*स्त्री सशक्तिकरण के असली मायने*
प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली
पल्लू-घूंघट- चुन्नी नहीं ओढ़ने पर आपको टोकने वाले कौन लोग हैं ? इसी तरह अमर्यादित खुले वस्त्र जिनसे आपके अंग प्रत्यंग उभरकर सामने आते हैं - नहीं पहनने के लिए कहने वाले आपके वे अपने ही हैं ,जो आपके हितैषी हैं ,दूसरों का क्या है ? वे तो चाहते ही हैं कि छद्म आधुनिकता के नाम पर आप कम से कम वस्त्रों में ही घूमें ,ताकि उन्हें सबकुछ देखने को मिले ।
हमें अपने बाधक ,पिछड़े और बुरे लगते हैं और पराये आधुनिक ,विकसित और सम्मोहक लगते हैं । हमें बचाने वाले अब खटकने लगे हैं और लूटने वाले भाने लगे हैं ।
आज जब स्त्री स्वतंत्र हुई है तो उसका निर्लज्ज वस्त्र विन्यास,अश्लील फेसबुक रील,उच्छृंखल आचरण और स्वच्छंद ,असंयमित बात व्यवहार देखकर समझ आता है कि पुराना समाज इन्हें क्यों घरों में पर्दे में रखने का पक्षधर था ?
समाज इन दिनों भयंकर रूप से खोखलेपन के साथ खुलेपन का शिकार है ।
आश्चर्य यह है कि इसे आधुनिकता और विकास वाद समझा और कहा जा रहा है ।
स्कूलों ने भी कन्याओं के चुन्नी आदि अंग वस्त्र अपने ड्रेस कोड से हटा लिए हैं ।समाज में ये घरों से तो हट ही गया है ,अब मंदिरों में और साधुओं के समक्ष भी यह अनुपयोगी लगने लगा है ।
अध्यापक अध्यापिकाएं भी स्कूलों में, कक्षाओं में डांस करके वीडियो बना रहे हैं और सोशल मीडिया पर डाल रहे हैं ।
वे भी कोई विषय कक्षा में खुद समझाने की बजाय यूट्यूब और गूगल पर देखने की सलाहें दे रहे हैं । उन्हें यह नहीं पता कि इस तरह वे अपनी शिक्षक समाज के ही पैरों पर कुल्हाड़ी पटक रहे हैं । बच्चे वैसे भी सब कुछ वहीं से सीख रहे हैं ,कक्षा की थोड़ी बहुत उपयोगिता बची है आप उसे भी नष्ट कर रहे हैं । भविष्य में सरकारें शिक्षकों के पद इसी आधार पर समाप्त कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं है ।
स्त्री का शिक्षित होना,कार्य करना क्या शालीनता और सभ्यता के विपरीत है ? क्या इसरो में चंद्रयान सफलता में झूमती, एक दूसरे को मिष्ठान्न बांटती उन स्त्रियों को आप कम समझते हैं जो साड़ी ,बिंदी और चूड़ी पहन कर कार्य कर रही हैं ? उनके ये चित्र सभी ने देखे हैं ।
उन्हें आप कहीं सड़कों पर मिल जाएं तो आपको वे एक साधारण गृहिणी के अतिरिक्त कुछ नहीं लगेगीं । लेकिन वे इस देश की सबसे बड़ी वैज्ञानिक हैं ।ये पॉवर है ,इसे स्त्री सशक्तिकरण कहते हैं ।
स्वतंत्रता का अर्थ नंगापन नहीं है ।
सिगरेट पीती ,फटे जीन्स में ,बॉयफ्रेंड के कमर में हाथ डाल कर टूटी फूटी अंग्रेजी हिंदी बोलती घूमती मूर्ख स्त्री ,स्त्री का कमजोरीकरण है न कि सशक्तिकरण ।
मूल्य रहित स्वतंत्रता कब स्वच्छंदता में तब्दील हो जाती है हम समझ ही नहीं पाते हैं ।
फेमिनिस्म स्त्री स्वतंत्रता की अभी और कितनी कीमत मांगता है देखते जाइये ।
अभयचीरहरणत्तो
जइ चीरो णत्थि आहुणियजुगे।
परतंतो सगतंतो वा कह णिरावरणे य
भमइ इत्थी ।।
भावार्थ -
आधुनिक युग में जब चीर ही नहीं बचा है तो चीरहरण का डर भी नहीं है । निरावरण घूमती स्त्री स्वतंत्र है या परतंत्र यह कौन जाने ?
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