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लघुकथा - गुरुकुल बनाम गुरूमन्दिर

*लघुकथा* *गुरुकुल बनाम गुरूमन्दिर* प्रो अनेकान्त जैन drakjain2016@gmail.com 22/02/2021 प्रातः7बजे एक गुरु जी ने एक आध्यात्मिक गुरुकुल खोला । वे बहुत समर्पण के साथ अध्यापन कार्य करते थे । उनके शिष्य बहुत ज्ञानी होने लगे जिससे उनकी ख्याति भी देश विदेश में फैलने लगी । सैकड़ों शिष्य रोजाना अध्ययन करते । गुरु जी दो समय प्रवचन भी करते जिसमें हजारों आम  श्रोता भी आते और ज्ञान प्राप्त करते । एक दिन गुरु जी की आयु पूर्ण हो गयी । अपने एक शिष्य को गुरुकुल सौंप कर स्वर्ग सिधार गए ।  वह प्रधान शिष्य गुरु जी द्वारा सीखे गए ज्ञान को वितरित करने लगा ।  पर अब वैसा महौल नहीं रह गया । शिष्य भी गुरु जी को बहुत याद करते । एक दिन सभी ने निर्णय लिया कि गुरुकुल में गुरु जी की एक प्रतिमा स्थापित की जाए ताकि हम सभी साक्षात् उन्हें देखकर उनकी याद कर सकें और प्रेरित हो सकें । ऐसा ही हुआ ।  कक्षाएं पूर्ववत् चलती रहीं । प्रतिमा बनी तो लोग उनपर अर्घ समर्पित करने लगे । एक शिष्य ने भक्ति पूर्ण पूजन लिख दी तो सभी प्रतिदिन प्रतिमा के समक्ष उस पूजन को पढ़ने लगे ।  एक ने गुरु जी की याद में एक बहुत भावुक भजन और आ

पापा की पाती

पापा की पाती (पुत्र के जन्म दिन पर पिता का पत्र )