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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग

*भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग* *प्रो. अनेकांत कुमार जैन*, अध्यक्ष -  जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली -१६ इतिहास गवाह है कि जैन धर्म तथा समाज राष्ट्र में मुसीबत के समय हमेशा कदम से कदम मिलाकर साथ देता है ।  राष्ट्र व्यापी लॉक डाउन के समर्थन में अपने जैन मंदिरों पर ताले लगा देना ,जैन समाज की समकालीनता और आध्यात्मिकता का सूचक है । जैन परम्परा में प्रतिदिन देव दर्शन तथा जिनालय में जिनबिम्ब का अभिषेक तथा पूजन एक अनिवार्य शर्त है जिसका कड़ाई से पालन होता है किन्तु करोना वायरस के प्रकोप के चलते राष्ट्रीय लॉक डाउन की घोषणा के तहत  ये नियमित अनिवार्य अनुष्ठान भी टाल कर जैन समाज ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ भी नहीं है । जब ऐसे समय में कई संप्रदाय अंध श्रद्धा के वशीभूत होकर अपनी कट्टर सोच और क्रिया में जरा सा भी परिवर्तन नहीं करते हैं वहीं जैन धर्म हमेशा से समकालीन युग चेतना को बहुत ही विवेक से संचालित करता है । यह प्रेरणा उन्हें तीर्थंकरों की अनेकांतवादी शिक्षा से प्राप्त होती है ।  दरअसल जैन दर्शन  में नि

करोना वायरस के भय से मुक्त करता है जैन दर्शन

*करोना वायरस के भय से मुक्त करता है जैन दर्शन* *प्रो. डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली*  हमें करोना वायरस से सतर्क रहना है , सभी नियमों का पालन करना है लेकिन भयभीत नहीं होना है । घबडाना नहीं है ।  करोना के साथ संघर्ष के लिए जो आत्मबल चाहिए,भय - चिंता और अवसाद उसे कमजोर बनाता है ।  भय, चिंता और अवसाद करोना से भी ज्यादा खतरनाक वायरस है ।  जैन दर्शन का शाश्वत सिद्धांत हमें सभी प्रकार के भय और चिंता से दूर करके हर परिस्थिति से विवेक और पुरुषार्थ पूर्वक लड़ना सिखाता है हमारा आत्मबल मजबूत करता है -  *जो जो देखी वीतराग ने सो सो होसी वीरा रे*  *अनहोनी सो कब हूं न होसी*  *काहे होत अधीरा रे* प्राकृत भाषा के प्राचीन आगम में दो गाथाएं ऐसी आती हैं जो हमें भय मुक्त बनाती हैं - *जं जस्‍स जम्मि देसे जेण विहाणेण जम्मि कालम्मि।*  *णादं जिणेण णियदं जम्‍मं वा अहव मरणं वा*।। *तं तस्स तम्मि देसे तेण विहाणेण तम्मि कालम्मि।* *को सक्कदि वारेदुं इंदो वा तह जिणिंदो वा*।।  कत्तिकेयाणुवेक्खा/गाथा ३२१-३२२ अर्थात् जिस जीव के, जिस देश में, जिस काल में, जिस विधान से, जो जन्‍म अथवा मरण जिनदेव ने नियत रूप से जाना है; उस ज

बना रहे बनारस

बना रहे बनारस होली का तीन दिन का अवकाश ,अचानक काशी यात्रा का कार्यक्रम और बनारस के रस की तड़फ ...सब कुछ ऐसा संयोग बना कि पहुँच ही गए काशी |इस बार बहुत समय बाद जाना हुआ |लगभग डेढ़ वर्ष बाद ...डर रहा था कि अपने बनारस को पहचान पाउँगा कि नहीं ? कहीं क्योटा न हो गयी हो काशी |भला करे भगवान् ....वही जगह ,वैसे ही लोग वही संबोधन ...का बे ....का गुरु .....???वाले और वे सारे स्वतः सिद्ध ह्रदय की निर्मलता से स्फुटित शब्द ..जिन्हें अन्यत्र अपशब्द कहा जाता है और कुटिलता में प्रयुक्त होता है | दिल्ली की सपाट ,साफ़ सुथरी किन्तु भयावह सड़कों को भुगतने के बाद ...काशी की उबड़ खाबड़ सड़कें और शिवाला के सड़क किनारे बने कूड़ा घर के बाहर लगभग आधे से अधिक सड़क भाग पर पसडा काशी का कूड़ा और आती दुर्गध भी मुझे उसी मूल काशी का लगातार अहसास करवा रहे थे और मैं  खुश था कि चाहे खोजवां हो ,या कश्मीरीगंज,अस्सी हो या भदैनी या फिर लंका से लेकर नरिया होते हुए सुन्दरपुर सट्टी इनका सारा कूड़ा बाहर रहता है ...दिल के अन्दर नहीं | भारत के स्व.... अभियान की सारी शक्ति भी इस शहर में लगा दें तो किसी को कोई फिकर नहीं है |बाबा भोले के भक्त अपन