सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अक्तूबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धार्मिक सहिष्णुता की एक प्राचीन कहानी

गुरुनानक जी की ५५० वीं जयंती  प्रकाश पर्व पर विशेष  सादर प्रकाशन हेतु  धार्मिक सहिष्णुता की एक प्राचीन कहानी प्रो अनेकांत कुमार जैन           जैन दर्शन विभाग  श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ ( मनित विश्वविद्यालय ),  , नई दिल्ली -१६ drakjain2016@gmail.com 2016 में महावीर जयंती के दिन मुझे पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित गुरु ग्रन्थ साहिब वर्ल्ड यूनिवर्सिटी में एक अन्ताराष्ट्रीय सम्मेलन में जैनदर्शन पर व्याख्यान देने हेतु जाने का अवसर प्राप्त हुआ| फतेहगढ़ साहिब पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिला का मुख्यालय है। यह जिला सिक्‍खों की श्रद्धा और विश्‍वास का प्रतीक है।  पटियाला के उत्‍तर में स्थित यह स्‍थान ऐतिहासिक और धार्मिंक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है। सिक्‍खों के लिए इसका महत्‍व इस लिहाज से भी ज्‍यादा है कि यहीं पर गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों को सरहिंद के तत्‍कालीन फौजदार वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था। उनका शहीदी दिवस आज भी यहां लोग पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। फतेहगढ़ साहिब जिला को यदि गुरुद्वारों का शहर कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यहां पर अनेक गुरुद्वारे है

अणुवेक्खासारो अनुप्रेक्षासार

कितनी जरूरी है भाषा समिति

प्रवृत्ति के बिना मनुष्य नहीं रह सकता । वह यदि अपनी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाए तो ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकता है कि वह निरर्थक प्रवृत्ति न करे । यदि वह साधक है तो वह यह कर सकता है कि वह वही प्रवृत्ति करेगा जिससे साधना प्रभावित न हो या कम से कम प्रभावित हो । वह धर्म की अनिवार्य प्रवृत्ति ही करता है । समिति क्या होती है ?  यह समिति किसी संस्था या संगठन का नाम नहीं है जैसे महासमिति आदि । यह समिति साधक को अनिवार्य प्रवृत्ति के तौर तरीके सिखाती है । हमारी प्रवृत्ति ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी भी प्राणी को नुकसान न हो और हमारी प्रवृत्ति भी हो जाय । आचार्य पूज्यपाद लिखते हैं -   प्राणिपीडापरिहारार्थं सम्यगयनं समिति:। अर्थात् प्राणी पीड़ा के परिहार के लिए सम्यग् प्रकार से प्रवृत्ति करना समिति है। (सर्वार्थसिद्धि/9/2/409/7) मुनिराज इसका पूर्णतः पालन करते हैं पर श्रावक भी यदि इसका पालन कर सकें तो कोई बुराई नहीं है । कर सकें क्या करना ही चाहिये । समिति का उल्लेख मुनियों के अट्ठाइस मूलगुणों में अवश्य है किंतु जिस प्रकार पाँच महाव्रतों को ही श्रावक अपनी भूमिका अनुसार पाँच अणुव्रतों के रूप में पालन

अवसाद की समस्या और जैन सिद्धांत

अवसाद की समस्या के निवारण में जैन सिद्धान्तों की भूमिका डॉ. अनेकान्त कुमार जैन आचार्य - जैनदर्शनविभाग दर्शन संकाय, श्री लाल बहादुर शास्त्रीराष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , क़ुतुब सांस्थानिक क्षेत्र,नई दिल्ली – ११००१६ आज विश्व की मुख्य समस्यायों में से एक सबसे  बड़ी  समस्या  है – बढ़ता  मानसिक तनाव और अवसाद |यह एक ऐसी समस्या है जिससे सामने आधुनिकता और विकास के हमारे सारे तर्क बेमानी लगने लगे हैं |इतना पैसा ,समृद्धि,विकास आखिर किस काम का यदि हम सुख और शांति की नींद भी न ले सकें | मनुष्य का यह विकास नहीं ह्रास ही माना जायेगा कि सारे संसाधन होते हुए भी वह निरा असहाय और अशांत है ,आखिर ऐसी उन्नति किस काम की जो अशांति पैदा करती है ,हमें सुख से जीने नहीं देती | विकास की इस छद्म दौड़ ने हमें इकठ्ठा करना तो सिखाया ,लेकिन त्याग के मूल्य को समाप्त कर दिया जो हमें सुख देता था |  विकास ने हमें सोने के लिए मखमली गद्दे तो दे दिए लेकिन वो नींद छीन ली जो चटाई पर भी सुकून से आती थी | निश्चित ही हम किसी परिपूर्ण दिशा में आगे नहीं बढ़ रहे हैं | विकास को नकारा  नहीं  जा सकता लेकिन जीवन की सुख शांति से भी समझौता

