एक बीमा कम्पनी ने दो तरह के विज्ञापन जारी किए -
१. बढ़ती उम्र में रखें बीमारियों का ध्यान - कराएं हेल्थ इंश्योरेंस ।
२. घटती उम्र में रखें अपने परिवार के भविष्य का ख्याल -
कराएं जीवन बीमा ।
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मार्केटिंग अपने हिसाब से चलती है ।
समझना हमें है कि हमारी उम्र बढ़ रही है या घट रही है ।
जन्मदिन के दिन हमारे जीवन का एक वर्ष बढ़ता है या घटता है ?
हम जीवन का एक एक क्षण खो रहे हैं या पा रहे हैं ?
जन्म के साथ ही मृत्यु की उल्टी गिनती शुरू हो जाती है ।
अपने अधूरे पन की पूर्ति के लिए हम क्या क्या नहीं करते ?
लगभग
८०-९० वर्ष के इस मनुष्य भव को अगर अगणित वर्षों
के देव / नरक आदि भवों से तुलना करें तो
कितने बौने नज़र
आते हैं ।
और इन्हीं
पलों में
पाप कार्यों के महल खड़े कर देते हैं
ताकि ये ८०-९०
सुकून से कट सकें ;
हम नाम , पद , पैसे के लिए सारे कर्म , छल कपट और हिंसा करने को उतारू हो जाते हैं ।
बीमा कम्पनी का यह विज्ञापन काश हमें वास्तविक बोध प्रदान कर पाता । हमारा अज्ञान दूर करके आत्मज्ञान प्रगट कर देता ।
हमें अपने मनुष्य भव का सही उपयोग करना सीखा देता ।
हम दूसरों के लिए चतुर और खुद अपने लिए बड़े वाले मूर्ख हैं ,
हम मूर्खों को थोड़ा अपने लिए ही चतुर बना देता ।
कुमार अनेकांत
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