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युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​Must read and write your view







टिप्पणियाँ

Prof Anekant Kumar Jain ने कहा…
आपके विचार आमंत्रित हैं
Ritesh Jain ने कहा…
One more reason is that the temples are dominated by "Senior Citizens", who are apathetic to youth, even they are rude very often. Instead of encouraging the youth, they create panic on silly errors and dishearten them.
Children are seen as nuisance in the temple and we force them to see temple as "Oldies place". We catch them young!
Prof Anekant Kumar Jain ने कहा…
Respectful Anekant ji
Is awastha ke liye hamari hi kuch kamjoriya rahi hai.Mere vichar se hamne kabhi socha hi nahi ki itna vishal hai hamara Dharam aur itne vishal hamamare Dharmayatan ki aane wale samay me kon inki sewa maintenance karega agar yuwa pidhi taiyar nahi hogi to? Kuch sujhaw hai vichar kijiye
Apne mandiro se swadhyaya ki parampara uth si gayi hai.Ise punarojivit karne ki jarurat hai.jo vidwan ho we aise ho jo ki modern shaily me tatwa ki bat samajha sake.Ye baat to manani hi padegi ki tatwa gyan diye bina youngesterrs ko jod rakkhna muskil hai.

Mandiro me modern tarike ke programmes jaise
Skits
JAMS
Concerts
Vad vivads
Symposiums
Ĺekhan competitions
Work shops
Extempors
Etc ka ayojan samay samay par hone chahiye
Ye sab programmes koi dharmik parvo ke beech me na hokar alag se hone chahiye. Jaise ki Daslakshan parv ke samay nahi.programmes disipline tariko se ho ,ucçhaa quality wwale ho ,time bound ho,vicharottejjak ho , maryadit ho chahe kisi professional ki madad leni pade jaise ki event management walo ki to leni pade lekin quallity se compromise nahi kiya jaýe iske liye samaj ko age aana chahiye. Inka aim hoga charo anuyogo ko easy aur modern tarike se ghar ghar tak pahuchana.
Programmes me koi partiality garib paisewala unch neech nahi ho isko sunischit karna chahiye
Amiro ko chahiyye ki peeche pade sadharmi ke bacche ko bhi samman se dekhe aur usko upar uthne me madad kare varna yaha to malyyarpan bhi apne hi bachho se karwane ki parampara chalu hai.
Samaj ki sansthawo ko bhi chahiye ki is kam ke liye sahayog kare aur adhik se adhik youngesters ko jode bina kisi bhedbhaw ke taki naýe aane walo ko aukward feeling na ho.
Jab bhi mandiro me samuhik pùja ya vidhan adi ke proggrammes ho tab mandir trusty ko apñe karmchariyo ko adesh dewe ki kisi bhi agantuk ke pas us puja ki pustak turant pahuch jaye taki wo bhi puja bol sake to uske bhaw apneap badalenge(nirwikalpata) Arun Jain ,via WhatsApp
Unknown ने कहा…
लेख काफी प्रभावशाली है। कारण एवं निवारण दौनों ही समाविष्ट होने से स्वाभविक रूप से अपनी छाप छोडे विना नहीँ रह्ता। वैसे स्थिति पहिले से बहुत अच्छी है क्यौंकि अब अधिकांश युवा धर्म से जुड़े है। इसका श्रेय अच्छे प्रवचनकर्तायों को जाता है जो युवायों की शंकायों का convincing तरीके से समाधान देते है ।।
इंजी विजय जैन,भोपाल
Unknown ने कहा…
बहुत सटीक लेख . कारण ओर निवारण बहुत सुंदर
आपका लेख पढ़ने को मिला। सबसे पहले एक सुगठित लेख के लिए मैं आपको बधाई देती हूँ। इसमें आपने हमारे views बताने के लिए कहा तो मेरे विचार में -

मैं युवा पीढ़ी की धर्म से विमुखता तो नहीं कहूंगी। हैं तो सम्मुख ही, बस थोड़े कम हैं। मैं चारों ओर देखती हूँ, तो युवा special ocassions पर, महावीर जयंती, दीपावली, दश लक्षण पर्व, अपने B'day s पर मंदिर आते हैं। कई घरों में देखा गया है कि Sundays को भी आ जाते हैं।

लेकिन एक प्रश्न है कि धर्म का अर्थ मंदिर आना ही है क्या ? मैं देखती हूँ कि हमारे युवा अपना कार्य बड़ी निष्ठा व लग्न से करते हैं, पूरी ईमानदारी से सत्य, अहिंसा, अचौर्य का पालन करते हुए अपने work में आगे बढ़ रहे हैं। किसी की help करने की बारी आए तो बढ़- चढ़कर हिस्सा लेते हैं। समाज - सेवा में भी आगे रहते हैं। ये सब भी तो धर्म का व्यावहारिक स्वरूप ही है।

हाँ, मंदिर जाने की frequency अवश्य कम है। जब बच्चे छोटे होते हैं तो उन्हें मंदिर ले जाना आसान होता है। बड़े होने पर उनके अपने बहुत से कार्य, पढ़ाई, नौकरी इत्यादि का दबाव बढ़ जाता है। जिससे वे सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर मंदिर जाने से कतराने लगते हैं।

जो कार्यक्रम बड़े स्तर पर होते हैं, उनमें इतनी अव्यवस्था होती है जो युवाओं को पसंद नहीं आती। Stage पर बहुत सारे लोग चढ़ जाएंगे, वहीं खड़े हो जाएंगे, ज़ोर ज़ोर से speaker पर बोलना, बस fund इकट्ठा करने की बात करना, जिसमें युवाओं को बिल्कुल interest नहीं होता।

जैन धर्म कितना प्रैक्टिकल धर्म है, इसको real life से कितनी आसानी से relate किया जा सकता है, ये सब बताने वाले उन्हें बहुत कम ही मिलते हैं। जैन धर्म के scientific aspect को सरल शब्दों में सामने लाना आवश्यक है। जो हमारे धर्म की सरसता है, सुगंध है, उसे बनाये रखना आवश्यक है।

आडम्बरपूर्ण तरीकों से बचना, धर्म में राजनीति करने इत्यादि से बचना आवश्यक है।

- आशु जैन WhatsApp
Unknown ने कहा…
लेख न केवल युवाओं की बात कर रहा है अपितु सभी की। जो धार्मिक क्रियाओं में लगे हैं वे भी सोचते हैं कुछ जरूर अटल विश्वास रखते हैं।
मैं तो कहता हूँ वैज्ञानिक आधार पर चिंतन हो अन्य धर्मों से भी तुलना हो।मेरे पास इसकी पूरी योजना है कुछ से कहा भी परन्तु मूर्त रूप नहीं हो रही ।कोशिश में हूँ।
सुदर्शन भोपाल
Thanks your valuable feed back kindly send your proposal
🙏🏻🙏🏻आप का सार गर्भित लेख पढ़ने को मिला। आप की बात से पूर्णतः सहमत हूं। आज बच्चे धर्म से नहीं जैन धर्म के नाम पर नफरत कर रहे हैं मेरा अनुभव भी अच्छा नहीं है।
अगर मैंने नियमों के साथ मंदिर में प्रवेश नहीं किया होता तो शायद मैं मंदिर में कभी नहीं जाती। सुनीता जैन , WhatsApp group

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