*पागद-साहिच्चम्मि lock down, Quarantine तहा Isolation*      (प्राकृत साहित्य में lockdown, Quarantine तहा Isolation ) वत्तमाणकालम्मि करोणा वायरसेण संपुण्ण विस्सो भयवंतो अत्थि | भारदे लॉक डाउण हवन्ति | पाचीण पागद-साहिच्चम्मि सावयस्स बारसवयणं वण्णणं सन्ति तम्मि गुणव्वयम्मि दिगवयस्स तहा देसवयस्स तुलणा लॉकडाउणेण सह हवदि |  कत्तिकेयाणुपेक्खम्मि (गाहा -३६७-३६८ )उत्तं – *पुव्‍व-पमाण-कदाणं सव्‍वदिसीणं पुणो वि संवरणं।*  *इंदियविसयाण तहा पुणो वि जो कुणदि संवरणं।।*   *वासादिकयपमाणं दिणे दिणे लोह-काम-समणट्ठं।।*  वसुणन्दिसावगायारे(गाहा- २१४-२१५ ) उत्तं – *पुव्‍वुत्तर-दक्खिण-पच्छिमासु काऊण जोयणपमाणं।*  *परदो गमणनियत्तो दिसि विदिसि गुणव्‍वयं पढमं। ।*  *वयभंग-कारणं होइ जम्मि देसम्मि तत्‍थ णियमेण।*  *कीरइ गमणणियत्ती तं जाणा गुणव्वयं विदियं।।* आयरियो वट्टकेरो मूलायारे एगो पण्ह- उत्तरं उत्तं  -  पण्ह - *कहं चरे कहं चिट्ठे कहमासे कहं सए।* *कहं भुंजतो मासंतो पावं कम्मं न बंधई  | |’* (गाहा १०/१२१) केण पकारेण जीवणं जीवेइ जेण पावकम्मं ण बंध ई ? आयरिय बहु समीइणं समाहाणं दत्तं जेण कोरोणा - महामारीए -  Quarantin

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है कुमार अनेकांत पुराने जमाने की एक कहानी सुनी होगी । अमावस्या के दिन डाकू पहाड़ी पर बने देवी के मंदिर में जरूर आता है और देवी को प्रसाद जरूर चढ़ाता है । पुलिस भी जो और दिनों में उसे ढूढने में असफल रहती है वह अमावस्या की रात मंदिर के आसपास डाकू की प्रचंड भक्ति पर विश्वास करके घेरा बंदी कर लेती है कि उसकी और बातें भले ही झूठ हों लेकिन यह बात बिल्कुल सही है कि वह देवी से रक्षा और सफलता का आशीर्वाद लेने जरूर आता है । ऐसी कहानियां सच हैं कि काल्पनिक हैं या फिल्मी हैं यह तो आप जानें लेकिन धर्म क्षेत्र की अधिकांश व्यवस्थाएं इन दिनों किसी न किसी रूप में ऐसे ही डाकुओं से घिरी हुई हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि अब डाकू छुप कर नहीं आते ,  क्यों कि डकैती कर्म होने पर भी वे अब इतने स्वच्छ दिखते हैं कि अब वे डाकू नहीं कहलाते । अब वे सामाजिक हैं । लूटने के ,डकैती के बहुत सुरक्षित उपाय उन्होंने अपना लिए हैं । अब आप लुट जाएंगे और उसे डाकू भी नहीं कह पाएंगे क्यों कि उसने इतने सफेद आवरण ओढ़ रखे हैं कि आप उस पर दाग भी नहीं लगा सकते । डाकुओं ने अपना ड्रेस कोड

भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन

*भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन* *प्रो अनेकांत कुमार जैन*,नई दिल्ली भगवान महावीर की वाणी के रूप में प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में रचित हजारों वर्ष प्राचीन  शास्त्रों में गृहस्थ व्यक्ति को बारह व्रतों की शिक्षा दी गई है जिसमें चार शिक्षा व्रत ग्रहण की बात कही है ,जिसमें एक व्रत है  *देश व्रत* । गृहस्थ के जीवन जीने के नियमों को बताने वाले सबसे बड़े संविधान वाला पहला संस्कृत का  ग्रंथ *रत्नकरंड श्रावकाचार* में इसका प्रमाणिक उल्लेख है जिसकी रचना ईसा की द्वितीय शताब्दी में जैन आचार्य समंतभद्र ने की थी ।अन्य ग्रंथों में भी इसका भरपूर वर्णन प्राप्त है ।  कोरोना वायरस के कारण वर्तमान में जो जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन आवश्यक प्रतीत हो रहा है उसकी तुलना हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृत के शास्त्रों में प्रतिपादित देश व्रत से की जा सकती है । *देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य ।* *प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य* ॥ ९२ ॥ *गृहहारिग्रामाणां क्षेत्रनदीदावयोजनानां च ।* *देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः* ॥ ९३ ॥ *संवत्सरमृमयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।* *देशावकाशिकस्य प्राहुः