संपादक संघ का अधिवेशन : जैसा मैंने देखा और सुना

अखिल भारतीय जैन संपादक संघ द्वारा आयोजित वार्षिक अधिवेशन एवं तीर्थ वंदना कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ । यात्रा अविस्मरणीय रही । ताजगंज में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की कसौटी पाषाण द्वारा निर्मित प्राचीन नौ फणी प्रतिमा के दर्शन कर धन्य हुए । पंडित बनारसी दास जी की हस्तलिखित पांडुलिपियां देखकर मन गदगद हो उठा । शौरीपुर बटेश्वर में भी प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन किये । करहल में भी विशाल जैन मंदिरों और प्रतिमाओं के दर्शन हुए तथा रात्रि में मनमोहक कार्यक्रम हुए । अनेक साधु संतों के दर्शन भी हुए और आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ । अहिंसा तीर्थ इटावा में आपने प्राकृत समाचार पत्र को पुरस्कृत किया ,उससे इस दुर्लभ कार्य को प्रोत्साहन मिला ।  इस तरह के कार्य जिनमें मेहनत ज्यादा होती है और पाठक कम ,फिर भी भाषा एवं संस्कृति संरक्षण की दृष्टि से संपादक संघ ने उसे संज्ञान में लिया और पुरस्कृत किया । इससे आशा जगी कि ऐसे कार्य भी करते रहना चाहिए । परखी लोग उसकी कीमत अवश्य पहचानते हैं और प्रोत्साहित भी करते हैं ।  सभी सफल कार्यक्रम हेतु सभी आयोजकों एवं प्रायोजकों

जैन एकता के सात सूत्र

* जैन एकता के सात सूत्र * डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com 15/10/2021,दशहरा दुनिया का ऐसा कोई धर्म नहीं है जहां सम्प्रदाय विभाजन नहीं है लेकिन जैन धर्म दुनिया का एक मात्र ऐसा धर्म है जहाँ सम्प्रदाय विभाजन के बाद भी मुख्य सिद्धांत एक हैं ,तीर्थ एक हैं और तत्त्वार्थसूत्र जैसे शास्त्र एक हैं और वे एक साथ रहते ,खाते पीते और बोलते हैं । वे आपस में उतने ही भिन्न हैं जैसे एक परिवार के भाई भाई बहन बहन । वे आपस में वैसे ही लड़ते हैं जैसे हर घर में भाई बहन लड़ते हैं । एक दूसरे के हित का चिंतन भी हमेशा करते हैं । उनमें आपस में मत भेद हैं लेकिन मनभेद बिल्कुल नहीं है । निम्नलिखित सात सूत्रों पर यदि अमल किया जाय तो जैन समाज की सामाजिक एकता और अधिक मजबूत हो सकती है --- 1.एकता समाज के लिए अनिवार्य है ,यह समाज विज्ञान है ,इसे मोक्ष के साथ न जोड़ें । 2.सम्प्रदाय और  पंथ एक दूसरे को मिथ्यादृष्टि न कहें । 3. व्यक्तिवाद को प्रश्रय न दें । तीर्थंकरों से ज्यादा किसी को भी ज्यादा महत्व न दें । एक गुरु की भक्ति में अन्य गुरुओं की अवहेलना न करें । 4. स्थूल रूप से मतभेद भी नहीं रखें