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सिवनी,म.प्र. के प्राचीन जैन मंदिर का कला वैभव

सिवनी,म.प्र. के प्राचीन जैन मंदिर का कला वैभव  जैन दर्शन के सुप्रसिद्ध विद्वान् स्व.पंडित सुमेरचंद दिवाकर जी की नगरी सिवनी में कई  परंपराएं अद्भुत हैं ।  1.शास्त्र पर छत्र स्थापित करके स्वाध्याय करना । 2.  200 किलो चांदी से बना अद्भुत विशाल जिनेन्द्र देव का रथ जिसमें 100 किलो चांदी द्वारा नवीनीकरण किया गया । कुल 300 किलो चांदी से निर्मित इस रथ को दशलक्षण पर्व,महावीर जन्मकल्याणक के अवसर शोभायात्रा में निकाला जाता है । प्रवचन हेतु पधारे विद्वान् इस रथ पर बैठते हैं ।  3. एक ही प्राचीन जिनालय में बड़ी संख्या में बेदियाँ , अनेकों प्राचीन प्रतिमाएं भी , स्फटिक मणि की विशाल प्रतिमाओं की अलग बेदी ।  4. एक ही मंदिर में अनेक शिखर और वे भी भिन्न भिन्न शैली में निर्मित ।  5.प्रवेश द्वार के करीब निर्मित बेदी में सोने से निर्मित अद्भुत कला युक्त गुम्बद ,दीवारें और छत । प्रो अनेकांत कुमार जैन  30/3/24

तीर्थ क्षेत्र पर सुविधा : जरूरत या विलास ?

वर्तमान में यदि सुविधाएं न हों तो आने वाली पीढ़ी तीर्थ जाएगी ही नहीं ,हमें घटती शक्ति और भक्ति दोनों में  संतुलन की दृष्टि से देखना चाहिए ।  यदि आप सुविधाएं नहीं देंगे तो दूसरे तो असुविधा में भी तीर्थ जाएंगे और कब्जा करेंगे ।  सुविधावादी जैन जाएंगे ही  नहीं, असुविधाओं के कारण जाने वाले जैनों की संख्या आप चाह कर भी नहीं बढ़ा सकते ।  अगर आप रोप वे का विरोध करते हैं , एयरपोर्ट का विरोध करते हैं तो ठीक है ,फिर आने वाले समय में जैन नहीं सिर्फ अजैन ज्यादा जाएंगे ।  आज यदि राजधानी ट्रैन का ठहराव हुआ है तो जैन की यात्रा यात्री और आवृत्ति संख्या में ही बढ़ोत्तरी हुई है । वक्त के अनुसार विकास और सुविधा भी बहुत आवश्यक है ।  कभी कभी अति आदर्शवाद स्वयं अपने लिए ही घातक बन जाता है ।  विचारना प्रोफ अनेकांत जैन  28/03/24

मेरा क्षयोपशम ज्यादा नहीं है

प्रिय संजय  जय जिनेन्द्र  तुमने बहुत आत्मीयता से मुझे शेयर आदि के बारे में समझाया है । मैं आर्थिक रूप से सुदृढ़ बन सकूं ,यही तुम्हारी शुभकामना है ।  किन्तु मैं क्या करूँ ? मैंने अपनी समस्त गतिविधियों को जिनवाणी में ही सीमित कर लिया है । मेरा क्षयोपशम ज्यादा नहीं है और ज्यादा तेज तर्रार स्वभाव भी नहीं है । अपने अल्प क्षयोपशम को और सीमित शक्ति को मात्र विद्या तक सीमित करके जो कुछ कर पा रहा हूँ ,वह कर रहा हूँ ।  कॅरोना काल के बाद से मेरे जीवन के उद्देश्य बदल गए हैं । अपना काम चलाने को पर्याप्त संसाधन भी हैं । शेयर आदि में कमाई तो होती है लेकिन मन बहुत अस्थिर होता है और उपयोग भी भ्रमित होता है ।  अब जो है सो है ...इसे व्यापारी बुद्धि के लोग अकर्मण्यता भी कह सकते हैं । कहते हैं तो कहें ।  संभवतः मेरे भाग्य में इतना ज्यादा धन नहीं है जिससे मैं भ्रमित हो सकूं ।  अतः क्षमा प्रार्थी हूँ ,कभी आवश्यकता हुई तो तुम्हारी सलाह पर विचार करूँगा ।  शेष शुभ । तुम्हारा  अनेकांत 27/03/24

सूक्ति संचय

लोगों ने समझाया,कि वक्त बदलता है! और वक्त ने समझाया,कि लोग भी बदलते हैं। अक्सर जिन्दगी के रिश्ते इसलिए सुलझ नहीं पाते हैं क्योंकि लोग गैरो की बातों में  आकर आपनो से उलझ जाते हैं क्रोध आने पर "चिल्लाने" के लिए ताकत नहीं चाहिए मगर क्रोध आने पर "चुप" रहने के लिए बहुत ताकत चाहिए ज़िंदगी की रेस में जो लोग आपको ‘दौड़ कर’ नहीं हरा पाते... वही लोग आपको ‘तोड़ कर’ हराने की कोशिश करते हैं...! समय और जीवन दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं,    जीवन समय का सदुपयोग सिखाता है,              और समय जीवन की कीमत सिखाता है                                                                   दूसरों की मदद करने का समय किसी के पास नहीं है,                                                    पर दूसरे के काम में अड़ंगे डालने का समय सबके पास है

जैन विद्या अनुसंधान की दिशाएं और संभावनाएं

जैन विद्या अनुसंधान की दिशाएं और संभावनाएं  प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली जैन विद्या के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान करने को उत्सुक शोधार्थियों के लिए निम्नलिखित बिंदु विचारणीय हैं -  1.  जैनाचार्यों द्वारा रचित प्राचीन पांडुलिपियों की खोज कर के उसका संपादन और अनुवाद  2. प्रकाशित प्राचीन जैन  साहित्य पर,जिसपर अभी तक कोई शोधकार्य न हुआ हो ,उसे केंद्रित करके साहित्य आधारित शोधकार्य । 3.दार्शनिक समस्याओं पर आधारित विषयगत अनुसंधान  4. जैन सिद्धांतों पर आधारित आधुनिक विज्ञान से तुलनात्मक अनुसंधान । 5. समकालीन समस्यों के समाधान के लिए जैनाचार्यों और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों की समाधानात्मक दृष्टि से अनुसंधान । 6.भारतीय विद्याओं की जितनी भी शाखाएं हैं , लगभग उन सभी विद्या शाखाओं पर आधारित जैन ग्रंथ लिखे गए हैं लेकिन उनका सही मूल्यांकन अभी तक भी नहीं हो सका है अतः उस पर शोधकार्य हो सकता है । 7. शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान के अधिगम की अवधारणा और गुरु शिष्य परंपरा ,शिक्षा के सिद्धांतों पर जैन ग्रंथ भरे पडे हैँ उन पर भी शोधकार्य बहुत जरूरी है । जैन समाज द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में महत्त