मन का विरोध - मौनं विरोधस्य लक्षणम्
प्रो अनेकांत कुमार जैन
क्या जरूरी है जुबां बात करे ओंठ हिले
खमोशी देती है पैगाम जो बस खुदा जाने
खासकर सज्जन, विनम्र और अचाटुकार तरह के लोग अपनी अन्य अनुत्पन्न समस्याओं से बचाव के लिए इस तरह के स्पष्ट और प्रत्यक्ष विरोध से बचते हैं ।
वे अमर्यादित होकर ,चीख और चिल्ला कर विरोध करने की प्रवृत्ति नहीं रखते हैं क्यों कि विरोध के पीछे भी वे कोई अन्य लाभ की वांछा से रहित हैं । अन्य दूसरे लाभ जिन्हें चाहिए वे इससे परहेज नहीं करते और अक्सर उन्हें प्रत्यक्ष अमर्यादित और उग्र विरोध का पुरस्कार भी मिल जाता है ।
सज्जन और विनम्र व्यक्तित्त्व मन से विरोध करके सत्य के प्रति अपनी निष्ठा को बचा कर रखता है ।उसे प्रत्यक्ष विरोध से पुरस्कार की वांछा नहीं है तो अन्य हानि भी उसकी अंतरंग शांति को कहीं भंग न कर दे इसलिए वो भी वह नहीं चाहता । इसलिए कभी वह स्वयं को चुपचाप इस सत्य हनन के तांडव से अलग कर लेता है । पूंजीवादियों के प्रति,धार्मिक दुराग्रहों के प्रति ,सत्ता अहंकार के प्रति , कुशासन के प्रति वह मौन रह जाता है । वह अपने अन्य दायित्वों में रमकर या विद्या साधना में डूबकर खुद को सामाजिक ,अकादमिक या धार्मिक संगठनों से अलग थलग कर लेता है । विरोध तो दूर कोई सलाह या सीख देना भी वह ठीक नहीं समझता ।
इस तरह वह एक मौन विरोध को अंगीकार करता है । एक विद्वान्,सज्जन और विनम्र व्यक्ति का यह विरोध वर्तमान की प्रणाली का सबसे बड़ा विरोध इसलिए माना जाना चाहिए क्यों कि यह हर तरह के व्यवस्थापकों ,नीति निर्धारकों और सत्ताधीशों के लिए बहुत बड़ी अदृश्य चुनौती है कि वे सही राह पर नहीं हैं । और प्रायः उन्हें इस बात का भान नहीं है क्यों कि असत्य के समर्थकों के समर्थन की भीड़ ने उनके दृष्टि पथ पर अपना चश्मा लगा दिया है ।
हज़ारों असत्यों और स्वार्थों के समर्थन के शोर में मौन विरोध के स्वर लाखों की संख्या में होने पर भी कहाँ सुनाई दे पाते हैं ,उनकी तरफ तो दृष्टि भी नहीं जाती । लेकिन उस मौन विरोध को परमात्मा जानता है देखता है ,प्रकृति जानती है देखती है और प्रतिक्रिया भी देती है । किन्तु समय बीत जाने पर इसके दुष्परिणाम भुगतने पर भी अदूरदर्शिता से युक्त अहंकारी मनुष्य उसे नहीं समझ पाता है ।
इसलिए वर्तमान परिदृश्य में
"मौनं स्वीकृति: लक्षणम्" के साथ "मौनं विरोधस्य लक्षणम्" सूक्ति भी स्वीकार्य होना चाहिए ।
टिप्पणियाँ