संस्कृत पढ़ी पुलिस के संस्कार
अभी हावड़ा में RPF की एक बंगाली युवा महिला पुलिस मिठू को जब यह पता चलता है कि मैं लाल बहादुर संस्कृत विद्यापीठ , दिल्ली में पढ़ाता हूँ तो वह श्रद्धा से स्वयं मेरा सूटकेस उठा लेती है ,और ट्रेन लेट होने के कारण पुलिस बूथ पर एक कुर्सी लगा कर बैठाती है ,थोड़ी देर में स्वयं एक गर्म चाय लेकर देती है , पहले से न कोई जान न पहचान ,,,,,,,,,,,,पूछने पर बोली गुरु जी मैं सीताराम वैदिक आदर्श संस्कृत महाविद्यालय ,कोलकाता की छात्रा रही हूँ । मैंने बौद्ध दर्शन से आचार्य किया है ,मेरे गुरु जी ने बताया कि आप जैनदर्शन पढ़ाते हैं ,आप भी मेरे गुरु जी ही हुए न !
फिर गाडी का समय होने पर मुझे ससम्मान A1 कोच तक सामान सहित बैटरी रिक्शे से भिजवाया ।बहुत विनम्र और मृदुभासी उस सांवली बंगाली कांस्टेबल ने कहा गुरु जी मैं जैनदर्शन जानना चाहती हूँ किन्तु अब नौकरी के कारण पढ़ने का समय नहीं मिलता ।मैंने उसे अपनी एक किताब देकर गौरव का अनुभव किया और सोचने लगा कि संस्कृत पढ़कर पुलिस बनने पर पुलिस भी संस्कारी और सेवा भावी कितनी आसानी से बन सकती है । अन्य सभी महिला पुलिस की अपेक्षा वह अपने अधिक सहयोगी और मधुर व्यवहार ,संस्कार के कारण कितनी भिन्न और आदर्श प्रतीत हो रही थी ।
बस संकोच वश मोबाइल से उसका चित्र नहीं ले पाए ....यही एक कमी अखर रही है ।
-डॉ अनेकान्त कुमार जैन 4/12/2016
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