जैन विद्या अनुसंधान की दिशाएं और संभावनाएं
प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली
जैन विद्या के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान करने को उत्सुक शोधार्थियों के लिए निम्नलिखित बिंदु विचारणीय हैं -
1. जैनाचार्यों द्वारा रचित प्राचीन पांडुलिपियों की खोज कर के उसका संपादन और अनुवाद
2. प्रकाशित प्राचीन जैन साहित्य पर,जिसपर अभी तक कोई शोधकार्य न हुआ हो ,उसे केंद्रित करके साहित्य आधारित शोधकार्य ।
3.दार्शनिक समस्याओं पर आधारित विषयगत अनुसंधान
4. जैन सिद्धांतों पर आधारित आधुनिक विज्ञान से तुलनात्मक अनुसंधान ।
5. समकालीन समस्यों के समाधान के लिए जैनाचार्यों और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों की समाधानात्मक दृष्टि से अनुसंधान ।
6.भारतीय विद्याओं की जितनी भी शाखाएं हैं , लगभग उन सभी विद्या शाखाओं पर आधारित जैन ग्रंथ लिखे गए हैं लेकिन उनका सही मूल्यांकन अभी तक भी नहीं हो सका है अतः उस पर शोधकार्य हो सकता है ।
7. शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान के अधिगम की अवधारणा और गुरु शिष्य परंपरा ,शिक्षा के सिद्धांतों पर जैन ग्रंथ भरे पडे हैँ उन पर भी शोधकार्य बहुत जरूरी है । जैन समाज द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान पर भी अनुसंधान आवश्यक है ।
8. जैन पुरातत्व,मूर्तिकला मंदिरकला,चित्र कला और इतिहास का विषय भी आज तक अच्छे अनुसंधानों की प्रतीक्षा कर रहा है ।
9. जैन समाज के विभिन्न प्रकार के अवदानों पर डेटा आधारित अनुसंधान भी अपेक्षित है ।
10.भारतीय संविधान और कानून व्यवस्था पर आधारित जैन दृष्टि से अनुसंधान अपेक्षित है ।इसमें मानवाधिकार आदि कई विषय सम्मिलित हो सकते हैं ।
11.जैन संघ और समाज अवधारणा और वर्तमान में उनकी स्थिति,दशा और दिशा आधारित डेटा आधारित अनुसंधान अपेक्षित हैं ।
12.किन्हीं आचार्य कवि या विद्वान् के सम्पूर्ण कार्यों पर आधारित अनुसंधान भी बहुत महत्त्वपूर्ण होता है ।
18/03/24
13.जैन दर्शन के क्षेत्र में आचार्य विद्यानंद,आचार्य विद्यासागर ,आचार्य तुलसी ,आचार्य महाप्रज्ञ आदि अनेक
विद्वान साधु तथा तारण स्वामी ,श्रीमदराजचंद्र ,कांजीस्वामी आदि अन्यान्य
क्रांतिकारी और परिवर्तनकारी विचारक और दार्शनिक हुए हैं -इनके योगदानों पर भी
उच्च स्तरीय अनुसन्धान किया जा सकता है |
14.जैन पंडित एवं विद्वत्परम्परा की भी एक विशाल परंपरा दिगंबर और श्वेताम्बर
दोनों सम्प्रदायों में विद्यमान है , उनका अप्रतिम योगदान जैन दर्शन और प्राकृत के
क्षेत्र में बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण है ,एक एक विद्वान् मनीषी के व्यक्तित्त्व
और कर्तृत्व पर अनुसन्धान अपेक्षित है |
15.जैन योग विज्ञान एवं प्रायोगिक साधना पद्धति का विषय भी बहुत विशाल है ,योग
विषय पर सैकड़ों मूल जैन साहित्य उपलब्ध है |इस विषय पर निरंतर नए नए प्रमेय सामने
आते हैं उनका मूल्याङ्कन ,तुलनात्मक अध्ययन और प्रायोगिक अनुसन्धान की एक बहुत बड़ी
शाखा खुलती है जिस पर अनुसन्धान कार्य किये जा सकते हैं |
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