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जनवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अधूरे जिनालय

हमारे अधूरे जिनालय प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com अभी कुछ दिन पहले  किसी निमित्त दिल्ली में वैदवाडा स्थित जैन मंदिर के दर्शनों का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ । बहुत समय बाद इतने भव्य , मनोरम और प्राचीन जिनालय के दर्शन करके धन्य हो गए ।  दिल्ली के प्राचीन मंदिरों में जाओ तो लगता है हम फिर वही शताब्दियों पूर्व उसी वातावरण में पहुंच गए जब पंडित दौलतराम जी जैसे जिनवाणी के उपासक अपनी तत्वज्ञान की वाणी से श्रावकों का मोक्षमार्ग प्रशस्त करते थे ।  वैदवाडा के उस मंदिर में एक माली सामग्री एकत्रित कर रहा था । हमने सहज ही उससे पूछा - भाई , यहां नियमित शास्त्र स्वाध्याय होता है ? नहीं... कभी नहीं होता - उसका स्पष्ट उत्तर था । मुझे आश्चर्य हुआ । मैने कहा- ऐसा क्यों कहते हो भाई , दशलक्षण पर्व में तो होता होगा ?  बोला - हां ,उसी समय होता है - बस । मैंने उसे समझाते हुए कहा - तो ऐसा क्यों कहते हो कि कभी नहीं होता ? कोई भी पूछे तो बोला करो होता है , मगर कभी कभी विशेष अवसरों पर होता है । मैंने उसे तो समझा दिया , लेकिन मेरा मन आंदोलित हो उठा ? ये क्या हो रहा है ? बात सिर्फ

सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए

सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए                                 प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली   ·          जैन भूगोल के अनुसार अढ़ाई द्वीप में कुल  170  सम्मेद शिखर हैं  , उसमें जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का सम्मेद शिखर वही है जो वर्तमान में भारतवर्ष के झारखंड राज्य में स्थित है तथा पार्श्वनाथ हिल के नाम से विख्यात है । ·          आचार्य कुन्दकुन्द( 1  शती) ने निर्वाण भक्ति में  , आचार्य यतिवृषभ ( 2-3 शती) ने तिलोयपण्णत्ति  के चौथे महाधिकार में  , आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में , आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण में  , आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में तथा अन्य अनेक आचार्यों ने अनेक ग्रंथों में सम्मेद शिखर जी को  20  तीर्थंकरों सहित करोड़ों मुनियों की निर्वाण स्थली कहा है । ·          ‘सम्मेद’ शब्द मूलतः प्राकृत भाषा का शब्द है |लगभग  1-3  शती के आगम साहित्य में प्राकृत भाषा में इसके तीन-चार रूप मिलते हैं  –  सम्मेद  ,  सम्मेय,संमेय और संमेअ  , जो कि लगभग एक हैं ,  आचार्य कुन्दकुन्द और आचार्य यतिवृषभ (तिलोयपण्णत्ति) सम्मेद शब्द का प्रयोग करते हैं जबकि पाइय-सद्द-महण्णव जै

संस्कृत बुरी क्यों है ?

  संस्कृत बुरी क्यों है ? प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com हम चाहे संस्कृत को देव वाणी कहें पर आज संस्कृत इतनी व्यापक और उपादेय होने के बाद भी बुरी क्यों लगती है ? इसका एक वाकया सामने आया | अभी कुछ समय पूर्व दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले मेरे बेटे ने एक फॉर्म लाकर मुझे दिया | यह क्या है ? पूछने पर उसने मुझसे कहा कि अब मुझे अगली कक्षा में फ्रेंच या संस्कृत में से एक भाषा का चुनाव करना है अतः अभिभावक के हस्ताक्षर सहित , भाषा चुनकर यह फॉर्म मुझे जमा करना है | मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के उससे पूछा तुम कौन सी भाषा पढ़ना चाहते हो ? ‘फ्रेंच’- उसका भोला सा उत्तर था | संस्कृत क्यों नहीं ? मैंने आश्चर्य से पूछा | उस अबोध बालक ने जो मुझे उत्तर दिया उसने हमारे द्वारा चलाये जा रहे सभी आन्दोलनों पर पानी फेर दिया | उसने कहा - फ्रेंच बहुत अच्छी है और संस्कृत बहुत बुरी | मैंने उसे समझाते हुए पूछा- बेटा, फ्रेंच का तो तुमने नाम भी अभी सुना है ,और अभी पढ़ी भी नहीं है ,फिर वह अच्छी है ऐसा कैसे निर्णय किया ? और संस्कृत तो तुमने पढ़ी है उसके कई श्लोक भी तुम्हें याद है

