सूफी दर्शन और अहिंसा
प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली
इस्लामधर्म के अन्तर्गत ही सूफी संप्रदाय भी विकसित हुआ है। सुफियों का मानना है कि मुहम्मदसाहब को दो प्रकार के ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हुए थे- एक ज्ञान को उन्होंने कुरान के द्वारा व्यक्त किया और दूसरा ज्ञान, उन्होंने अपने ह्रदय में धारण किया। कुरान का ज्ञान, विश्व के सभी व्यक्तियों के लिए प्रसारित किया गया, जिससे वे सद्ज्ञान के द्वारा अपने जीवन को पावन बनायें। दूसरा ज्ञान, उन्होंने अपने कुछ प्रमुख शिष्यों को ही प्रदान किया। वह ज्ञान अत्यन्त रहस्यमय था, वही सूफीदर्शन कहलाया। कुरान का किताबी ज्ञान तो ‘इल्म-ए-शाफीन’ और हार्दिक ज्ञान ‘इल्म-ए-सिन’ कहलाता है।
सूफीदर्शन का रहस्य है-
परमात्मा- सम्बन्धी सत्य का परिज्ञान करना। परमात्म-तत्त्व की उपलब्धि के लिए सांसारिक वस्तुओं का परित्याग करना। जब परमात्म-तत्त्व की अन्वेषणा ही सूफियों का लक्ष्य रहा है तो हिंसा-अहिंसा का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। हिंसा-अहिंसा का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। हिंसा-अहिंसा का प्रश्न वहीं उत्पन्न होता है, जहाँ किसी के प्रति रागभाव का प्राधात्य हो और किसी के प्रति द्वेष की दावाग्नि सुलग रही हो; वहीं हिंसा का प्राधान्य रहता है।
सूफी सम्प्रदाय
सूफी सम्प्रदाय में प्रेम के आधिक्य पर बल दिया
गया है। वे परमात्मा को प्रियतम मानकर सांसारिक प्रेम के माध्यम से प्रियतम के
सन्निकट पहुंचना चाहते हैं। उनके अनुसार मानवीय प्रेम ही आध्यात्मिक प्रेम का साधन
है। प्रेम परमात्मा
का सार है। प्रेम ही ईश्वर की
अर्चना करने का सर्वश्रेष्ठ और सर्वोंत्कृष्ट रूप है।
इस प्रकार सूफी संप्रदाय में, प्रेम के रूप में अहिंसा की उदात्त भावना पनपी
है। प्रेम के विराट रूप का जो चित्रण सूफी संप्रदाय में हुआ, वह अद्भुत है।
यदि हम सूक्ष्मदृष्टि से देखें तो पाएँगे कि
इस्लामिक विश्वास, वचन और कर्मकाण्ड (Practice), इसके बाहरी रूप
हैं, जबकि इसका आंतरिक
रूप सूफीमत है; अतः जनसाधारण का
नीतिगत विचार भी सामाजिक और व्यवाहारिक नियमों के अंतर्गत पाया जाता है, पर इसका आंतरिक रूप सूफी विचारों में ही देखा
जाता है।
जहाँ तक सूफी मत का प्रश्न है, उसमें आत्म-विकास (Development of the Soul) का पाठ सिखाया गया
है। इसमें बहुत ऊँचे आंतरिक आचार की बातें बताई गयी हैं। इस्लाम के अनुसार सच्चा
जेहाद तो अपनी शारीरिक तृष्णाओं अथवा वासनाओं के विरुद्ध करना चाहिए। अध्यात्म की
दृष्टि से सूफी अहिंसा के अधिक करीब दिखायी देते हैं।
(लेखक की पुस्तक अहिंसा दर्शन के अंश )
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