सादर प्रकाशनार्थ
*पागद- णूयणवस्साहिणंदणं*
(प्राकृत- नूतनवर्षाभिनंदनम्)
प्रो.अनेकान्त जैन, नई दिल्ली
पंचत्थिकायलोये ,संदंसणं सिक्खदि समयसारो।
णाणं पवयणसारो ,चारित्तं खलु णियमसारो ।।1।।
'पंचास्तिकाय' स्वरूपी इस जगत में 'समयसार' सम्यग्दर्शन सिखाते है,'प्रवचनसार' सम्यग्ज्ञान और 'नियमसार' सम्यग्चारित्र सिखाते हैं ।।1।।
सिरिकुण्डकुण्डप्पं य , अट्ठपाहुडो य सिक्खदि तिरयणा।
रयणसारो य धम्मं ,भावं बारसाणुवेक्खा।।2।।
आचार्य कुन्दकुन्द आत्मा सिखाते हैं,'अष्टपाहुड' रत्नत्रय सिखाते हैं , 'रयणसार' धर्म और 'बारसाणुवेक्खा' भावना सिखाते हैं ।।2।।
सज्झायमवि सुधम्मो, पढउ कुण्डकुण्डमवि णववस्सम्मि।
करिदूण दसभत्तिं य,अणुभवदु संसारम्मि सग्गसुहं।।3।।
स्वाध्याय भी सम्यक धर्म है ,अतः नव वर्ष में आचार्य कुन्दकुन्द को भी अवश्य पढ़ें और उनके द्वारा रचित 'दशभक्ति' करके संसार में ही स्वर्ग सुख का अनुभव करें ।
पासामि उसवेलाए , संणाणसुज्जजुत्तो णववस्सं ।
होहिइ पाइयवस्सं, आगमणवसुज्जं उदिस्सइ ।।4।।
मैं उषा बेला में सम्यग्ज्ञान रूपी सूर्य से युक्त नववर्ष को देखता हूँ जो प्राकृत भाषा के वर्ष के रूप में होगा और आगम ज्ञान का नया सूर्य उगेगा ।
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