वास्तव में अपना आत्मा ही गुरु है'
- डॉ अनेकान्त कुमार जैन
स्वस्मिन्सदाभिलाषित्वादभीष्टज्ञापकत्वत:।
स्वयं हि प्रयोक्तृत्वादात्मैव गुरुरात्मन:।।
-इष्टोपदेश,34
वास्तव में आत्मा का गुरु आत्मा ही है, क्योंकि वही सदा मोक्ष की अभिलाषा करता है, मोक्ष सुख का ज्ञान करता है और स्वयं ही उसे परम हितकर जान उसकी प्राप्ति में अपने को लगाता है।
नयत्यात्मानमात्मैव जन्म निर्वाणमेव च। गुरुरात्मात्मनस्तस्मान्नान्योऽस्ति परमार्थत:
।स.श.७५।
आत्मा ही आत्मा को देहादि में ममत्व करके जन्म मरण कराता है, और आत्मा ही उसे मोक्ष प्राप्त कराता है। इसलिए निश्चय से आत्मा का गुरु आत्मा ही है, दूसरा कोई नहीं।
आत्मात्मना भवं मोक्षमात्मन: कुरुते यत:। अतो रिपुर्गुरुश्चायमात्मैव व स्फुटमात्मन:।।
ज्ञानार्णव/३२/८१
यह आत्मा अपने ही द्वारा अपने संसार को या मोक्ष को करता है। इसलिए आप ही अपना शत्रु और आप ही अपना गुरु है।
निर्जरादिनिदानं य: शुद्धो भावश्चिदात्मन: ।
परमार्ह: स एवास्ति तद्वानात्मा परं गुरु:।।
-पं.ध./उ./६२८
वास्तव में आत्मा का शुद्धभाव ही निर्जरादि का कारण है, वही परमपूज्य है, और उस शुद्धभाव से युक्त आत्मा ही केवल गुरु कहलाता है।
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