हम सब मरे हुए हैं
सच तो यह है
कि
हम सब मरे हुए हैं
छद्म अध्यात्म की आड़ लेकर
कर्तव्य से दूर खड़े हैं
खुद को सुरक्षित करके
वीरता का बखान करते
डरे हुए हैं
सच तो यह है
कि
हम सब मरे हुए हैं
सीना तानने की जगह
बच निकलने में
लगे हुए हैं
हर जगह स्वार्थ और
कहते हैं परमार्थ
भूल गए जीवन जीने का अर्थ
बस अपना उल्लू सीधा
करने में लगे हुए हैं
डरे हुए हैं
सच तो यह है कि
हम सब मरे हुए हैं ।
© कुमार अनेकांत
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