आप को जानकर हैरानी होगी कि केरल राज्य में 30 से ज्यादा पुरातन जैन मन्दिर है। वर्तमान में 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 4489 जैन रहते हैं। जिनमे लगभग 3000 जैन दिगम्बर समाज से स्थानीय हैं । यहाँ पर पाये जाने वाले जैन मन्दिर ईसा पूर्व 2 शताब्दी से लेकर 12 शताब्दी तक के है। वर्तमान में इन मन्दिरो का रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) एवं कुछ नवगठित स्थानीय ट्रस्ट मंडल करते हैं। बहुत से मन्दिर भगनावस्था में है। उनकी चिंता न जैन समाज करता और ना ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) । केरल के वेनाड एवं एरनाकुलम जिले में 1500 से ज्यादा जैन रहते है। बाकी सभी जिलों में सौ से कम है। बहुत सी जगह जैनों कि बस्ती न होने के कारण जैन मंदिरों के निकट रहने वाले लोगो ने उन्हें वैदिक देवी देवताओं के नाम से पहचान कर नित्य पूजा-पाठ वैदिक रीति से करते हैं। बहुत से पुरातत्व मंदिरों को जमींदरोज कर दिया गया है अथवा विभिन्न धार्मिक स्थलों में परिवर्तित कर दिया गया हैं।
मेरा भारतवर्ष के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर समाज से निवेदन है कि जब हमारे तीर्थंकर एक हैं तो हम क्यों श्वेताम्बर एवं दिगम्बर के नाम से उदासीन होकर उनका रख रखाव नहीं कर रहे हैं ? आये दिन वाटसअप पर सन्देश आते है कि बलपूर्वक जैन मन्दिरों को हिन्दु मन्दिर बना दिया गया है।वह मन्दिर वापस जैनों को मिलने चाहिए। आपने कभी सुना है कि रोने और विलाप करने से कभी किसी को सत्ता मिली है। मेरे विचार से तो नहीं। फिर हम क्यों रोज-रोज चिल पो मचा रहे हैं? चिल पो के बजाय हमें जैन दर्शन को जन जन दर्शन कैसे बनाया जाये विषय पर विचार मंथन करना चाहिए। अन्यथा कुछ समय पश्चात् बचे हुए 4500 जैन भी नहीं रहेंगे एवं बचे हुए 30 मन्दिर भी किसी देवी देवता के अथवा मस्जिद या गिरजाघर में परिवर्तित हो जायेंगे।
साधु -साध्वी, श्रावक-श्राविका के साथ वयावच्च की एक श्रेणी का गठन कर जैन दर्शन को जन जन दर्शन में परिवर्तित करने का प्रयास करना चाहिए। हमारी धरोहर सुरक्षित रहेगी तों, जैनत्व सुरक्षित रहेगा ,तो ही विश्व में हर कहीं शान्ती के साथ समृद्धि का साम्राज्य रहेगा। पर्यावरण की सुरक्षा होगी। मेरा मानना है कि रख रखाव के अभाव व समाज की उदासीनता के चलते जैन समाज के मंदिरों का ऐतिहासिक अस्तित्व एक दिन विलुप्त हो जाएगा । ऐसे में हमें चाहिए कि ऐसे अज्ञात मंदिरों की पहचान कर हमारे धार्मिक और सामाजिक दायित्व को निभाते हुए हमें उनके संरक्षण, पुनरुद्धार और पुनर्निर्माण के सार्थक प्रयास करने चाहिए।आखिर कहीं ना कहीं हमारी सामाजिक धरोहर के संरक्षण की नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है। ऐसे में हमारी विमुखता हमारी ऐतिहासिक धरोहर को समाप्त कर देगी। पुरातन जैन मंदिरों के संरक्षण की दिशा में हमारे समाज को आगे कदम बढ़ाना होगा।
केरल में मंदिरो एवं वहां पर जैनों की संख्या का विवरणश्री विजय कुमार बावजी द्वारा संकलित पुस्तक "Ancient Art&Antiquities of Karnataka,Andhra,Telangana &Kerala" से साभार लिया गया हैं।
कृपया चिन्तन-मनन करें।
*एन. सुगालचंद जैन, चेन्नई*
*दिनांक : 22.11.2023*
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