जैन विद्या अनुसंधान की दिशाएं और संभावनाएं प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली जैन विद्या के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान करने को उत्सुक शोधार्थियों के लिए निम्नलिखित बिंदु विचारणीय हैं - 1. जैनाचार्यों द्वारा रचित प्राचीन पांडुलिपियों की खोज कर के उसका संपादन और अनुवाद 2. प्रकाशित प्राचीन जैन साहित्य पर,जिसपर अभी तक कोई शोधकार्य न हुआ हो ,उसे केंद्रित करके साहित्य आधारित शोधकार्य । 3.दार्शनिक समस्याओं पर आधारित विषयगत अनुसंधान 4. जैन सिद्धांतों पर आधारित आधुनिक विज्ञान से तुलनात्मक अनुसंधान । 5. समकालीन समस्यों के समाधान के लिए जैनाचार्यों और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों की समाधानात्मक दृष्टि से अनुसंधान । 6.भारतीय विद्याओं की जितनी भी शाखाएं हैं , लगभग उन सभी विद्या शाखाओं पर आधारित जैन ग्रंथ लिखे गए हैं लेकिन उनका सही मूल्यांकन अभी तक भी नहीं हो सका है अतः उस पर शोधकार्य हो सकता है । 7. शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान के अधिगम की अवधारणा और गुरु शिष्य परंपरा ,शिक्षा के सिद्धांतों पर जैन ग्रंथ भरे पडे हैँ उन पर भी शोधकार्य बहुत जरूरी है । जैन समाज द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में महत्त
*रामभक्त रिक्शेवाला* - *प्रो अनेकांत कुमार जैन* नई दिल्ली अभी दिसंबर-23 में बनारस जाना हुआ । दिल्ली में रहने के कारण अब बनारस में सड़कों की दूरियां मेरे लिए कोई मायने नहीं रखतीं इसलिए जैन घाट और बच्छराज घाट पर तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के जिन मंदिर दर्शन , अस्सी घाट भ्रमण , भेलूपुर तीर्थंकर पार्श्वनाथ के दर्शन और पुराने सदाबहार मित्रों से मिलन आदि ये कुछ अनिवार्य कार्य अपने अल्प प्रवास पर भी पैदल घूम कर ही अवश्य करता हूँ । संभवतः 21 दिसंबर की शाम मैं इसी तरह भ्रमण करते हुए भेलूपुर से घर लौट रहा था । मुझे पैदल चलता देख एक अत्यंत गरीब , दुबले पतले ,सांवले हाथ रिक्शे वाले ने मेरे पीछे आकर कहा बाबू जी आपको कहाँ जाना है ? कहीं नहीं - मेरा जबाब था । और उस मस्त मौला मात्र धन से दरिद्र और तन पर फटे मैले अविन्यासित वस्त्र पहने किन्तु दिल के राजा रिक्शे वाले ने मेरे जबाब के प्रति उत्तर में कहा बनारस में कहीं नहीं कुछ नहीं होता । मेरी सवारी मत बनिये पर झूठ तो मत बोलिये । उसका मनोवैज्ञानिक दबाव मेरे पैदल चलने के धैर्य को तोड़ता सा प्रतीत हो रहा था । फिर मैंने उसे भगाने के लिए कहा कि