आयरिय-अणेयंतकुमारजइणेण विरइदं
समाहिमरणभावणा
(समाधि मरण भावना )
(उग्गाहा छंद)
उवसग्गे दुरभिक्खे,असज्झरोगे च विमोयणकसाय ।
अब्भंतरबाहिरा च सल्लेहणपुव्वगं मरणसमाहि ।।1 ।।
असाध्य उपसर्ग ,दुर्भिक्ष या रोग आदि आने पर अभ्यांतर और बाह्य कषाय के विमोचन के लिए सल्लेखना पूर्वक मरण समाधि कहलाती है ।। ।।
वित्तेण वि खलु मरिज्जदि,अवित्तेण वि खलु अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि ,वरं हि सुदाणेण खलु मरिदव्वं ।।2।।
धन के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, धन के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) सम्यक् दानपूर्वक ही मरण करना चाहिए।
परिग्गहेण मरिज्जदि,अपरिग्गहेण वि अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं हि अपरिग्गहेण मरिदव्वं ।।3।।
परिग्रह के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, परिग्रह के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) अपरिग्रह धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
कसायेण वि मरिज्जदि,णिक्कसायेण वि अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं हि वीयरायेण मरिदव्वं ।।4।।
कषाय के होने पर भी निश्चित मरता (मरिज्जदि) है, कषाय के न होने पर भी अवश्य मरता (मरिज्जदि) है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) वीतराग भाव पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
कोहेण वि य मरिज्जदि,खंतिखम्मेण वि अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं हि खंतिखम्मेण मरिदव्वं ।।5।।
क्रोध के होने पर भी निश्चित मरता है, क्रोध के न होने पर शांति और क्षमा में भी अवश्य मरता है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) शांति और उत्तम क्षमा पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
माणेण वि य मरिज्जदि ,मज्जवेण वि खलु अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं मज्जवधम्मेण मरिदव्वं ।।6।।
मान के होने पर भी निश्चित मरता है, मार्दव होने पर भी अवश्य मरता है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम मार्दव धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
मायाए वि मरिज्जदि,अज्जवेण वि खलु अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं अज्जवधम्मेण मरिदव्वं ।।7।।
माया के होने पर भी निश्चित मरता है, आर्जव होने पर भी अवश्य मरता है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम आर्जव धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
लोहेण वि य मरिज्जदि,सोयेण वि य खलु अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि,वरं हि सोयधम्मेण मरिदव्वं ।।8।।
लोभ के होने पर भी निश्चित मरता है, शुचिता(शौच धर्म ) के होने पर भी अवश्य मरता है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम शौच धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
संजमेण वि मरिज्जदि , असंजमेण वि य अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि ,वरं संजमधम्मेण मरिदव्वं ।।9।।
संयम के होने पर भी निश्चित मरता है, असंयम के होने पर भी अवश्य मरता है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) उत्तम संयमधर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
एयंतेण मरिज्जदि ,अणेयंतेण वि अवस्स मरिज्जदि ।
जदि दोहिं वि मरिस्सदि , वरं हि अणेयंतेण मरिदव्वं ।।10।।
एकांत मानने पर भी निश्चित मरता है, अनेकांत मानने पर भी अवश्य मरता है। यदि दोनों परिस्थिति होने पर भी मरण होगा, तो उत्तम है (व्यक्ति को) अनेकांत धर्म पूर्वक ही मरण करना चाहिए।
प्रो.अनेकांत कुमार जैन
टिप्पणियाँ