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सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए



सम्मेद शिखर के रोचक तथ्य : जो आपको ज्ञात होना चाहिए

 

                              प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली

 

·        जैन भूगोल के अनुसार अढ़ाई द्वीप में कुल 170 सम्मेद शिखर हैं ,उसमें जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का सम्मेद शिखर वही है जो वर्तमान में भारतवर्ष के झारखंड राज्य में स्थित है तथा पार्श्वनाथ हिल के नाम से विख्यात है ।

·        आचार्य कुन्दकुन्द(1 शती) ने निर्वाण भक्ति में ,आचार्य यतिवृषभ (2-3शती) ने तिलोयपण्णत्ति के चौथे महाधिकार में ,आचार्य गुणभद्र ने उत्तरपुराण में,आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण में ,आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण में तथा अन्य अनेक आचार्यों ने अनेक ग्रंथों में सम्मेद शिखर जी को 20 तीर्थंकरों सहित करोड़ों मुनियों की निर्वाण स्थली कहा है ।

·        ‘सम्मेद’ शब्द मूलतः प्राकृत भाषा का शब्द है |लगभग 1-3 शती के आगम साहित्य में प्राकृत भाषा में इसके तीन-चार रूप मिलते हैं – सम्मेद , सम्मेय,संमेय और संमेअ ,जो कि लगभग एक हैंआचार्य कुन्दकुन्द और आचार्य यतिवृषभ (तिलोयपण्णत्ति) सम्मेद शब्द का प्रयोग करते हैं जबकि पाइय-सद्द-महण्णव जैसे प्राकृत कोश(पृष्ठ ८५०) में संमेअ’(संमेत)शब्द दिया है |

·        श्वेताम्बर मान्य अर्धमागधी आगम साहित्य द्वादशांग के छठे अंग नायाधम्मकहाओ के आठवें अध्ययन मल्ली में ‘सम्मेए पव्वए’  तथा ‘सम्मेयसेल सिहरे’ उल्लेख सम्मेद शिखर के रूप में आया है |यह आगम भगवान् महावीर का साक्षात्  उपदेश माना जाता है |

·        सम्मेद शिखर में वर्तमान में स्थित जलमंदिर को प्राचीन काल में अमृत वापिका कहा जाता था ।

·        तेरहवीं शती के विद्वान यति मदनकीर्ति शासन चतुस्त्रिंशिका में कहते हैं कि सम्मेद शिखर पर सौधर्म इंद्र ने 20 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित की थीं ,जिनके हृदय में श्रद्धा है वे ही इन प्रतिमाओं के दर्शन कर पाते हैं ।

·        जिनप्रभसूरी (14 शती) ने विविधतीर्थकल्प ग्रन्थ(तीर्थनामधेयसंग्रहकल्प:,पृष्ठ 86) में ‘संमेतशैले विंशतिर्जिनाः’ लिखा है  ।

·        भट्टारक जिनसेन (विक्रम संवत 1577-1607) ने सम्मेदशिखर की यात्रा का उल्लेख किया है ।

·        अपभ्रंश के कवि महाचंद्र ने विक्रम संवत 1587 में सारंग साहू का परिचय देते हुए सम्मेद शिखर यात्रा का वर्णन किया है ।

·        भट्टारक ज्ञानकीर्ति ने विक्रम संवत 1659 में यशोधर चरित नामक ग्रंथ की प्रशस्ति  में उल्लेख किया है कि राजा मानसिंह के मंत्री नानू ने सम्मेद शिखर पर बीस मंदिरों का निर्माण करवाया ।

·        भट्टारक रत्नचंद्र ने विक्रम संवत 1683 में अपनी रचना सुभौमचक्री चरित्र की प्रशस्ति में सम्मेद शिखर की यात्रा का उल्लेख किया है ।

·        पंडित मनरंगलाल ने 1793-18 43 ई. में सम्मेदाचल माहात्म्य की रचना भाषा छंद में की थी |

·        कवि देवदत्त दीक्षित(19 शती) ने सम्मेदशिखर माहात्म्य की रचना 21 अध्यायों में सरल और सुबोध संस्कृत में की है ।

·        जैन लोग इस पवित्र तीर्थ की पवित्रता को अक्षुण्ण रखने का पूर्ण प्रयत्न करते रहे हैं । सन 1859 से 1862 तक इस पहाड़ पर ब्रिटिश सेनाओं के लिए एक सेनिटोरियम बनाने के लिए सरकार की ओर से जांच हो रही थी ,किंतु सैनिकों के रहने से यहां मांस पकाया जाएगा ,इस आशंका से उस समय जैन समाज ने जबरदस्त विरोध किया था तब यह विचार सरकार द्वारा छोड़ दिया गया था ।

सन्दर्भ ग्रन्थ

1.    भारत के दिगंबर जैन तीर्थ ,भाग -2 ,पंडित बलभद्र जैन

2.    तिलोयपण्णत्ति, आचार्य यतिवृषभ

3.    विविधतीर्थकल्प, आचार्य जिनप्रभसूरी

4.    सम्मेद शिखर में ‘सम्मेद’शब्द का अर्थ विमर्श(लेख)-प्रो अनेकांत कुमार जैन

5.    जैन लक्षणावली-पंडित बालचंद सिद्धांत शास्त्री

6.    जैनेन्द्र सिद्धांत  कोश –क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी 


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