अनुभव को लिखा अनुभव
मुझे जैन विद्या प्राकृत भाषा रूप जिनवाणी का तत्वज्ञान परंपरा से प्राप्त हुआ है। मेरे माता पिता स्वयं इस विद्या के विशेषज्ञ हैं। उन्हीं की प्रेरणा पाकर के मुझे भी संस्कृत विद्या जैन दर्शन आदि विषयों के साथ अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गुरू जनों का मुझ पर बहुत उपकार हुआ और यही कारण है कि मैंने अपने संपूर्ण अध्ययन काल में इस विषय में उच्च से उच्च शिक्षा तथा इससे संबंधित समस्त शैक्षणिक योग्यताएं अर्जित करने का प्रयास किया ।
यह मेरा इस जन्म में बहुत बड़ा सौभाग्य रहा कि मुझे जैन दर्शन के माध्यम से तत्त्व ज्ञान प्राप्त हुआ तथा उसी को प्रचारित प्रसारित करने के लिए अध्यापन करने के लिए तथा शोध कार्य करने के लिए सौभाग्य से आजीविका भी मिल गई। अध्ययन के दौरान यह अवश्य लगता था की मेरे कैरियर का क्या होगा ? किंतु मेरे माता पिता ने हिम्मत बंधाई और मैंने भी अन्यत्र न भटकते हुए यह सोच लिया था कि जो होगा सो होगा ,मेरी तरफ से कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, बस । इसी विद्या से मैंने यह सीखा कि यदि पूरे परिश्रम भावना और समर्पण के साथ यदि कार्य किया जाए तो कोई ना कोई दिशा भी अवश्य मिलती है ।
विद्या कभी वंध्या नहीं होती । हमें निरंतर अपनी योग्यता बढ़ाते रहना चाहिए।
आज मुझे उच्च से उच्च पुरस्कार प्राप्त हुए हैं राष्ट्रपति सम्मान प्राप्त हुआ है तथा समाज में,विद्वानों में बहुत आदर मिलता है । मैंने विदेशों में आयोजित सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया है । वहां मंच पर उन अनजान विद्वानों के बीच भी मेरा यह चिंतन चल रहा था कि यह मां जिनवाणी का ही उपकार है कि आज यहां बैठ कर कुछ कह रहा हूं और लोग उत्सुकता से सुन रहे हैं ।
मैं समझता हूं यदि मैं जिनवाणी के अलावा कोई और कार्य करता तो शायद उतना लाभ,यश आदि ना मिल पाता।
मेरी स्पष्ट मान्यता है कि
यदि सच्चे मन से किया जाए तो जिनवाणी पढ़ने से पढ़ाने से इह लोक भी सुधरता है और पर लोक भी सुधरता है ।
प्रो अनेकांत कुमार जैन
अध्यक्ष - जैनदर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्व विद्यालय,नई दिल्ली
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