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उत्तम आर्जव



दशलक्षण धर्म एक झलक

तृतीय दिवस

उत्तम आर्जव

ऋजुता‌ अर्थात् सरलता का नाम आर्जव है । सच्ची श्रद्धा सहित जो वीतरागी सरलता होती है  उसे उत्तम आर्जव धर्म कहते हैं ।

आत्मा में उत्तम आर्जव धर्म माया कषाय के अभाव में प्रगट होता है ।

शास्त्रों में कहा गया है कि मायाचारी व्यक्ति वर्तमान में भले ही छल कपट करके खुद को बहुत होशियार या सफल मानता फिरे , दूसरों को ठग कर बेवकूफ बनता रहे किन्तु इस मायाचारी प्रवृत्ति का फल तिर्यंच  गति होता है अर्थात् इसके फल से मनुष्य अगले जन्म में पशु पक्षी बन कर बहुत दुख उठाता है । ऐसा करके खुद को ठगता है और मन ही मन प्रसन्न होता है कि मैंने दूसरे को ठग लिया ।

जैन दर्शन कहता है कि मनुष्य के सभी कार्य पूर्व के पुण्य उदय से सिद्ध होते हैं मायाचारिता से नहीं । छल करने वाला मनुष्य अपनी प्रामाणिकता खो देता है । आपके व्यक्तित्व पर कोई भरोसा नहीं करता ।

वर्तमान में  मायाचारिता को एक गुण समझा जा रहा है ।सरलता को वर्तमान समाज में मूर्खता कहा जाने लगा है । यह अशुभ संकेत है ।

वास्तविकता यह है कि मायाचारी व्यक्ति को पूरी दुनिया टेढ़ी दिखाई देती है , वह हमेशा सशंक और तनाव में रहता है । मन में चोर भरा हो तो पूजा ,पाठ , अभिषेक , ध्यान ,सामयिक से भी शांति नहीं मिल सकती । क्यों कि मायाचारी यह सब भी माया कषाय के वशीभूत होकर करने लगता है ।

माया के कारण हम समाज में एक मुखौटा लगा कर जी रहे हैं । रोज मुखौटे बदलते हैं । मुखौटे पहनने के इतने आदि हो गए हैं कि हमारा असली चेहरा क्या है हम वो भी भूल चुके हैं ।

सरलता आत्मा का मूल स्वभाव है और माया विभाव है । माया कषाय का जीवन में अभाव करके परम वीतरागी सरलता रूप स्वभाव प्रगट करने का सभी को प्रयास करना चाहिए ।

*अंदर बाहर एक हो नर वो ही है महान्* ।

*तारे भव समुद्र से आर्जव धर्म महान्* ।।

प्रो अनेकांत कुमार जैन
drakjain2016@gmail.com

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