एंटी वायरस है क्षमाभाव
जैन
परंपरा में दशलक्षण पर्व पर दशधर्मों की आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टि से
आराधना करने के अनंतर आत्मा समस्त बुराइयों को दूर करके परम पवित्र और शुद्ध
स्वरूप प्रगट कर लेती है तब मनुष्य अंदर से इतना भीग जाता है कि उसे अपने पूर्व
कृत अपराधों का बोध होने लगता है । अपनी भूलें एक एक कर याद आने लगती हैं । लेकिन
अब वह कर क्या सकता है ? काल के
पूर्व में जाकर उनका संशोधन करना तो अब उसके वश में नहीं है । अब इन अपराधों का
बोझ लेकर वह जी भी तो नहीं सकता । जो हुआ सो हुआ - लेकिन अब क्या करें ?
कैसे
अपने अपराधों की पुरानी स्मृतियां मिटा सकूं जो मेरी वर्तमान शांति में खलल डालती
हैं ।
ऐसी
स्थिति में तीर्थंकर भगवान् महावीर ने एक सुंदर आध्यात्मिक समाधान बतलाया -
"पडिक्कमणं " (प्रतिक्रमण)
अर्थात् जो पूर्व में तुमने अपनी मर्यादा का अतिक्रमण किया था उसकी स्वयं
आलोचना करो और वापस अपने स्वभाव में आ जाओ । यह कार्य तुम स्वयं ही कर सकते हो ,
कोई
दूसरा नहीं ।
प्रतिक्रमण
करके तुम अपनी ही अदालत में स्वयं बरी हो सकते हो | तुम उन अपराधों को दुबारा नहीं
करोगे ऐसा नियम लोगे तो वह " पचक्खाण " अर्थात् प्रत्याख्यान हो जाएगा । प्रत्याख्यान शब्द का
अर्थ है ज्ञान पूर्वक त्याग । जो जाने अनजाने किया उसका प्रतिक्रमण और आगे से नहीं
करेंगे उसका प्रत्याख्यान ।भगवान् महावीर ने प्रायश्चित करने को आत्म शुद्धि का
सबसे बड़ा कारण कहा ।
भाद्र
शुक्ला अनंत चतुर्दशी के बाद आश्विन कृष्णा एकम्
को क्षमावाणी पर्व विश्व मैत्री दिवस के रूप
में इसीलिए
मनाया जाता है कि हम सबसे पहले अपने प्रति अन्य से हुए अपराधों के लिए उन्हें
क्षमा का दान करके भार मुक्त हो जाएं और फिर उनके प्रति अपने द्वारा किए गए
अपराधों की क्षमा याचना करके स्वयं भी शुद्ध हो जाएं और अन्य को भी भार मुक्त होने
का अवसर प्रदान करें ।
अव्वल
तो किसी से बैर धारण करना ही नहीं चाहिए और यदि हो गया है तो उसे ज्यादा दिन संभाल
कर नहीं रखना चाहिए । ये बैर एक ऐसा वायरस है जो आपकी आत्मा के सारे सॉफ्टवेयर और
सिस्टम को करप्ट कर देगा । इसलिए क्षमा का एंटीवायरस अपने भीतर हमेशा इंस्टॉल रखें
और बीच बीच में बैर का वायरस रिमूव करते रहें ।
किसी
जीव के लिए यदि दिल में बैर है ।
तो
मंदिर हमारे लिए सिर्फ एक सैर है ।।
संवाद
हीनता जितना बैर को बढ़ाती है उतना कोई और नहीं । अतः चाहे कुछ भी हो जाए संवाद का
मार्ग कभी भी बंद न होने दें । संवाद बचा रहेगा तो सभी संभावनाएं जीवित रहेंगी । इसलिए
सिर्फ सोशल मीडिया पर मैसेज न करें । अपनी वाणी से साक्षात् या फोन करके कहें तब
सच्ची क्षमावाणी होगी अन्यथा इसका नाम बदल जाएगा और ' क्षमा
मेसेज पर्व '
कहना
पड़ेगा और सिर्फ कोरा कहें ही नहीं बल्कि हृदय से मांगें तभी क्षमा दाता को पानी
पानी कर पाएंगे और उस क्षमा नीर में स्वयं भी भीग पाएंगे ।
Prof Anekant Kumar Jain
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