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सर्वधर्म समभाव मतलब क्या ?=डॉ अनेकांत कुमार जैन

गुरु  गोविन्द  सिंह  जी  की  ३५० वीं  जयंती  के  अवसर  पर 27 /12/2016  को  धर्म अध्ययन विभाग ,पंजाबी  विश्व विद्यालय  ,पटियाला  द्वारा  आयोजित  सर्व धर्म  समभाव  पर आधारित  राष्ट्रीय  सम्मेलन  के  उद्घाटन  में  प्रदत्त  मुख्य भाषण  का  सार   सर्वधर्म समभाव मतलब क्या ? डॉ अनेकांत कुमार जैन * धर्म एक होता है अनेक नहीं ,इसलिए सर्वधर्म शब्द कहने में मुझे हमेशा संकोच होता है ,जब एक ही है तो सर्व शब्द लगाने की आवश्यकता ही क्या है ? और समभाव ही तो धर्म है तो फिर अलग से इसके उच्चारण का क्या औचित्य है ? हाँ , यहाँ धर्म का अर्थ सम्प्रदाय से लगाया जा रहा है तो बात अलग है | फिर शीर्षक होना चाहिए ‘सर्व सम्प्रदाय अनुयायी समभाव’ |क्यों कि समभाव की आवश्यकता  सम्प्रदायों  को ज्यादा है  और उससे भी ज्यादा उनके अनुयायियों को उसकी आवश्यकता है | धर्म शब्द को अक्सर सीमित अर्थों में देखा जाता है इसीलिए समस्या हो जाती है | समन्वय का मतलब – ‘‘मैं जैन धर्म का अनुयायी हूँ , उन सभी लोगों की मैं चिंता करता हूँ जो जैन हैं | मुझे आपकी भी चिंता हो सकती है ,आपसे मेरा कोई द्वेष नहीं है किन्तु आपके धर्म से