*जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न करूं नींद नहीं आती*
- प्रो.डॉ अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली
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लगभग ६५ वर्षीय श्री हरेंद्र सिंह जो मोती हारी , बिहार के हैं , रिटायर्ड हैं , अतः आजकल खेती करते हैं । इनका कहना है कि मैं जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न कर लूं मुझे नींद नहीं आती । मुझे लगा कि यह बीमारी है लेकिन डॉ ने कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है ।
अपने विश्वविद्यालय के जैन दर्शन विभाग में मैं विद्यार्थियों को रयणसार पढ़ा रहा था तभी एक बुजुर्ग अपरिचित सज्जन कक्षा में दाखिल हुए और चुपचाप कक्षा सुनने लगे ।
कक्षा के उपरांत मैंने उनसे परिचय प्राप्त किया तब उन्होंने उपरोक्त जानकारी मुझे देते हुए कहा कि मैंने एक बार दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले से आपकी एक पुस्तक *जैन धर्म एक झलक* प्राप्त की थी । उसे पढ़कर मुझे बहुत रुचि हुई । फिर मैं जिज्ञासावश त्रिनगर के जैन मंदिर गया तो वहां एक पंडित जी ने मुझे रत्नकरण्ड श्रावकाचार पढ़ने को दिया तब वह मुझे बहुत अच्छा लगा । लेकिन उसका पूरा पालन मैं नहीं कर पा रहा हूं । मैं ग्रंथ पढ़ने के बाद मंदिर वापस करने गया तो उन्होंने कहा इसे आप रख लो । मुझे बहुत अच्छा लगा ।
उन्होंने आगे कहा कि इसी प्रेरणा से मैंने पारस चैनल पर पंडित रतनचंद जी बैनाडा जी की कक्षा भी सुनी । उसमें एक दिन उन्होंने कहा कि आप सभी को कुंदकुंद का कुंदन पढ़ना चाहिए । सो मैंने स्क्रीन पर दिए नंबरों पर कहे अनुसार मैसेज भी किया किन्तु मुझे किताब नहीं भेजी गई । फिर मैंने उस पते पर एक पत्र भी भेजा कि यदि आप अजैन को निःशुल्क नहीं देना चाहते हैं तो शुल्क बता दीजिए मैं भेज दूंगा । किन्तु मुझे फिर भी कोई उत्तर नहीं मिला ।
मैं पुनः दिल्ली आया और विश्व पुस्तक मेला में उसी स्टाल को ढूढता रहा जहां से आपकी किताब ली थी । लेकिन इस बार विश्व जैन संगठन ने जैन साहित्य का स्टाल नहीं लगाया अतः निराशा हाथ लगी ।
फिर मैंने आपकी पुस्तक में आपका पता देखा और आपसे मिलने चला आया । आप मुझे मार्ग दर्शन दीजिए, मुझे किताबें दीजिए ।
मैंने उन्हें अत्यंत मनोवैज्ञानिक तरीके से धर्म का मर्म समझाया । उनसे जो प्रश्न पूछे उनके उत्तरों से लगा कि इन्होंने वाकई बहुत पढ़ा है और बहुत जिज्ञासु हैं ।
कई विषयों पर उनसे बात हुई ।
मैंने उन्हें चार पांच साहित्य भी दिया और कहा कि आगे भी जो चाहिए मुझे बताना मैं व्यवस्था करूंगा ।
वे बहुत प्रसन्न हुए और बोले मेरा बेटा दिल्ली में ही रहता है उसके पास अक्सर आता हूं , तब मैं आपके पास जरूर आऊंगा ।
इनसे मिलने के बाद मुझे लगा कि हम अभी भी वैसा कार्य नहीं कर पा रहे हैं जो हमें करना चाहिए । कहां तो जैन कुल में जन्म लेने वालों में भी कई को तो स्वाध्याय नाम से चिढ़ सी होने लगती है और जैनेतर कुल में जन्म लेने वाले ऐसे भव्य जीवों स्वाध्याय हेतु जैन साहित्य ढूढने पर भी मुश्किल से मिल पा रहा है ।
(20/2/20)
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