पिता नहीं भगवान् हैं वे
- कुमार अनेकांत© ( 16/06/2019)
पिता नहीं भगवान् हैं वे
भले ही एक इंसान हैं वे
ईश्वर तो अभी तक अनुमान हैं
मेरे प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वे
जब मन भटका इन्द्रियां भटकीं
मति सुधारी मतिज्ञान हैं वे
आगम पढ़ाया आप्त समझाया
श्रुत समझाया श्रुतज्ञान हैं वे
मम मन समझें मनोविज्ञानी
मेरे मनः पर्ययज्ञान हैं वे
मैं दूर रहूं तो भी रखें नज़र
दूरदृष्टा अवधिज्ञान हैं वे
मेरे तीनों काल को जाने
मेरे सर्वज्ञ- केवलज्ञान हैं वे
कोई चाहे कुछ भी कह ले
मेरे प्रत्यक्ष भगवान् हैं वे
पाठकों से निवेदन -
छंद नहीं अनुभूति देखें
शब्द नहीं भाव को परखें
जरूरी नहीं कि कवि ही लिखे
अकवि की भी कविता देखें ।
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