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भारतीय संस्कृति के विकास में तीर्थंकर ऋषभदेव का योगदान

गोमटेश के दर्शन से विकार भागता है ना कि उत्पन्न होता है”

दिगंबर गोमटेश के दर्शन से विकार भागता है ना कि उत्पन्न होता है” डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली  दिगंबर जैन सम्प्रदाय के परम आराध्य जिनेन्द्र देव या तीर्थंकरों की खड्गासन मुद्रा में निर्वस्त्र और नग्न प्रतिमाओं को लेकर खासे संवाद होते रहते हैं | नग्नता को अश्लीलता के परिप्रेक्ष्य में भी देखकर पीके जैसी फिल्मों में इसे मनोविनोद के केंद्र भी बनाने जैसे प्रयास होते रहते हैं | दिगंबर जैन मूर्तियों के पीछे जो दर्शन है ,जो अवधारणा है उसे समझे बिना ही अनेक अज्ञानी लोग कुछ भी कथन करने से पीछे नहीं रहते | इस विषय को आज के विकृत समाज को समझाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर है | सुप्रसिद्ध जैन मनीषी सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचंद्र शास्त्री जी ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘जैनधर्म’ में मूर्तिपूजा के प्रकरण में पृष्ठ ९८ -१०० तक इसकी सुन्दर व्याख्या की है जिसमें उन्होंने सुप्रसिद्ध साहित्यकार काका कालेलकर जी का वह वक्तव्य उद्धृत किया है जो उन्होंने श्रवणबेलगोला स्थित सुप्रसिद्ध भगवान् गोमटेश बाहुबली की विशाल नग्न प्रतिमा को देखकर प्रगट किये थे | वे लिखते हैं - जैन मूर्ति निरावरण और निराभरण होती है जो

दुष्ट स्वभावी को सम्यक्त्व नहीं होता'

'दुष्ट स्वभावी को सम्यक्त्व नहीं होता' खुद्दो रुद्दो रुठ्ठो , अणिट्ठ पिसिणो सगव्वियो-सूयो । गायण-जायण-भंडण-दुस्सण-सीलो दु सम्म-उमुक्को ।। आचार्य कुन्दकुन्द ,रयणसार,44 अनेकान्तानुवाद - छोटे मन वाले क्रोध के स्वामी हर बात पर नाराज होते पर अनिष्ट इच्छाधारी चुगली करते फिरते ईर्ष्या में डूबे रहते अभिमान के शिखर पर चढ़ते कलह में आनंद लेते याचना में गीत गाते दूसरों पर दोष देते इस प्रवृत्ति के मुमुक्षु सम्यक्त्व से हैं रहित होते गाथार्थ - क्षुद्र और रौद्र(क्रोध) स्वभाव वाले  , बात बात पर रुष्ट (नाराज )होने वाले,दूसरों का अनिष्ट चाहने या करने वाले , चुगलखोर, अभिमानी,ईर्ष्यालु,गायक,याचक,कलह करने वाले और दूसरों को दोष लगाने वाले----ये सब सम्यक्त्व रहित होते हैं । प्रस्तुति - डॉ अनेकान्त कुमार जैन , नई दिल्ली