वीर निर्वाण 2550 के अवसर पर विशेष
*पाइय-वीर-णिव्वाण-पंचगं*
(प्राकृत वीर निर्वाण पंचक )
जआ अवचउकालस्स सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा ।
तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।1।।
जब अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी ।
कत्तियकिण्हतेरसे जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे ।
वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।2।।
कार्तिक कृष्णा त्रियोदशी को योग निरोध करके वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।
चउदसरत्तिसादीए पच्चूसकाले पावाणयरीए ।
ते गमिय परिणिव्वुओ देविहिं अच्चीअ मावसे ।।3।।
चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में वे (भगवान् महावीर) परिनिर्वाण को प्राप्त हुए और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई ।
गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं ।
णाणलक्खीपूया य दीवोसवपव्वं जणवएण ।।4।।
इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व मनाया ।
कत्तिसुल्लपडिवदाए देविहिं गोयमस्स कया पूया ।
णूयणवरसारंभो वीरणिव्वाणसंवच्छरो ।।5।।
अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को देवों ने भगवान् गौतम की पूजा की और इसी दिन से वीर निर्वाण संवत् और नए वर्ष का प्रारंभ हुआ ।
णमो वीर जिणा
Prof Anekant Kumar Jain
टिप्पणियाँ