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संकल्प शक्ति

लघुकथा  *संकल्प शक्ति*  ©कुमार अनेकान्त मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूँ ,क्या मेरे भाग्य में ऐसा कुछ लिखा है ? ज्योतिषी  जी को अपनी कुंडली दिखाते हुए एक युवक ने पूछा ।  बन सकते हो मगर एक अड़चन है । क्या ? युवक ने अचरज भरे शब्दों में पूछा । ज्योतिषी जी ने कहा - संकल्प शक्ति का अभाव है ,आत्म विश्वास की कमी दिखाई दे रही है ,नहीं तो राज योग तो बड़ा प्रबल है । युवक बोला - लेकिन महाराज मेरे हिसाब से अंदर इन दोनों की कमी बिल्कुल भी नहीं है और फिर भी कोई कमी हो तो आप बताएं । *अगर तुम्हारे अंदर ये दोनों होते तो इस तरह कुंडली लेकर अपना भाग्य नहीं पूछते फिरते*- ज्योतिषी जी ने युवक को तर्क देते हुए समझाया ।

महामारी ,महामंत्र और आत्मशांति

                            महामारी , महामंत्र और  आत्मशांति                                                                  ✍️ प्रो.डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली#                                                                               drakjain2016@gmail.com                     बहुत धैर्य पूर्वक भी पढ़ा जाय तो कुल 15 मिनट लगते हैं108 बार भावपूर्वक णमोकार मंत्र का जाप करने में ,किन्तु हम वो हैं जो घंटों न्यूज चैनल देखते रहेंगें,वीडियो गेम खेलते रहेंगे,सोशल मीडिया पर बसे रहेंगे ,व्यर्थ की गप्प शप करते रहेंगे लेकिन प्रेरणा देने पर भी यह अवश्य कहेंगे कि 108 बार हमसे नहीं होता ,आप कहते हैं तो 9 बार पढ़े लेते हैं बस और वह 9 बार भी मंदिर बन्द होने से घर पर कितनी ही बार जागते सोते भी नहीं पढ़ते हैं ,जब कि आचार्य शुभचंद्र तो यहाँ तक कहते हैं कि इसका पाठ बिना गिने अनगिनत बार करना चाहिए | हमारे पास सामायिक का समय नहीं है । लॉक डाउन में दिन रात घर पर ही हैं फिर भी समय नहीं है । हम वो हैं जिनके पास पाप बांधने के लिए 24 घंटे समय है किंतु पाप धोने और शुभकार्य  के लिए 15 मिनट भी नहीं हैं और हम क

तत्त्वज्ञानी को शोक नहीं होता

*तत्वज्ञानी को शोक नहीं होता* *डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली* drakjain2016@gmail.com वर्तमान का समय ऐसा समय है जब ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा जब अपने परिजन,मित्र,साधर्मी के वियोग की सूचना न मिल रही हो । उन सूचनाओं से वे लोग तो अत्यधिक शोक को प्राप्त हो ही रहे हैं जो दिवंगत से साक्षात् जुड़े रहे,किन्तु वे लोग भी शोकाकुल हो रहे हैं जो उनसे मात्र परिचित थे ।   सात्विक,ज्ञानी,त्यागी व्रती, धार्मिक, साधु संतों,विद्वानों,श्रावकों के वियोग तो शोक के साथ साथ आश्चर्य में भी डाल रहे हैं । ऐसे विषम क्षण में   जिससे जो बन पड़ रहा है उतनी एक दूसरे की सहायता भी कर रहे हैं ,जीवन रक्षा के सारे प्रयास भी कर रहे हैं किंतु इन सबके बाद भी ऐसा लग रहा है कि कितने ही क्षण ऐसे आते हैं जब लगता है अब किसी के हाथ में  कुछ भी नहीं सिवाय चिंता ,दुःख और शोक करने के । जैन आगमों में ऐसे शोक के समय में भी शोक करने को उचित नहीं माना गया है । यद्यपि भूमिका अनुसार वह होता है किंतु उचित तो बिल्कुल भी नहीं है । वास्तव में देखा जाय तो ये वैराग्य के प्रसंग हैं । चंद बाह्य क्रियाओं के आधार पर  हम स्वयं को बहुत ज्ञानी और धर्मात्मा