विश्व योग दिवस पर विशेष ....
सहजता ही वास्तविक योग है
जैन परंपरा में त्रिगुप्ति का सिद्धांत योग विद्या का प्राण है । मन गुप्ति ,वचन गुप्ति और काय गुप्ति अर्थात् मन वाणी और काया की क्रिया पर पूर्ण नियंत्रण । शास्त्रों में मन के संदर्भ में कहा गया है -
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।
बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥
अर्थात्- मन ही मानव के बन्ध और मोक्ष का कारण है, वह विषयासक्त हो तो बन्धन कराता है और निर्विषय हो तो मुक्ति दिलाता है।
वर्तमान में डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जिसका गहरा संबंध हमारे मन और अवचेतन मन से है । यह बीमारी एक दिन में विकसित नहीं होती ,इसमें एक लंबा समय लगता है । जब यह विकराल रूप धारण कर लेती है तब हमें थोड़ा पता चलता है और पूरा पता तब चलता है जब इसके दुष्प्रभाव झेलने में आते हैं । इसके हजारों कारण हैं । उनमें से एक कारण है असहज जीवन को ही सहज समझने की लगातार भूल ।
डिप्रेशन की अनेक वजहों में एक बड़ी वजह स्वाभाविक अभिव्यक्ति में आने वाली लगातार कमी भी है | आपको जब गुस्सा आ रहा हो और आप सिर्फ इसीलिए अभिव्यक्त न कर पायें कि कोई फ़ोन रिकॉर्ड कर लेगा ,विडियो बना लेगा,सी सी टी वी में कैद हो जायेगा और यह सब कुछ बिना वजह उनके सामने उस समय पेश किया जायेगा जिनसे जिस वक्त गुस्सा छोड़कर आपने किसी तरह सम्बन्ध अच्छे बना लिए हैं और सब कुछ शांति से चल रहा है |
तब इन्हीं कुछ कारणों से लोग मित्रों ,रिश्तेदारों तक से अपना ह्रदय खोलने में घबड़ा रहे हैं | इस प्रकार की प्रवृत्ति परिवार,समाज,कार्यालय ,शिक्षा संस्थान आदि में एक कृत्रिम वातावरण का निर्माण कर रही है जहाँ किसी के साथ खुल कर हंसना बोलना रोना चिल्लाना आदि सारे मनो भाव स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त न होने के कारण लोगों को कुंठाग्रस्त कर रहे हैं |
हमें अगर किसी से कोई समस्या है और अगर हम किसी कारण से उससे न कह सकें तो दूसरों से कह कर तो मन हल्का कर ही सकते हैं ,किन्तु अविश्वसनीय और स्वार्थी माहौल ने मन ही मन घुटना एक मजबूरी बना दिया है | हम जिस पर विश्वास करके अपना मन हल्का करते हैं वह उसे रिकार्ड करके प्रतिपक्षी का मन हमारे प्रति भारी कर आता है | क्षणिक भावों को स्थायी भाव बता कर प्रस्तुत करने वाले ,वानर गुण वाले लोगों के हाथ में सोशल मीडिया का उस्तरा जब से हाथ में आया है तब से वे पहले से ज्यादा व्यस्त हो गए हैं | इधर की उधर भिड़ाकर लोगों को लड़ाने में . संघर्ष करवाने में और राग द्वेष भड़काने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है |
सोशल मीडिया सूचना तकनीकी क्रांति भले ही बहुत कुछ प्रदान कर रही है पर हमारे स्वाभाविक जीवन को तहस नहस भी कर रही है |
इसका असर इतना अधिक है कि
डिपरेशन से आज मोक्ष के लिए तपस्या रत साधू समाज भी ग्रसित हो रहा है | आत्म शून्य क्रियाओं के चक्कर में वे स्वयं आत्मप्रवंचना के शिकार हो रहे हैं | जबरजस्ती दबाई गयी वासना और पवित्रता-पूज्यता का क्षद्म चोला ओढ़ कर वे स्वयं को भगवान् समझने की भूल कर रहे हैं और यद्वा तद्वा विकृत सेक्स की घटनाओं में लगातार फंस भी रहे हैं |
कृत्रिम अभिव्यक्ति की छद्म आजादी वाला मोबाइल,इन्टरनेट,लैपटॉप भी उनके या उनके सहयोगी के हाथों में है जिनका वे प्रत्यक्ष या परोक्ष लगातार प्रयोग कर रहे हैं | इससे वे भी लगातार लोकेषणा, आत्ममुग्धता और आत्म प्रवंचना के शिकार हो रहे हैं | वे ध्यान कम करते हैं ,किन्तु उस मुद्रा की फोटो खिंचवा कर इन्टरनेट पर ज्यादा डालते हैं |पोस्टर छपवाते हैं । कभी कभी लगता है इस तरह के साधु हमसे ज्यादा अवसाद से ग्रसित हैं ,लगातार मंच पर मुस्कुराते हुए बैठना और खुद को शांत रस की मूर्ति बना कर प्रस्तुत करते रहना किसी गहरे तनाव से कम नहीं है | स्वयं किसी मंदिर या ट्रस्ट के नाम पर अकूत संपत्ति एकत्रित करते समय शास्त्र की ये पंक्तियाँ विस्मृत कर देते हैं कि अर्थ ही अनर्थ का मूल होता है - अत्थो अणत्थ मूलं |
सारा अध्यात्म सारे प्रवचन सारा ज्ञान सारा वैभव बेमानी लगने लग जाता है जब कोई संत कहलाने वाला बाहर से संपन्न मनुष्य आत्महत्या तक कर लेता है |
काश अन्दर से संपन्न लोगों को समाज में संत कहा जाता और पूजा जाता तो संत आत्महत्याओं से बच जाता और समाज लुटने से |
इसलिए सहज अभिव्यक्ति एक योग चिकित्सा है जो मन के भावों को विकृत होने से , कुंठित होने से बचाती है । हम जिस समाज में जी रहे हैं वहां तमतमाते चेहरे को तो क्रोधी कहा जाता है लेकिन मुस्कुराते चेहरे के साथ जो जीवों की हत्याएं करते हैं ,उनके अभिप्राय में छिपे अनंत क्रोध को हम भांप ही नहीं पाते हैं ।
कुल मिलाकर बात इतनी है कि सहज योग वाले अध्यात्म को भी हमने इतना अधिक कृत्रिम और असहज बना दिया है कि अब सरलता के सारे रास्ते ही बंद से दिखाई दे रहे हैं । अध्यात्म योग दिखाने का नहीं अनुभव करने का मार्ग है । तभी हम सच्चा सुख और शांति प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रो अनेकान्त कुमार जैन
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