सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संपादक संघ का अधिवेशन : जैसा मैंने देखा और सुना

अखिल भारतीय जैन संपादक संघ द्वारा आयोजित वार्षिक अधिवेशन एवं तीर्थ वंदना कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त हुआ । यात्रा अविस्मरणीय रही । ताजगंज में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की कसौटी पाषाण द्वारा निर्मित प्राचीन नौ फणी प्रतिमा के दर्शन कर धन्य हुए । पंडित बनारसी दास जी की हस्तलिखित पांडुलिपियां देखकर मन गदगद हो उठा । शौरीपुर बटेश्वर में भी प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन किये । करहल में भी विशाल जैन मंदिरों और प्रतिमाओं के दर्शन हुए तथा रात्रि में मनमोहक कार्यक्रम हुए ।
अनेक साधु संतों के दर्शन भी हुए और आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ ।

अहिंसा तीर्थ इटावा में आपने प्राकृत समाचार पत्र को पुरस्कृत किया ,उससे इस दुर्लभ कार्य को प्रोत्साहन मिला ।

 इस तरह के कार्य जिनमें मेहनत ज्यादा होती है और पाठक कम ,फिर भी भाषा एवं संस्कृति संरक्षण की दृष्टि से संपादक संघ ने उसे संज्ञान में लिया और पुरस्कृत किया । इससे आशा जगी कि ऐसे कार्य भी करते रहना चाहिए । परखी लोग उसकी कीमत अवश्य पहचानते हैं और प्रोत्साहित भी करते हैं । 
सभी सफल कार्यक्रम हेतु सभी आयोजकों एवं प्रायोजकों को हार्दिक बधाई एवं अभिनंदन ।

प्रो डॉ अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली 

मानद संपादक 
पागद भासा

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​Must read and write your view