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जब विवाह समारोह में किये कुछ अनुकरणीय प्रयोग*

*जब विवाह समारोह में किये कुछ अनुकरणीय प्रयोग* *प्रो अनेकांत कुमार जैन*, नई दिल्ली आज मेरे लघु भ्राता डॉ.अरिहंत जैन एवं श्रीमती नेहा जैन के विवाह की प्रथम वर्ष गांठ है । विगत वर्ष  विवाह को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें लिखना चाहता था किन्तु विवाह की तैयारी को लेकर तमाम व्यस्तता के कारण में चाह कर भी लिख न सका । यद्यपि मध्यम वर्ग के वैवाहिक कार्यक्रम में तमाम चीजें आपके हाथ में नहीं होती हैं और नए पुराने रिश्तेदार और रिश्तेदारी के मायाजाल और रहस्यमय रीति रिवाजों , नैंग चारों औेर तमाम मतभेदों के बीच आप चाहकर भी क्या कुछ कर पाते हैं और क्या नहीं कर पाते हैं ये अलग बात है । किन्तु इन सभी स्थितियों के बीच भी हम प्यार से चाहें तो इन रीति रिवाजों के मध्य कुछ नए प्रयोग अवश्य कर सकते हैं । आज मैं कुछ उन प्रयोगों को प्रेरणा के लिए इस लिए यहां लिख रहा हूं क्यों कि यही एक माध्यम है जिससे विचारों में परिवर्तन किया जा सकता है । विवाह गृहस्थ धर्म का एक मंगल अनुष्ठान माना जाता है । उसे अपने धर्म, संस्कृति और परंपरा के अनुरूप करने में लोग झंझट समझने लगते हैं किंतु अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परि

Jainism and Prakrit studies in Indian Universities and Institutions

Jainism and Prakrit studies in Indian Universities and Institutions * (Running regular MA , Acharya and PhD courses )    - *Prof Anekant Kumar Jain , New Delhi* 1. Deptt. Of Jain Philosophy , Shraman Vidya Sankaaya, Sampurnanad Sanskrit University , Varanasi 2.Deptt. Of Prakrit and Jainagam , Shraman Vidya Sankaaya, Sampurnanad Sanskrit University , Varanasi 3.Deptt. Of Jain Philosophy , Sanskrit Dharm Vigyan Sakaaya, Banaras Hindu University , Varanasi 3.Deptt. Of Jainology, University of Maysore, Maysore , Karnataka 4. Deptt. Of Jainology, University of Madras, Chennai , Tamil Nadu 5.Deptt. Of Jainology and Prakrit,M.S. University,Udaipur,Rajasthan 6.Chair for Jain Studies, J. R.Sanskrit. University,Jaipur 7.Deptt. Of Jain Philosophy, Rashtriya Sanskrit Sansthan(DU)Jaipur Campus,Jaipur 8.Deptt. Of Jain Philosophy, Rashtriya Sanskrit Sansthan(DU)Bhopal Campus,Bhopal 9.Deptt. Of Jainology Comparative religion and Philosophy, Jain Vishva Bharti University, Ladn

प्राकृत समाहिमरणभावणा

आयरिय-अणेयंतकुमारजइणेण विरइदं      समाहिमरणभावणा    ( समाधि मरण भावना   )           (उग्गाहा छंद) उवसग्गे दुरभिक्खे , असज्झरोगे च विमोयणकसाय । अब्भंतरबाहिरा च सल्लेहणपुव्वगं मरणसमाहि ।।1   ।। असाध्य उपसर्ग   , दुर्भिक्ष या रोग आदि आने पर अभ्यांतर और बाह्य कषाय के विमोचन के लिए सल्लेखना पूर्वक मरण समाधि कहलाती है ।।   ।। वित्तेण     वि   खलु    मरिज्जदि , अवित्तेण    वि    खलु   अवस्स   मरिज्जदि   ।   जदि   दोहिं     वि    मरिस्सदि  , वरं हि   सु दाण ेण खलु    मरिदव्वं ।।2 ।।   धन के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है ,  धन के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा ,  तो उत्तम है (व्यक्ति को) सम्यक् दानपूर्वक ही मरण करना चाहिए। परिग्गहेण   मरिज्जदि , अपरिग्गहेण वि अवस्स   मरिज्जदि   । जदि   दोहिं वि   मरिस्सदि , वरं   हि   अपरिग्ग हे ण मरिदव्वं ।।3 ।।   परिग्रह   के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है ,  परिग्रह  के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा