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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जैन संस्कृत विद्यालयों को कौन बचाएगा ?

जैन संस्कृत विद्यालयों को कौन बचाएगा ? डॉ अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली  प्राप्त जानकारी के अनुसार अकेले उत्तर प्रदेश में ही जैन समाज द्वारा संचालित 20 संस्कृत विद्यालय थे । अन्य प्रदेशों की गणना करेंगे तो जाने कितने मिलेंगे । उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा बोर्ड की जानकारी में भी मात्र कुछ ही बचे हैं जिन्हें समय रहते यदि नहीं संभाला गया तो वे भी नष्ट हो जाएंगे ।  वर्तमान में यदि वहां की उदासीन समाज जागृत होकर उन विद्यालयों का पंजीकरण अल्पसंख्यक के रूप में करवा लें तो वहां के सरकार द्वारा स्वीकृत पदों को भरवाया जा सकता है जिसमें प्राकृत संस्कृत के जानकार और जैन आगम निष्ठ शास्त्री विद्वान सरकारी आजीविका प्राप्त कर सकते हैं । जो विद्यालय सरकारी अनुदान के कारण यदि चल भी रहे हैं तो उनमें पढ़ने वाले विद्यार्थी और अध्यापक जैन समाज से नहीं है अतः समाज से संपर्क न होनेम् समाज उन्हें चलाने में रुचि नहीं ले रहा है ।  इन विद्यालयों के माध्यम से जैन समाज एक छोटा सा निःशुल्क गुरुकुल संचालित कर सकती है जिसमें संस्कारवान , शिक्षित , जिनवाणी के प्रति समर्पित नई पीढ़ी खड़ी की जा सकती है । जो भविष्य

इक्कीसवीं सदी में जैन धर्म का भविष्य

जैन धर्म में नासूर बनता व्यक्तिवाद

हमारा व्यक्तित्व

दिशा बोध का अगस्त 21 अंक

दिशा बोध अगस्त 2021 का अंक आज सुबह सुबह मोबाइल पर ही पूरा का पूरा देख डाला ।  पत्रिका अपने नाम के अनुरूप सभी को दिशा बोध प्रदान करती रहती है । आप जैसे कलम के सिपाही इसे जीवंत रखते हैं ।  आज के समाज के वातावरण , ट्रस्ट मंदिर - संस्थाओं के झगड़े और साधर्मियों के प्रति ही बढ़ती कषायों को देख कर ऐसा लगने लगा है कि संभवतः पंचम काल इक्कीस हज़ार जितने साल का नहीं है । हो सकता है जब शास्त्र लिखे गए हों तब सहस्र शब्द की वह गणना न रही हो जो आज के हिसाब से हम लगाते हैं । इस पर पुनः अनुसंधान होना चाहिए । पिछले कुछ अंक और यह ताजा अंक देखकर जो भाव आये वे इस प्रकार हैं -  1. नए लोग जैन बनना तो दूर जो हैं वो भी छोड़ कर जा रहे हैं ।  2. समाज की प्रायः संस्थाओं पर गुंडा प्रकृति के लोग काबिज हो रहे हैं उनकी भाषा व्यवहार इस कदर गिरा हुआ है कि सज्जन लोग संस्थाओं से दूर रहना ही बेहतर समझने लगे हैं । 3.  पत्रकारिता और चाटुकारिता पर्यायवाची बन गए हैं ।  4. सभी मंच पर बैठे हैं , नीचे जनता बची नहीं है , सिर्फ कैमरा और पत्रकार सामने हैं ।  5. जहां स्वस्थ्य विचारों का अकाल है वहां एक तख्त कैसे टिकेगा ?  6. पाप भीरुता

बनारस की यादें -1 विद्वत्ता की गरिमा

बनारस की यादें -1  *विद्वत्ता की गरिमा*  हम बनारस की रवींद्रपुरी कालोनी में रहते थे । हमारे घर के करीब ही गोपी राधा विद्यालय के पास संस्कृत जगत के महान विद्वान पंडित बलदेव उपाध्याय जी रहते थे ।  मेरे पिताजी (प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ) संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में जैन दर्शन विभाग के अध्यक्ष थे ।  पंडित जी को अक्सर कोई जैन शास्त्र देखना होता तो पत्र वाहक के साथ एक पर्चा भेजकर पिताजी से मंगवा लेते थे ।  ग्रंथों को लाने ले जाने का यह कार्य कभी मुझे भी करना होता था ।  उनके घर के मुख्य द्वार के बाद कुछ दूरी पर एक चैनल गेट था जो हमेशा बंद रहता था । पंडित जी जल्दी किसी से मिलते नहीं थे । मैं जब भी उनके यहां गया उन्हें हमेशा स्वाध्याय और लेखन में मग्न पाया । चैनल गेट के अंदर से ही कहते जो लाये हो उसे हाथ डाल कर वहीं रख दो और जाओ । उनके घर के आगे एक छोटा सा बोर्ड लगा था जिसमें लिखा था मिलने का समय सायं 4 से 5 । इस तरह का बोर्ड मैंने दुनिया के हर प्रोफेशन में देखा था लेकिन किसी संस्कृत के विद्वान के घर पर पहली बार देखा ।  पिताजी को भी उनसे मिलना होता तो वे उस समय आनंद पार्क जाते जब वे व

