सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

बना रहे बनारस

बना रहे बनारस

होली का तीन दिन का अवकाश ,अचानक काशी यात्रा का कार्यक्रम और बनारस के रस की तड़फ ...सब कुछ ऐसा संयोग बना कि पहुँच ही गए काशी |इस बार बहुत समय बाद जाना हुआ |लगभग डेढ़ वर्ष बाद ...डर रहा था कि अपने बनारस को पहचान पाउँगा कि नहीं ? कहीं क्योटा न हो गयी हो काशी |भला करे भगवान् ....वही जगह ,वैसे ही लोग वही संबोधन ...का बे ....का गुरु .....???वाले और वे सारे स्वतः सिद्ध ह्रदय की निर्मलता से स्फुटित शब्द ..जिन्हें अन्यत्र अपशब्द कहा जाता है और कुटिलता में प्रयुक्त होता है |
दिल्ली की सपाट ,साफ़ सुथरी किन्तु भयावह सड़कों को भुगतने के बाद ...काशी की उबड़ खाबड़ सड़कें और शिवाला के सड़क किनारे बने कूड़ा घर के बाहर लगभग आधे से अधिक सड़क भाग पर पसडा काशी का कूड़ा और आती दुर्गध भी मुझे उसी मूल काशी का लगातार अहसास करवा रहे थे और मैं  खुश था कि चाहे खोजवां हो ,या कश्मीरीगंज,अस्सी हो या भदैनी या फिर लंका से लेकर नरिया होते हुए सुन्दरपुर सट्टी इनका सारा कूड़ा बाहर रहता है ...दिल के अन्दर नहीं |
भारत के स्व.... अभियान की सारी शक्ति भी इस शहर में लगा दें तो किसी को कोई फिकर नहीं है |बाबा भोले के भक्त अपना स्वभाव नहीं छोड़ेंगे |मेरी तो कामना है कि मेरी ५००० साल पुराणी काशी को किसी की बुरी नज़र न लग जाये |
अस्सी घाट पर 'सुबह ए बनारस'का जो आंनंद लिया वह किसी क्लब या पार्टी में लाख रूपए ख़त्म कर दो तो भी न मिले |सूर्योदय की अरुणिम छटा...गंगा का शांत निर्मल प्रवाह ....शंख ध्वनि,कन्यायों के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सुन्दर आरती,फिर पंडित जी के शाश्त्रीय संगीत का रसास्वादन | पंडित जी ने जब राग मल्हार की तान छेडी तो उसकी टीप रामनगर के किले से कब टकराने लगी पता ही नहीं चला और फिर योग ध्यान व्यायाम ....ये सब किसी अमृत पान से कम नहीं था |कुल्हड़ में चाय की चुस्कियां और मगही पान ....और चाहिए भी क्या मस्त होने के लिए ?मैंने अपने पिताजी(प्रो.फूलचंद्र जैन प्रेमी )को ह्रदय से धन्यवाद दिया कि वो मुझे सुबह जगा कर अस्सी घाट ले आये और ‘सुबह ए बनारस‘ के अलौकिक दर्शन करवा दिए |वहीँ पर उनके पुराने मित्र श्री रत्नेश वर्मा जी भी मिल गए |मेरे लिए यह क्षण अविस्मरणीय तब बन गया जब यह पता लगा कि इस आयोजन के पार्श्व में डॉ वर्मा जी का ही विशिष्ट अवदान है |वे रोज सुबह आकर पूरा कार्यक्रम करवाते हैं |उसी समय जब मुझे पता चला कि डॉ वर्मा का जैन कलाओं पर ही शोध कार्य रहा है तो मेरी उत्सुकता और अधिक बढ़ गयी | उन्होंने मुझे इस कार्यक्रम की कई जानकारियां भी दी |घाट पर चारों  तरफ चित्रों के माध्यम से काशी एवं भारतीय संस्कृति के वैभव का दर्शन भी कम रमणीय नहीं था |सब कुछ ऐसा ही था जैसा काशी में है ......यही विकास है |अपने सांस्कृतिक वैभव का संरक्षण ही सच्चा विकास है न व्यापारिक मालों की चकाचौंध  | 
खैर छद्म विकास और बनारस ये दो विपरीत ध्रुव हैं जो कभी न ही मिलें तो ही भलाई है |होली की शाम को अस्सी पर आयोजित होने वाले ऐतिहासिक कवि सम्मेलन की कमी खली तो किसी ने बताया वो अब टाउन हाल में शिफ्ट हो गया |यही एक कसक रह गयी कि वहां न जा सका |
खैर मेरा डर दूर हो गया ........वो बना हुआ है ..स्वतः ...उसे कोई बना नहीं सकता ....वो शाश्वत है 
कामना भी यही है-बना रहे बनारस |

10/03/2015

(अनेकांत कुमार जैन की फेसबुक वाल )

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास

ये सोने की लंका नहीं सोने की अयोध्या है  प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास  (This article is for public domain. Any news paper ,Magazine, journal website can publish this article as it is means without any change. pls mention the correct name of the author - Prof Anekant Kumar Jain,New Delhi ) प्राचीन जैन साहित्य में धर्म नगरी अयोध्या का उल्लेख कई बार हुआ है ।जैन महाकवि विमलसूरी(दूसरी शती )प्राकृत भाषा में पउमचरियं लिखकर रामायण के अनसुलझे रहस्य का उद्घाटन करके भगवान् राम के वीतरागी उदात्त और आदर्श चरित का और अयोध्या का वर्णन करते हैं तो   प्रथम शती के आचार्य यतिवृषभ अपने तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में अयोध्या को कई नामों से संबोधित करते हैं ।   जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई अन्य ग्रंथ लिखे गये , जैसे   रविषेण कृत ' पद्मपुराण ' ( संस्कृत) , महाकवि स्वयंभू कृत ' पउमचरिउ ' ( अपभ्रंश) तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् राम का मूल नाम ' पद्म ' भी था। हम सभी को प्राकृत में रचित पउमचरिय...

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...