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सुखी जीवन के लिए क्षमा करना और मांगना सीखें

जैन धर्म में क्षमावाणी पर्व पर्युषण और दसलक्षण पर्व के ठीक एक दिन बाद मनाया जाता है । भगवान महावीर ने सभी जीवों को सुखी होने के लिए जीवन जीने की जो आध्यात्मिक कला सिखलाई ,क्षमाभाव उनमें से एक है ।  क्षमापव्वं जीवखमयंति सव्वे खमादियसे च याचइ सव्वेहिं । ‘मिच्छा मे दुक्कडं ' च बोल्लइ वेरं मज्झं ण केण वि ।। क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है  हम अपने जीवन में झांक कर एक बार देखें तो पाएंगे कि मनुष्य भव की इस छोटी सी यात्रा में छोटी छोटी बातों को लेकर हम कितने चिंता ग्रस्त हैं और दूसरों को रखते हैं । क्षमाशीलता एक ऐसी अचूक औषधि है जो आपको इन व्यर्थ की चिंताओं से बचा कर रखती है । अगर किसी के प्रति कोई अपराध हमने पहले कर दिया है तो उस अपराध बोध से ग्रसित रहकर तनाव में रहने से लाख भला है कि हम उस अपराध की क्षमा मांग लें ।  भगवान महावीर ने प्रतिक्रमण का विधान इसीलिए किया था ताकि हम सिर्फ आपस में ही नहीं बल्कि सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों से भी क्षमा मांग सकें और निर्भार होकर साधना कर सकें

तीर्थंकर महावीर का पूर्ण स्वतंत्रता का संग्राम

स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर विशेष -  तीर्थंकर महावीर का पूर्ण स्वतंत्रता का संग्राम* प्रो अनेकान्त कुमार जैन  आचार्य - जैन दर्शन विभाग , श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com  हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं । भारत में अंग्रेजों की गुलामी से राजनैतिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति का यह अमृत महोत्सव है । किंतु आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व भारत की इस पवित्र धरा पर एक ऐसे महामानव का जन्म हुआ जिसने वास्तविक स्वतंत्रता की खोज की । वैशाली गणराज्य विश्व का पहला गणराज्य माना जाता है जहां जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था । पूरे विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले वैशाली में जिन भगवान महावीर का जन्म हुआ उन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में भी पूर्ण स्वतंत्रता और लोकतंत्र की स्थापना की ।  भगवान महावीर स्वतंत्रता की यह लड़ाई तब लड़ रहे थे जब धर्म और अध्यात्म की दृष्टि लगभग पूरा विश्व मात्र ईश्वर की इच्छा के आधीन था । ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता - यह दुनिया के लगभग सभी सेमेटिक धर्म अलग अलग भाषाओं में

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम प्रो अनेकांत कुमार जैन आचार्य – जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-16,Ph  ,9711397716 १९४२ में काशी के भदैनी क्षेत्र में गंगा के मनमोहक तट जैन घाट पर स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय और उसका छात्रावास आजादी की लड़ाई में अगस्त क्रांति का गढ़ बन चुका था |  जब काशी विद्यापीठ पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रावास जबरन खाली करवा दिया गया और आन्दोलन नेतृत्त्व विहीन हो गया तब आन्दोलन की बुझती हुई लौ को जलाने का काम इसी स्याद्वाद महाविद्यालय के जैन छात्रावास ने किया था | उन दिनों यहाँ के जैन विद्यार्थियों ने पूरे बनारस के संस्कृत छोटी बड़ी पाठशालाओं ,विद्यालयों और महाविद्यालयों में जा जा कर उन्हें जगाने का कार्य किया ,हड़ताल के लिए उकसाया ,पर्चे बांटे और जुलूस निकाले |यहाँ के एक विद्यार्थी दयाचंद जैन वापस नहीं लौटे , पुलिस उन्हें खोज रही थी अतः खबर उड़ा दी गई कि उन्हें गोली मार दी गई है,बी एच यू में उनके लिए शोक प्रस्ताव भी पास हो गया | उन्हें जीवित अवस्था में ही अमर शहीद ह