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान प्रो अनेकान्त कुमार जैन  हम सभी इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि वे तीर्थ क्षेत्र जहाँ जहाँ पर्यटन विकसित होता है वहाँ आमदनी में भले ही कुछ इज़ाफ़ा होता हो पर पर्यावरण का काफी नुकसान होता है ।  उत्तराखंड के जोशी मठ की समस्या हमारे सामने दिख ही रही है । वहाँ के शंकराचार्य ये कह रहे हैं कि तीर्थ क्षेत्र को भोग क्षेत्र न बनाएं । तीर्थ क्षेत्रों को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने का दुष्परिणाम जोशी मठ की वर्तमान दशा के रूप में हमारे सामने दिख रहा है ।  वहाँ का विकास आज विनाश का रूप ले रहा है ।  लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर चिप्स कुरकरे के पैकेट,गुटखे तम्बाकू सिगरेट के पैकेट आदि तथा शराब की बोतलें ,पानी की प्लाटिक बोतलें आदि अत्यधिक मात्रा में फैली दिखती हैं ।  नदी नाले पहाड़ आदि में इनका कचड़ा दिखाई देता है ।  होटलों रेस्टोरेंटों में शराब और मांसाहार मुख्य रूप से होता ।  जीव जंतु जो इको सिस्टम को संतुलित रखते हैं उन्हें मारा जाता है और भोजन बनाया जाता है ।  जैसे ड्रग्स का व्यापार समाज और मनुष्य के लिए हानिकारक है इसलिए प्

सिद्धभूमि सम्मेद शिखर के आगम प्रमाण

               सिद्धभूमि श्री सम्मेद शिखर के आगम प्रमाण                           प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,आचार्य - जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली  णमो सम्मेयसिहरस्स तीर्थराज सम्मेद शिखर शाश्वत तीर्थ है । यह जैन परंपरा के 20 तीर्थंकरों की निर्वाण स्थली है । जैन प्राकृत आगम साहित्य में इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं ।  प्रथम शती में आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं -   वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्वकिलेसा। संमेदे गिरिसिहरे, णिव्‍वाणगया णमो तेसिं।।२।। अर्थात् जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्‍होंने समस्‍त क्‍लेशों को नष्‍ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्‍मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्‍त हुए हैं, उन सबको नमस्‍कार हो।(आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,1st A.D ) दूसरी - तीसरी शताब्दी में आचार्य यतिवृषभ लिखते हैं -        चेत्तस्स सुद्ध-पंचमि-पुव्वण्हे भरणि-णाम-णक्खत्ते । सम्मेदे अजियजिणो,मुत्तिं पत्तो सहस्स-समं ।। अर्थात् द्वितीय तीर्थंकर अजित जिनेन्द्र चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन पूर

