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जैन एकता के सात सूत्र

*जैन एकता के सात सूत्र*

डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
drakjain2016@gmail.com
15/10/2021,दशहरा

दुनिया का ऐसा कोई धर्म नहीं है जहां सम्प्रदाय विभाजन नहीं है लेकिन जैन धर्म दुनिया का एक मात्र ऐसा धर्म है जहाँ सम्प्रदाय विभाजन के बाद भी मुख्य सिद्धांत एक हैं ,तीर्थ एक हैं और तत्त्वार्थसूत्र जैसे शास्त्र एक हैं और वे एक साथ रहते ,खाते पीते और बोलते हैं ।

वे आपस में उतने ही भिन्न हैं जैसे एक परिवार के भाई भाई बहन बहन । वे आपस में वैसे ही लड़ते हैं जैसे हर घर में भाई बहन लड़ते हैं । एक दूसरे के हित का चिंतन भी हमेशा करते हैं । उनमें आपस में मत भेद हैं लेकिन मनभेद बिल्कुल नहीं है ।

निम्नलिखित सात सूत्रों पर यदि अमल किया जाय तो जैन समाज की सामाजिक एकता और अधिक मजबूत हो सकती है ---

1.एकता समाज के लिए अनिवार्य है ,यह समाज विज्ञान है ,इसे मोक्ष के साथ न जोड़ें ।

2.सम्प्रदाय और 
पंथ एक दूसरे को मिथ्यादृष्टि न कहें ।

3. व्यक्तिवाद को प्रश्रय न दें । तीर्थंकरों से ज्यादा किसी को भी ज्यादा महत्व न दें । एक गुरु की भक्ति में अन्य गुरुओं की अवहेलना न करें ।

4. स्थूल रूप से मतभेद भी नहीं रखें और मन भेद किसी भी रूप में न रखें ।

5. अस्तित्व के लिए हम दूसरों से संघर्ष करें ,आपस में नहीं ।

6.जैनों की जनगणना दोनों को मिलाकर होती है अलग अलग नहीं । अतः नाम और गोत्र के साथ साथ जैन टाइटल भी अवश्य लगाएं ।

7.एकता समन्वय का नाम है ,विलय का नहीं अतः दूसरे का पूरा सम्मान करते हुए अपनी विचारधारा और पंथ का संरक्षण और संवर्धन करें ।

सभी जैन एक थे ,एक हैं और रहेंगे ।

*णमो जिणाणं*

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