मेरी आत्मकथा - तीर्थंकर भगवान् महावीर अनेक लोगों ने मेरे जीवन के बारे में बहुत कुछ लिखा है ,वो सब मेरे ज्ञान का विषय बनता रहता है ,अपने बारे में कुछ न कहो तो जो अन्यान्य लेखक लिखते हैं उसे ही मानकर चलना पड़ता है । इसलिए मैं आज स्वयं ही अपनी कहानी कहना चाहता हूँ । मेरा जन्म और बचपन मुझे मेरी माँ ने ही बताया कि मेरे जन्म के पहले उन्होंने 16 प्रकार के मंगल स्वप्न देखे तो पिताजी ने कहा कि तुम भाग्यशाली हो ,तुम ऐसे पुत्र की माँ बनने वाली हो जो धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करेगा । मुझे पूरा स्मरण तो नहीं लेकिन जब मैं गर्भ में था तब माता पिता इस जगत के विषय भोगों के प्रति अरुचि रखते हुए , बहुत तत्त्व चर्चा करते थे और संसार और शरीर की क्षण भंगुरता का चिंतवन करते हुए , शाश्वत शुद्धात्मा की अनुभूति की बातें करते हुए प्रातः रोज ही उपवन में भ्रमण करते थे ।उनकी इन चर्चाओं का असर अनजाने ही मुझ पर उसी समय से होने लगा था । मेरी माँ प्रतिदिन णमोकार मंत्र की सुबह शाम कई जाप करती थीं , उस मंत्र की अंतर्ध्वनि और तरंगें मुझे उस समय अंदर ही अंदर महसूस होती थीं ।
*कहीं इस बार भी बुद्ध की आड़ में खो न जाएं महावीर* 21 अप्रैल को महावीर जयंती है । पिछले साल कई अखबारों ने महावीर की जगह बुद्ध की फ़ोटो छाप दी थी । यहाँ तक कि सरकारी विज्ञापनों में भी एक तो बधाई आती नहीं है और यदि कोई आई तो उसमें भी बुद्ध छापे गए । मैं दिल्ली के अहिंसा स्थल के पास से जब भी गुजरता हूँ तो ऑटो टैक्सी वालों से जानबूझ कर पूछता हूँ कि भैया ये किनकी मूर्ति यहाँ लगी हुई है ? तो 99% उसे बुद्ध बतलाते हैं । जबकि वहां मुख्य द्वार पर भगवान् महावीर नाम भी लिखा है । अब इसमें सारा दोष दूसरों को देने से कुछ नहीं होगा । हमें स्वीकारना होगा कि जहां हमें दिखना चाहिए वहां हम नहीं होते हैं । हमारी शक्ति खुद में ही खुद के प्रचार में लग रही है । बाहर बुरा हाल है .... इसके लिए हमारी सामाजिक संस्थाएं निम्नलिखित कदम अभी से उठा सकती हैं - 1. सारे मीडिया हाउस को पत्र लिखकर यह अज्ञानता दूर करना और महावीर का वीतरागी वास्तविक चित्र उपलब्ध करवाना । 2.व्यक्तिगत संपर्क से इन विसंगतियों को ठीक करना करवाना । 3. मंत्रालयों के कार्यालय जहाँ से ये बधाइयां और चित्र जारी होते हैं ,ट्वीट होत