दिशा बोध अगस्त 2021 का अंक आज सुबह सुबह मोबाइल पर ही पूरा का पूरा देख डाला ।
पत्रिका अपने नाम के अनुरूप सभी को दिशा बोध प्रदान करती रहती है । आप जैसे कलम के सिपाही इसे जीवंत रखते हैं ।
आज के समाज के वातावरण , ट्रस्ट मंदिर - संस्थाओं के झगड़े और साधर्मियों के प्रति ही बढ़ती कषायों को देख कर ऐसा लगने लगा है कि संभवतः पंचम काल इक्कीस हज़ार जितने साल का नहीं है । हो सकता है जब शास्त्र लिखे गए हों तब सहस्र शब्द की वह गणना न रही हो जो आज के हिसाब से हम लगाते हैं । इस पर पुनः अनुसंधान होना चाहिए ।
पिछले कुछ अंक और यह ताजा अंक देखकर जो भाव आये वे इस प्रकार हैं -
1.
नए लोग जैन बनना तो दूर जो हैं वो भी छोड़ कर जा रहे हैं ।
2.
समाज की प्रायः
संस्थाओं पर गुंडा प्रकृति के लोग काबिज हो रहे हैं उनकी भाषा व्यवहार इस कदर गिरा हुआ है कि सज्जन लोग संस्थाओं से दूर रहना ही बेहतर समझने लगे हैं ।
3. पत्रकारिता और चाटुकारिता पर्यायवाची बन गए हैं ।
4. सभी मंच पर बैठे हैं , नीचे जनता बची नहीं है , सिर्फ कैमरा और पत्रकार सामने हैं ।
5. जहां स्वस्थ्य विचारों का अकाल है वहां एक तख्त कैसे टिकेगा ?
6. पाप भीरुता समाप्त है पुण्य का लोभ सर चढ़कर बोल रहा है ।
7. धन और धनाढ्य बढ़ रहे हैं धर्म और धर्मात्मा घट रहे हैं ।
8. सम्यग्दर्शन की सामाजिक परिभाषा यह बन गयी है कि जो मेरे पक्ष में है वह सम्यग्दृष्टि और जो मेरा विरोधी है वह मिथ्यादृष्टि ।
9. खरा सो मेरा वाली बात अब नहीं रही अब तो एक ही नारा है ' जो मेरा सो खरा'
10. हम आप वो हैं जिन्हें ये दृश्य देखकर खुजली हो रही है तो लेख कविताएं और भाषण दे दे कर अपनी खुजली मिटा रहे हैं बस । हमारे खुजाने से हमारी खुजली बन्द हो रही है किसी अन्य को कोई फर्क नहीं पड़ता ।
ऐसे समय में आप सजग पहरी बनकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं - इस हेतु बधाई ।
*दिल झुका है किसी के कदमों पर* ,
*सर झुका हो या न हो।*
*बंदगी तो अपनी फितरत है*,
*कोई खुदा हो या न हो ।।*
*ये जुनूँ भी क्या जुनूँ है ?*
*ये हाल भी क्या हाल है ?*
*हम कहे जा रहे हैं*,
*कोई सुन रहा हो या न हो ?*
डॉ अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली
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