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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रचंड वैराग्य का निमित्त बन रहा है 2020

*प्रचंड वैराग्य का निमित्त बन रहा है 2020* लगभग रोज ही आये दिन हम अपने गुरुओं ,रिश्तेदारोँ, परिजनों,मित्रों तथा अन्यान्य लोगों का वियोग सहन कर रहे हैं । 2020 में कॅरोना ने हमें अनित्य की सिर्फ भावना ही नहीं करवायी है बल्कि प्रयोग भी करवाया है । इसके बाद भी हम आजकल अपने ही साधर्मी,सहकर्मी,सह निवासी,पड़ोसी  जनों से भी कितना द्वेष करने लगे हैं ।  हम अक्सर उन जीवों की रक्षा की चिंता,उनसे क्षमा प्रार्थना तो करते हुए दिखते हैं जो आंखों से दिखाई तक नहीं देते किन्तु जो सामने दिख रहे हैं,जो हमारे साथ रह रहे हैं, जिनसे हमारे साक्षात सरोकार हैं उनकी विराधना ,असातना की चिंता नहीं करते हैं । प्रत्युत अन्य लोगों की अपेक्षा उनसे ही ज्यादा द्वेष कर रहे हैं । जरा जरा सी बात पर उन्हें नीचा दिखाने और उनका अपमान करने से बाज नहीं आते । लोग रोज मर रहे हैं और हम अमरता के भ्रम में जी रहे हैं और जरा से परिग्रह के लिए दूसरों को कष्ट देकर पाप बांधे जा रहे हैं । जीवन में परिवर्तन नहीं कर रहे,कषाय कम नहीं कर रहे और सोच रहे हैं कि 11000/- की बोली लेकर सब पाप धुल जाएंगे । पिछले कई महीनों से शोक संदेश पढ़ रहे हैं ,उस प

न तेरी न मेरी

न तेरी न मेरी ..... 1. वैक्सीन अभी तक इसलिए नहीं आ पाई क्यों कि अनुसंधान से ज्यादा व्यापार की चिंता है कि इसकी कमाई पहले कौन करेगा । 2. लोग वैक्सीन के भरोसे न रहें , आनी होती तो अभी तक आ गयी होती । 3. हमें जगह जगह पोस्टर लगा कर यह उपदेश दिया गया कि कॅरोना के साथ जीना सीखिए , हम सीख रहे हैं लेकिन लगता है वो ही तैयार नहीं है । 4. दिल्ली में मरीज इसलिए ज्यादा आ रहे हैं क्यों कि ज्यादा हैं ,न कि जांच ज्यादा हो रही है इसलिए । 5. दावा किया जा रहा है ये जो वैक्सीन आने वाली है उसका असर 95% होगा । यानि इससे अच्छे तो हमारे साबुन हैं जो 99.9% सुरक्षा देने का दावा कर रहे हैं । 6. जब वायरस का माप हमारी एक कोशिका से 10 लाख गुना छोटा है तो किसी भी किस्म के मास्क के द्वारा  उससे बचाव कैसे हो रहा है ? यह समझ में नहीं आ रहा । 2000₹ जुर्माने से अर्थ व्यवस्था जरूर सुधर जाएगी । 7. संक्रमण से बचने के लिए शारीरिक दूरी का नियम और उपदेश भी ठीक उतना ही प्रभावशाली है जितना कि जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए ब्रह्मचर्य का उपदेश । 8. अब स्कूल तब खुलेंगे जब भावी पीढ़ी ऑनलाइन क्लासों से अंधी और बहरी हो जाएगी और शिक्षक म

