*आचार्य श्री से हमने क्या सीखा ?* - डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com आज सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य विद्यानंद मुनिराज हम सभी के बीच नहीं हैं । दिनांक २२/०९/२०१९ को ब्रह्म मुहूर्त में यम सल्लेखना पूर्वक साम्य भाव से उनका समाधि मरण दिल्ली स्थित कुंदकुंद भारती में हो गया । श्रमण जैन संस्कृति का एक महान् सूर्य अस्त हो गया । वैसे तो बचपन से उनके दर्शन कई बार किए और अपने पिताजी प्रो डॉ फूलचंद जैन प्रेमी जी से उनकी महिमा का गुणगान आरंभ से ही सुनते आ रहे थे किन्तु मेरा विशेष संपर्क उन दिनों हुआ जब मैं राजस्थान में पी एच डी का विद्यार्थी था । हम यूजीसी की नेट परीक्षा देते थे और सन् १९९८-९९ के लगभग यूजीसी ने प्राकृत एवं जैनागम विषय में से प्राकृत को समाप्त कर दिया था । उन दिनों इस विषयक मैंने कई आंदोलन किए और सभी बड़े अधिकारियों और विद्वानों को कई पत्र लिखे किन्तु कोई हल नहीं निकला । इसी बीच मैंने पता नहीं क्यों आचार्य श्री के नाम एक पोस्टकार्ड लिखकर कुंदकुंद भारती के पते पर भेज दिया और कुछ दिनों बाद साक्षात् आकर उनके दर्शन करके यह बात कही । इस बात पर उन्होंने तुरंत