समकालीन
प्राकृत कविता
पीड़ा
पीडियो सहइ पीडा
तं ण खलु गच्छइ पीडा जं ददइ |
कसायेण सयं
दहइ परकत्ताभावेण जीवो ||
भावार्थ
पीड़ित व्यक्ति
तो पीड़ा सह भी जाता है ,लेकिन जो पीड़ा देता है निश्चित ही उसकी पीड़ा नहीं जाती | पीड़ा
देने वाला जीव मिथ्या ही पर कर्तृत्व के भावों से , कषाय से स्वयं जलता रहता है |
कुमार अनेकांत
१८/०६/२०२०
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