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जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न करूं नींद नहीं आती

*जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न करूं नींद नहीं आती* - प्रो.डॉ अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com लगभग ६५ वर्षीय श्री हरेंद्र सिंह जो मोती हारी , बिहार के हैं , रिटायर्ड हैं , अतः आजकल खेती करते हैं । इनका कहना है कि मैं जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न कर लूं मुझे नींद नहीं आती । मुझे लगा कि यह बीमारी है लेकिन डॉ ने कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है ।    अपने विश्वविद्यालय के जैन दर्शन विभाग में मैं विद्यार्थियों को रयणसार  पढ़ा रहा था तभी एक बुजुर्ग अपरिचित सज्जन कक्षा में दाखिल हुए और चुपचाप कक्षा सुनने लगे ।  कक्षा के उपरांत मैंने उनसे परिचय प्राप्त किया तब उन्होंने उपरोक्त जानकारी मुझे देते हुए कहा कि मैंने एक बार दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले से आपकी एक पुस्तक *जैन धर्म एक झलक* प्राप्त की थी । उसे पढ़कर मुझे बहुत रुचि हुई । फिर मैं जिज्ञासावश त्रिनगर के जैन मंदिर गया तो वहां एक पंडित जी ने मुझे रत्नकरण्ड श्रावकाचार पढ़ने को दिया तब वह मुझे बहुत अच्छा लगा । लेकिन उसका पूरा पालन मैं नहीं कर पा रहा हूं । मैं ग्रंथ पढ़ने के बाद मंदिर वापस करने गया तो उन्होंने कहा इस

विश्व हिंदी दिवस

अभी विश्व हिंदी दिवस पर हम बस इतना ही कहना चाहते थे कि उस पीढ़ी से ज्यादा हिंदी प्रेमी कोई नहीं हो सकता जिन्होंने अंग्रेजी भी हिंदी माध्यम से पढ़ी है और आज चाह कर या अनचाहे भी अंग्रेजी में कुछ कहना या लिखना पड़े तो भी पहले मन में हिंदी में सोचते हैं फिर उसकी अंग्रेजी बनाते फिरते हैं फिर चाहे वो जैसी भी बन या बिगड़ जाए । अगर आप इसी पीढ़ी के हैं  तो आपको सलाम ! हिंदी आपकी वजह से ही अभी तक बची हुई है । कुमार अनेकांत

विश्व पुस्तक मेले से नदारद जैन साहित्य*

*विश्व पुस्तक मेले से नदारद जैन साहित्य* डॉ.अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली  दिल्ली के प्रगति मैदान में ४ जनवरी २०२० से शुरू हुए विश्व के सबसे बड़े मेले में मैं दिनांक ५ को गया ।  देश विदेश के बड़े बड़े साहित्यकार, लेखक, प्रकाशक, प्रोफेसर , विद्वान्,जिज्ञासु, शोधार्थी , विद्यार्थी और पुस्तक प्रेमी बड़ी संख्या में यहां दूर दूर से आते हैं ।  किसी भी धर्म दर्शन के लोग इस मौके को नहीं छोड़ते । हाल संख्या 12 A में विशेष रूप से धर्म ,दर्शन से संबंधित साहित्य के स्टाल थे । इस्लाम की तीन चार संस्थाओं के बड़े बड़े स्टाल लगे थे , उनके लगभग ६०-७० लोग इस्लाम साहित्य समझा समझा कर दे रहे थे । वे कह रहे थे कि यदि आप मुस्लिम नहीं हैं तो आपके लिए कुरआन निःशुल्क है । आर्य समाज के दस बीस भक्त जगह जगह चिल्ला चिल्ला कर १० - १० रुपए में सत्यार्थ प्रकाश बांट रहे थे । ईसाई धर्म की कई संस्थाएं बाइबिल को "पवित्र पुस्तक" नाम से बिल्कुल निःशुल्क दे रहे थे ।  और भी कई लोग खुद के धर्म और दर्शन को अनेक उपायों से समझा रहे थे , प्रचार कर रहे थे ।  हिन्दू धर्म की पुस्तकें तो लगभग सभी स्थलों पर थीं । श्रीराम शर्

काश वो हम मूर्खों को चतुर बना देता

एक बीमा कम्पनी ने दो तरह के विज्ञापन जारी किए - १. बढ़ती उम्र में रखें बीमारियों का ध्यान - कराएं हेल्थ इंश्योरेंस । २. घटती उम्र में रखें  अपने परिवार के भविष्य का ख्याल - कराएं जीवन बीमा ।  …..................... मार्केटिंग अपने हिसाब से चलती है ।  समझना हमें है कि हमारी उम्र बढ़ रही है या घट रही है ।  जन्मदिन के दिन हमारे जीवन का  एक वर्ष बढ़ता है या घटता है ?  हम जीवन का एक एक क्षण खो रहे हैं या पा रहे हैं ?  जन्म के साथ ही मृत्यु की उल्टी गिनती शुरू हो जाती है ।  अपने अधूरे पन की पूर्ति के लिए हम क्या क्या नहीं करते ?  लगभग ८०-९० वर्ष के इस मनुष्य भव को अगर अगणित वर्षों  के देव / नरक आदि भवों से तुलना करें तो  कितने बौने नज़र आते हैं । और इन्हीं  पलों में  पाप कार्यों के महल खड़े कर देते हैं  ताकि ये ८०-९०  सुकून से कट सकें ; हम नाम , पद , पैसे के लिए सारे कर्म , छल कपट और हिंसा करने को उतारू हो जाते हैं । बीमा कम्पनी का यह विज्ञापन काश हमें वास्तविक बोध प्रदान कर पाता । हमारा अज्ञान दूर करके आत्मज्ञान प्रगट कर देता ।  हमें अपने मनुष्य भव का सही उपयोग करना सीखा देता । हम दूसरों के