सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन

*भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन*

*प्रो अनेकांत कुमार जैन*,नई दिल्ली

भगवान महावीर की वाणी के रूप में
प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में रचित हजारों वर्ष प्राचीन  शास्त्रों में गृहस्थ व्यक्ति को बारह व्रतों की शिक्षा दी गई है जिसमें चार शिक्षा व्रत ग्रहण की बात कही है ,जिसमें एक व्रत है  *देश व्रत* । गृहस्थ के जीवन जीने के नियमों को बताने वाले सबसे बड़े संविधान वाला पहला संस्कृत का  ग्रंथ *रत्नकरंड श्रावकाचार* में इसका प्रमाणिक उल्लेख है जिसकी रचना ईसा की द्वितीय शताब्दी में जैन आचार्य समंतभद्र ने की थी ।अन्य ग्रंथों में भी इसका भरपूर वर्णन प्राप्त है । 

कोरोना वायरस के कारण वर्तमान में जो जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन आवश्यक प्रतीत हो रहा है उसकी तुलना हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृत के शास्त्रों में प्रतिपादित देश व्रत से की जा सकती है ।

*देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य ।*
*प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य* ॥ ९२ ॥

*गृहहारिग्रामाणां क्षेत्रनदीदावयोजनानां च ।*
*देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः* ॥ ९३ ॥

*संवत्सरमृमयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।*
*देशावकाशिकस्य प्राहुः कालावधिं प्राज्ञाः* ॥ ९४ ॥

इन श्लोकों का भावार्थ यह है कि विशाल देश का ( स्थान का ) काल की मर्यादा पूर्वक (अर्थात् निश्चित समय सीमा तक ) 
प्रतिदिन पालन करना अर्थात् घर ,मुहल्ले, गांव ,शहर , जिला,प्रदेश ,खेत ,नदी, वन आदि की सीमा निर्धारित करके स्वयं ही निश्चित काल तक उसके बाहर न जाना देश व्रत है जिसका गृहस्थों को स्वयं ही पालन करना चाहिए । इसका काल वर्ष ,ऋतु, अयन,माह,चातुर्मास,पक्ष ( १५ दिन),नक्षत्र आदि कुछ भी हो सकता है । 

वर्तमान में लॉक डाउन ( प्राचीन देश व्रत)  में भारत वासियों की देश सीमा उनका अपना घर है और काल अवधि २१ दिन की है जो परिस्थिति के अनुसार बढ़ाई भी जा सकती है । 

हम सभी को ईमानदारी पूर्वक ,आत्मानुशासन से धैर्य के साथ इस लॉक डाउन पालन करते हुए घर पर ही रहना है कोई असावधानी नहीं करनी है क्यों कि 

*ये जब्र भी देखा है, तारीख़ की नज़रों ने* ।
*लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई*।। 

इसलिए बिना परेशान या निराश हुए हमें आत्म बल के साथ इस आशा से लॉकडाउन का पालन करते रहना है कि

*बहुत दौर गुजरे हैं तारिखियों में ऐसे* ,
*ये दौर भी गुजर जाएगा*।

*थाम लो पांव अपने ही घरों में कुछ दिन* ,
*यारों एक दिन ये मंजर भी थम जाएगा*।।



#अध्यक्ष - जैन दर्शन विभाग , श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली -१६

drakjain2016@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य

                                                              वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य                                                                        प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली जैन परंपरा में मंदिर और मूर्ति निर्माण का इतिहास बहुत पुराना है | खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में कलिंग जिन की मूर्ति वापस लाने का उल्लेख है | वर्तमान में सबसे प्राचीन जैन मूर्ति पटना के लोहनीपुर स्थान से प्राप्त हुई है। यह मूर्ति मौर्यकाल   की है और पटना म्यूजियम में रखी हुई है। इसकी चमकदार पालिस अभी तक भी ज्यों की त्यों बनी है। लाहौर , मथुरा , लखनऊ , प्रयाग आदि के म्यूजियमों में भी अनेक जैन मूर्तियाँ मौजूद हैं। इनमें से कुछ गुप्तकालीन हैं। श्री वासुदेव उपाध्याय ने लिखा है कि मथुरा में २४वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की एक मूर्ति मिली है जो कुमारगुप्त के समय में तैयार की गई थी। वास्तव में मथुरा में जैनमूर्ति कला की दृष्टि से भी बहुत काम हुआ है। श्री रायकृष्णदास ने लिखा है कि मथुरा की शुंगकालीन कला मुख्यत: जैन सम्प्रदाय की है। खण्डगिरि और उदयगिरि में ई. पू. १८८-३० तब क

आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व

 आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी  : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व   (जन्मदिन के 75 वर्ष पूर्ण करने पर हीरक जयंती वर्ष पर विशेष ) #jainism #jainphilosophy #Jainscholar #Jain writer #jaindarshan #Philosophy #Prakrit language #Premiji #Prof Phoolchand jain ( विशेष निवेदन  : 1.प्रो प्रेमी जी की  इस जीवन यात्रा में  निश्चित ही आपका भी आत्मीय संपर्क इनके साथ रहा होगा ,आप चाहें तो उनके साथ आपके संस्मरण ,रोचक वाकिये,शुभकामनाएं और बधाई आप नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखकर पोस्ट कर सकते हैं | 2. इस लेख को पत्र पत्रिका अखबार वेबसाइट आदि प्रकाशन हेतु स्वतंत्र हैं । प्रकाशन के अनन्तर इसकी सूचना 9711397716 पर अवश्य देवें   - धन्यवाद ) प्राच्य विद्या एवं जैन जगत् के वरिष्ठ मनीषी श्रुत सेवी आदरणीय   प्रो.डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी जी श्रुत साधना की एक अनुकरणीय मिसाल हैं , जिनका पूरा जीवन मात्र और मात्र भारतीय प्राचीन विद्याओं , भाषाओँ , धर्मों , दर्शनों और संस्कृतियों को संरक्षित और संवर्धित करने में गुजरा है । काशी में रहते हुए आज वे अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष और विवाह के पचास वर्ष पूरे कर र

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम प्रो अनेकांत कुमार जैन आचार्य – जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-16,Ph  ,9711397716 १९४२ में काशी के भदैनी क्षेत्र में गंगा के मनमोहक तट जैन घाट पर स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय और उसका छात्रावास आजादी की लड़ाई में अगस्त क्रांति का गढ़ बन चुका था |  जब काशी विद्यापीठ पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रावास जबरन खाली करवा दिया गया और आन्दोलन नेतृत्त्व विहीन हो गया तब आन्दोलन की बुझती हुई लौ को जलाने का काम इसी स्याद्वाद महाविद्यालय के जैन छात्रावास ने किया था | उन दिनों यहाँ के जैन विद्यार्थियों ने पूरे बनारस के संस्कृत छोटी बड़ी पाठशालाओं ,विद्यालयों और महाविद्यालयों में जा जा कर उन्हें जगाने का कार्य किया ,हड़ताल के लिए उकसाया ,पर्चे बांटे और जुलूस निकाले |यहाँ के एक विद्यार्थी दयाचंद जैन वापस नहीं लौटे , पुलिस उन्हें खोज रही थी अतः खबर उड़ा दी गई कि उन्हें गोली मार दी गई है,बी एच यू में उनके लिए शोक प्रस्ताव भी पास हो गया | उन्हें जीवित अवस्था में ही अमर शहीद ह