सिद्धांतों के तलस्पर्शी ज्ञाता :आदरणीय गुरु जी
आदरणीय गुरु जी प्रो अशोक कुमार जैन जी से मेरा परिचय तो बहुत पुराना था ,क्यों कि पिताजी प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी के साथ स्याद्वाद महाविद्यालय में बाल्यकाल से ही आना जाना रहा और वहाँ के लगभग सभी स्नातक मेरे घर पर पिताजी से मिलने आते ही थे । इसके अलावा अनेक संगोष्ठियों में पिताजी मुझे अपने साथ ले जाते थे तब मैं वहाँ भी आपको सुनता था और प्रभावित होता था ।
1996 में जब मुझे आपके सान्निध्य में जैन विश्व भारती संस्थान (मानित विश्वविद्यालय) लाडनूं के जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग में अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तब आपकी प्रज्ञा से विशेष परिचय प्राप्त हुआ ।
मैं आपके जैन सिद्धांतों के तलस्पर्शी ज्ञान से बहुत प्रभावित हुआ । आपके व्याख्यान विशिष्ट रूप से मूल गाथा और श्लोक के उद्धरण के साथ होते थे । मुझे आपकी स्मरण शक्ति पर भी बहुत आश्चर्य होता था । आज भी आप उसी धारा में अत्यंत प्रभावक शास्त्रीय व्याख्यान करते हैं तो हमें गर्व होता है ।
मैं छात्रावस्था में ही आपके साथ कई सेमिनारों में भी गया । मेरे शोधकार्य में अनेक विषयों को सुलझाने में आपने आत्मीयता पूर्वक बहुत मदद की ।
एक बार मेरे अनुरोध पर आपने टोडरमल स्मारक जैन सिद्धांत महाविद्यालय,जयपुर में अनेकांतवाद पर विशिष्ट व्याख्यान दिया तब वहां के सभी छात्र सुनकर दंग रह गए । आप वर्तमान में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वतपरिषद के अध्यक्ष हैं ।
आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के जैन बौद्ध विभाग से सेवा निवृत्त होने जा रहे हैं ।
हमें विश्वास है कि इसके अनंतर आप और दुगने वेग से श्रुत सेवा करने लगेंगे ।
आपका आशीर्वाद हम विद्यार्थियों पर हमेशा बना रहे - यही भावना है ।
प्रो अनेकांत कुमार जैन
नई दिल्ली
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