*स्त्री सशक्तिकरण के असली मायने* प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली पल्लू-घूंघट- चुन्नी नहीं ओढ़ने पर आपको टोकने वाले कौन लोग हैं ? इसी तरह अमर्यादित खुले वस्त्र जिनसे आपके अंग प्रत्यंग उभरकर सामने आते हैं - नहीं पहनने के लिए कहने वाले आपके वे अपने ही हैं ,जो आपके हितैषी हैं ,दूसरों का क्या है ? वे तो चाहते ही हैं कि छद्म आधुनिकता के नाम पर आप कम से कम वस्त्रों में ही घूमें ,ताकि उन्हें सबकुछ देखने को मिले । हमें अपने बाधक ,पिछड़े और बुरे लगते हैं और पराये आधुनिक ,विकसित और सम्मोहक लगते हैं । हमें बचाने वाले अब खटकने लगे हैं और लूटने वाले भाने लगे हैं । आज जब स्त्री स्वतंत्र हुई है तो उसका निर्लज्ज वस्त्र विन्यास,अश्लील फेसबुक रील,उच्छृंखल आचरण और स्वच्छंद ,असंयमित बात व्यवहार देखकर समझ आता है कि पुराना समाज इन्हें क्यों घरों में पर्दे में रखने का पक्षधर था ? समाज इन दिनों भयंकर रूप से खोखलेपन के साथ खुलेपन का शिकार है । आश्चर्य यह है कि इसे आधुनिकता और विकास वाद समझा और कहा जा रहा है । स्कूलों ने भी कन्याओं के चुन्नी आदि अंग वस्त्र अपने ड्रेस कोड से हटा लिए हैं ।समाज में