**अज्ञान का अंधकार आपने लेखन के दीपक से मिटाकर दीपावली मनाएं*
*प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली*
जैन धर्म दर्शन पर्व और संस्कृति पर भारत की आम जनता के लिए
लेख लिखना और उसे समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाना बहुत अच्छा कार्य है । महाविद्यालय के सभी स्नातक अपने अपने स्थान पर राष्ट्रीय और स्थानीय समाचार पत्रों में भगवान् के 2550 निर्वाणोत्सव वर्ष से संबंधित प्रामाणिक लेख अवश्य प्रकाशित करवाएं ।
1991 से मैं भी यह प्रयास निरंतर कर रहा हूँ तथा अभी तक इस तरह के मेरे प्रकाशित लेखों की संख्या 500 से अधिक पहुंच चुकी है । ज्यादा नहीं तो यदि एक प्रकाशित लेख एक व्यक्ति भी पढ़े (यद्यपि सैकड़ों पढ़ते हैं) तो अभी तक पांच सौ लोग तो अपना अज्ञान दूर कर ही चुके होंगे । मैं इस न्यूनतम विश्वास और आशा पर लिखता हूँ और प्रकाशनार्थ भेजता हूँ ।
अपने लोगों के साथ साथ अन्य समाज के प्रबुद्ध वर्ग भी इसे पढ़ते हैं और जैन धर्म का सही ज्ञान प्राप्त करते हैं । यह एक उत्कृष्ट प्रभावना का कार्य है ।
रत्नकरंड श्रावकाचार के श्लोक 18 को अवश्य स्मरण रखना चाहिए -
अज्ञानतिमिरव्याप्तिमपाकृत्य यथायथम् । जिनशासनमाहात्म्यप्रकाशः स्यात्प्रभावना ।।
- अज्ञानरूपी अंधकार के विनाश को जिस प्रकार बने उस प्रकार दूर करके जिनमार्ग का समस्त मतावलंबियों में प्रभाव प्रकट करना प्रभावना अंग है ।
इधर बीच कुछ कटु अनुभव ऐसे हुए कि असहनीय से लगे । विगत महावीर जन्म कल्याणक पर कई अखबारों ने ,कई विज्ञापनों ने और यहाँ तक कि कई सरकारी स्तर तक के प्रकाशनों ने महावीर जयंती की शुभकामनाएं प्रकाशित कीं और चित्र महात्मा बुद्ध के प्रकाशित किये ।
दिल्ली के अहिंसा स्थल के पास जहाँ खुले आकाश में भगवान् महावीर की प्रतिमा स्थापित है और मुख्य द्वार पर भगवान् महावीर लिखा भी है ,उसके आस पास अन्य आने जाने वाले लोगों से, ऑटो,रिक्शा,टैक्सी चालकों से अभिनय पूर्वक पूछा कि भाई ये किनकी मूर्ति है ? तो 95% लोगों ने जबाब दिया कि ये भगवान् बुद्धा हैं ।
अभी हाल ही में एक अजैन विद्यार्थी ने प्रेरणा पूर्वक जैनदर्शन विभाग में प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया और अध्ययन प्रारम्भ करने से पूर्व ही अगले दिन विषय परिवर्तन का आवेदन लेकर आ गया ,उससे कारण पूछा तो बड़ी मुश्किल से उसने बताया कि मुझसे किसी ने यह कह दिया है कि वो विषय मत पढ़ो नहीं तो वो तुम्हें बौद्ध भिक्षु बनवा देंगे और लेह लद्दाख भेज देंगे ।
इसी तरह कुछ वर्ष पूर्व कुछ अजैन कन्यायों ने पहले जैन दर्शन विषय में प्रवेश लिया और बिना किसी कारण के विषय बदलने का आवेदन कर दिया ,बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपनी सहपाठियों को कारण बताया कि गुरु जी ने पढ़ने को एक ग्रंथ दिया था ,उस पुस्तक पर नग्न चित्र बने थे ,घर वालों ने देखा तो यह विषय बदलने को कह दिया । अब ग्रंथों के मुख्य पृष्ठ पर जो मुनिराजों या भगवानों के चित्र हम बहुत बहुमान से छापते हैं ,उनके ये प्रभाव भी पड़ सकते हैं ऐसा हमने सपने में भी नहीं सोचा था ।
बातें ,बुरी लग रही होंगी । लेकिन यथार्थ है ,लोगों में बहुत अज्ञानता है ।
बड़े चैनलों और अखबारों के
पत्रकार विश्वविद्यालयों से पढ़कर आते हैं , सरकारी विज्ञापनों के पीछे मंत्रालय के बड़े IAS IPS आदि अधिकारी होते हैं ।
मुझे वे रिक्शे चालक और राहगीरों की अज्ञानता तो कुछ समझ आती भी है लेकिन क्या इस देश की उच्च शिक्षित पीढ़ी भी महावीर और बुद्ध के चित्रों में भी कोई अंतर नहीं समझती है ? इनके सिद्धांतों में अंतर समझने की बात तो बहुत दूर हो गई ।
भले ही हम अपनी सीमित समाज में ज्ञान का खूब प्रसार करके खुश हो रहे हों लेकिन जैन समाज का लगभग 40% वर्ग भी जैन धर्म की सामान्य जानकारी रखने में इन अजैनों से कम नहीं है ।
पता नहीं मेरा यह अनुमानित प्रतिशत कितना सही है पर यदि सही आंकड़े एकत्रित किये जायें तो मुझे तो यह लगता है कि जैन समाज के लगभग 30% लोग ही हैं जो आपकी सभाओं में आते हैं ,शिविरों में भाग लेते हैं , आपकी किताबें या लेखनी पढ़ते हैं ,आपके प्रवचन सुनते हैं,साधु संतों से जुड़े हैं । और यही लोग पुनः पुनः आपके समक्ष उपस्थित होकर आपके भीतर व्यापक धर्म प्रभावना का भ्रम उत्पन्न करते हैं । हम एक पंडाल या हाल के प्रकाश से संतुष्ट हैं और जगत अंधकार में जी रहा है ।
जो पढ़ चुके हैं ,सुन चुके हैं ,जान चुके हैं उन्हीं वही वही बातें पुनः पुनः सुना कर हम अपने कर्तव्य का निर्वहन करके भले ही संतुष्ट हैं लेकिन हमें सोचना होगा कि अन्य लोगों में सामान्य जानकारी के अभाव को कैसे दूर करें ?
अन्य कोई तो यह सोचेगा नहीं ।
इस दीपोत्सव में हम सभी यह संकल्प लें कि भगवान् महावीर के बारे में फैली अज्ञानता और भ्रम को हम सभी आम जनता से दूर करने का पूरा प्रयत्न करेंगे ।
आज से ज्ञान का एक नया दिया जलाएंगे और भगवान् महावीर का निर्वाण महोत्सव मनाएंगे सच्ची दिवाली मनाएंगे ।
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