सम्मेद शिखर में ‘सम्मेद’ शब्द का अर्थ विमर्श

           सम्मेद शिखर में ‘सम्मेद’शब्द का अर्थ विमर्श       प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली©   सम्मेद शिखर की चर्चा आज अपने चरम पर है | कई स्थलों पर यह भी पूछा जा रहा कि इस शब्द का अर्थ क्या है ? अतः मैं कुछ रिसर्च के माध्यम से इस शब्द का अर्थ खोजने और बताने का एक विनम्र प्रयास कर रहा हूँ | सम्मेद शिखर में शिखर शब्द स्पष्ट है गिरी या पर्वत ,इसके लिए जैन साहित्य में सम्मेद शैल शब्द भी आया है और उसके बाद शिखर शब्द का प्रयोग है ,ऐसा लगता है अंग्रेजों के बाद से ही इसे पार्श्वनाथ हिल भी कहा जाने लगा है | इसका जो पूर्ववर्ती पद है - सम्मेद ,इस पर विमर्श करना आवश्यक है |काफी विमर्श के बाद हम निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुंचे हैं – 1.सम्मेद शब्द भी इस पर्वत की भांति अनादि से है और जो इसकी संज्ञा के रूप में जुड़ा हुआ है,अतः यह संज्ञा भी शाश्वत है |मूलतः यह नाम निक्षेप ही प्रतीत होता है ,इसके शाब्दिक अर्थ की मीमांसा मुझे अभी तक कहीं देखने में नहीं आई है,लगता है अनादि नाम निक्षेप होने से और आर्ष प्रयोग होने से इसकी शब्द मीमांसा को आवश्यक नहीं समझा गया  | 2.सम्मेद शब्द का एक लोक प्रचलित रूढ़ अर्थ

सम्मेद शिखर हमारी आत्मा है ,उसे नष्ट न करें

णमो सम्मेयसिहरस्स सम्मेद शिखर हमारी आत्मा है ,उसे नष्ट न करें *वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्‍वकिलेसा।* *संमेदे गिरिसिहरे, णिव्‍वाणगया णमो तेसिं।।२।।* जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्‍होंने समस्‍त क्‍लेशों को नष्‍ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्‍मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्‍त हुए हैं, उन सबको नमस्‍कार हो।। (आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,प्रथम शताब्दी ) जिस प्रकार हिन्दू धर्म के लिए सबसे पवित्र चार धाम हैं , मुस्लिमों के लिए हज है ,सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा है  इसी प्रकार वर्तमान में झारखंड राज्य में स्थित सम्मेद शिखर जैन धर्म के लिए सबसे अधिक पवित्र पर्वत है जहाँ से जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त हुए थे ।  जैन आगमों के अनुसार यह शाश्वत पवित्र तीर्थ क्षेत्र है और अनादि से है । प्रत्येक जैन के लिए यहाँ की पवित्र यात्रा जीवन में अनिवार्य बनाई गई है । शास्त्रों में यहाँ की यात्रा के लिए कहा है -  *एक बार बंदे जो कोई ,ताहि नरक पशु गति नहीं होई*  अर्थात् जीवन में यदि किसी ने भाव पूर्वक एक बार भी इस पवित्र तीर्

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान होता है

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान होता है प्रो अनेकान्त कुमार जैन  हम सभी इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि जहाँ जहाँ पर्यटन विकसित होता है वहाँ  आमदनी में भले ही कुछ इज़ाफ़ा होता हो पर पर्यावरण का काफी नुकसान होता है ।  लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर चिप्स कुरकरे के पैकेट,गुटखे तम्बाकू सिगरेट के पैकेटआदि तथा शराब की बोतलें पानी की प्लाटिक बोतलें आदि अत्यधिक मात्रा में फैली दिखती हैं ।  नदी नाले पहाड़ आदि में इनका कचड़ा दिखाई देता है ।  होटलों रेस्टोरेंटों में शराब और मांसाहार मुख्य रूप से होता ।  जीव जंतु जो इको सिस्टम को संतुलित रखते हैं उन्हें मारा जाता है और भोजन बनाया जाता है ।  आय, व्यापार और रोज़गार का तर्क यदि इतना ही महत्त्वपूर्ण है तो ड्रग्स के व्यापार की छूट भी होनी चाहिए क्यों कि वह आय और रोज़गार का बहुत बड़ा साधन है । किंतु वह समाज और मनुष्य के लिए हानिकारक है इसलिए प्रतिबंधित है और अपराध की श्रेणी में आता है ।  इसी तरह जैन धर्म स्थलों को पर्यटन स्थल बनाना भी धर्म संस्कृति मूल्य और त्याग तपस्या की सनातन परंपरा को अपवित्र करना है । जिस धर्म के साधु और भक्त अपने त