अद्वितीय थे आचार्य ज्ञानसागर जी

*अद्वितीय थे आचार्य ज्ञानसागर जी* - प्रो अनेकान्त कुमार जैन  दीपावली की शाम जब हम घरों में ज्ञान के प्रतीक स्वरूप दीप प्रज्वलित कर रहे थे तभी सहसा एक दुखद समाचार मिला कि एक श्रुत ज्ञान दीप अभी अभी बुझ गया है ....।  सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ कि  वर्तमान में जैन धर्म दर्शन संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेकर एक अद्वितीय  जिनधर्म विजय अभियान लेकर चलने वाले ,जन जन की श्रद्धा के आसन पर विराजने वाले दिगम्बर जैन परंपरा के महान साधक आचार्य ज्ञान सागर जी की समाधि अचानक हो गयी है । अपने कुछ हाथ में नहीं था तो एकांत ध्यान में बैठकर महामंत्र का जाप किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की ।  मन में बचपन के वे दिन भी स्मृति पटल पर चलचित्र की भांति चलने लगे जब पिताजी( डॉ फूलचंद जैन प्रेमी जी) के साथ मैंने उनके सर्वप्रथम दर्शन तब किये थे जब वे बनारस पधारे थे । मेरी अभिरुचि को देखकर उन्होंने मुझे शाकाहार आदि पर लेख लिखने को प्रेरित किया था जो तब से आज तक सतत चल ही रहा है । मेरी तरह उन्होंने लाखों बच्चों और युवकों की प्रतिभा को अपनी प्रेरणा से जैन संस्कृति की सेवा करने को प्रेरित किया और लगाया है । 2003 में व

महावीर-णिव्वाण-दीवोसवो

  महावीर-णिव्वाण- दीवोस वो महावीर-णिव्वाण- दीवोस वो   जआ  अवचउ काल स्स   सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा ।   तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।१।। जब  अवसर्पिणी  के  चतुर्थ काल के  तीन वर्ष साढ़े आठ मास  शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी ।   कत्तियकिण्ह तेरसे  जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे ।    वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।२।। योग निरोध करके  कार्तिक  कृष्णा त्रियोदशी को वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।     चउदसरत्तिसादीए पच्चूस काले  पावाणयरीए  ।         ते   गमिय परिणिव्वुओ   देविहिं   अच्चीअ  माव से ।।३ ।। चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में  वे ( भगवान् महावीर )   परिनिर्वाण को प्राप्त हुए  और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई  ।   गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं  ।   णाणलक्खीपूया य   दीवोस वपव्वं  जणवएण   ।।४ ।। इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व  मनाया

शाकाहार हाईकू पंचक

*शाकाहार हाईकू पंचक* कुमार अनेकान्त, नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com  11/11/2020 1. जीवन सार  हमारा शाकाहार न मांसाहार 2. खाकर मांस  पेट को कब्रिस्तान  मत बनाओ 3. रखो करुणा आहार शाकाहार जीवों की दया  4. मानव धर्म जीवन शाकाहार  सात्विक कर्म  5. अपनाएगा  हिन्दु मुसलमान सच्चा ईमान

जैन आगमों में दीपोत्सव

*जैन आगमों में दीपोत्सव* प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन , आचार्य-जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली-१६ drakjain2016@gmail.com दीपावली भारत का एक ऐसा पवित्र पर्व है जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं से है |भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैं |आइये आज हम इस अवसर पर दीपावली के जैन महत्त्व को समझें |ईसा से लगभग ५२७  वर्ष पूर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन होते ही अमावस्या के लगभग प्रारम्भ में स्वाति नक्षत्र में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का वर्तमान में बिहार प्रान्त में स्थित पावापुरी से निर्वाण हुआ था। भारत की जनता  ने  प्रातः काल जिनेन्द्र भगवान की पूजा कर निर्वाण लाडू (नैवेद्य) चढा कर पावन दिवस को उत्साह पूर्वक मनाया । यह उत्सव आज भी अत्यंत आध्यात्मिकता के साथ देश विदेश में मनाया जाता है |इसी दिन रात्रि को शुभ-बेला में भगवान महावीर के प्रमुख प्रथम शिष्य गणधर गौतम स्वामी को केवल ज्ञान रुपी  लक्ष्मी की प्राप्ति हुई थी |  दिगंबर आचार्य जिनसे