सादगी से हो चातुर्मास

*सादगी से हो चातुर्मास* डॉ अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली हमारे साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारी स्मृति बहुत कमजोर हो गई है । अभी अप्रैल मई के महीने में कोरोना महामारी का जो जलजला हमने साक्षात अनुभूत किया उसे भूल कर और कोरोना महामारी की तीसरी लहर की चेतावनी को नजर अंदाज कर पुनः धार्मिक स्थलों पर वैसा ही माहौल बनाने लगे हैं जो खतरनाक हो सकती है ।   ऐसा लगता है कि अभी हमें धर्म स्थल खोलने की अनुमति मिली है तो हम पूरी कोशिश में हैं कि देव दर्शन भी बंद हो जाएं । हम ऐसा न करें कि चातुर्मास के दिनों में हमें देव दर्शन भी न मिलें । भारत में चेतावनी है कि अगले तीन महीने बहुत खतरनाक हैं । तीसरी लहर का नया वैरिएंट पहले से भी ज्यादा खतरनाक रहेगा ।  इसके बावजूद भी बड़े बड़े सामूहिक विधान हो रहे हैं , बड़े स्तर पर चातुर्मास स्थापनाएं हो रहीं हैं । चार महीने के बड़े बड़े कार्यक्रम बन गए हैं । सामूहिक अभिषेक हो रहे हैं ।जुलूस भी निकल रहे हैं ।   बीते दिनों हमने कितने ही साधु संतों को खोया , कितने सगे ,परिचितों को खोया ,कितनों ने संक्रमित होकर इलाज में अपना सब कुछ गंवाया । यह सब कुछ सभी का प्रत्यक्ष भुगता

लघु कथा

लघु कथा (16/08/1996)

छोटी सी कहानी

14/07/2002 को लिखी लघु कथा 'छोटी सी कहानी'

संतोष

2/1/1997 में लिखी लघुकथा  संतोष 

कॉमिक्स का जादू

कॉमिक्स का जादू  (जनवरी 1996 में लिखित बाल कथा )

अपना जन्मदिन

दिसंबर 1995 में लिखी एक लघु कथा ' अपना जन्मदिन' न '

शास्त्री क्या करे ,क्या न करे ?

*शास्त्री क्या करे ,क्या न करे ?*  *प्रो(डॉ) अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली* सबसे बड़ा सिद्धांत तो यही है कि - *तादृशी जायते बुद्धिर्व्यवसायोऽपि तादृशः।*  *सहायास्तादृशा एव यादृशी भवितव्यता॥* किसी भी बड़े सफल व्यक्ति से पूछें कि ये जो आप सफलता के लंबे लंबे भाषण प्रेरणा के लिए दे रहे हैं ,वो भाषण की दृष्टि से भले ही प्रभावशाली हैं पर यथार्थ क्या है ,अपनी छाती पर हाथ रखकर विचार करके अपने अनुभव को सही अभिव्यक्ति दीजिये तो अधिकांश व्यक्तिगत रूप से यही कहेंगे कि मैंने आगे का ज्यादा कभी नहीं सोचा , कभी बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं बनाया,  बस जो सामने दिखता गया उसे जैसे तैसे करके परिश्रम पूर्वक करता गया और यहां तक आ गया ।  वास्तविकता यह है कि सभी चीजों को एक ही तराजू पर तौल कर देखा नहीं जा सकता ।  शास्त्री उत्तीर्ण एक प्राच्य विद्या का विद्यार्थी अपने रोजगार के सीमित अवसरों को लेकर हमेशा चिंतित रहता है - यह एक यथार्थ है ।  शास्त्र में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले भावुकतावशात् ऐसे द्वंद्व में जीते हैं जहां परिश्रम को तो पुण्य माना जाता है किंतु पारिश्रमिक को अपराध । इसलिए मजबूरीवशात् उसे आजीविका हेतु उन क्

जैन योग विद्या एक झलक