*दश धर्म एक झलक*
प्रथम दिन
*उत्तम क्षमा*
जैन धर्म में दश लक्षण पर्व पर दस दिन तक आत्मा के दश धर्मों की विशेष उपासना की जाती है इसलिए इन्हें धर्म के दशलक्षण कहते हैं । व्यवहार से स्वरूप समझने के अभिप्राय से प्रत्येक दिन क्रम से एक एक धर्म का स्वरूप समझा और समझाया जाता है ।
पहला दिन *उत्तम क्षमा* का होता है । उत्तम शब्द से तात्पर्य है सम्यग्दर्शन अर्थात् सच्चा विश्वास । यह त्रिरत्नों में पहला रत्न कहलाता है ।
मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति के लिए यह पहली शर्त है । इसके बिना मोक्ष मार्ग प्रारंभ ही नहीं होता है ।
*आत्मा में जब क्रोध रूपी विभाव का अभाव होता है तब उसका क्षमा स्वभाव प्रगट होता है ।*
हमने हमेशा से क्रोध को स्वभाव माना है यह हमारी सबसे बड़ी भूल है ।हम अक्सर कहते हैं कि अमुक व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का है । क्रोध विकार है स्वभाव नहीं । स्वभाव है क्षमा जो आत्मा का स्वाभाविक धर्म है ।
जैन परम्परा में प्रत्येक धर्म की व्याख्या दो नयों के आधार पर की जाती है ।
अध्यात्म की दृष्टि से क्षमा स्वभाव वाली आत्मा के आश्रय से पर्याय में क्रोध रूप विकार की उत्पत्ति नहीं होना ही क्षमा है और व्यवहार की दृष्टि से क्रोध का निमित्त मिलने पर भी उत्तेजित नहीं होना ,उनके प्रतिकार रूप प्रवृत्ति के न होने को ही उत्तम क्षमा कहा जाता है ।
*दूसरों की गलती की सजा खुद को देने का नाम क्रोध है ।*
हमारे क्रोध का सबसे बड़ा कारण है कि अज्ञानता के कारण हम दूसरों को अपने इष्ट या अनिष्ट का कारण मानते हैं ,दूसरों से ज्यादा अपेक्षाएं करते हैं । तत्त्वज्ञान के अभ्यास से जब हम यह समझने लगेंगे कि अपने अच्छे या बुरे के लिए हमारे खुद के किये कर्म दोषी हैं ,दूसरा तो निमित्त मात्र है , तब हमारे जीवन में क्रोध की कमी आना शुरू हो जाएगी और क्षमा स्वभाव प्रगट होना शुरू हो जाएगा ।
हम चाहें कितना भी तर्क कर लें लेकिन अंत में निष्कर्ष यही निकलता है कि क्रोध दुख रूप है और क्षमा सुख रूप ।
"आज दिल के रंजोगम चलो मिलकर साफ कर दें ,
जीएंगे कब तक घुटन में अब सभी को माफ कर दें ।
मांग लें माफी गुनाहों की जो अब तक हमने किए,
अब नहीं कोई शिकायत
दुनिया को ये साफ कर दें ।।"
प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली
drakjain2016@gmail.com
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