*सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार*
*डॉ. अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली*
वर्तमान में जितनी तीव्रता से सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है उससे कहीं ज्यादा तीव्रता से उसका विवेकहीन दुरुपयोग भी बढ़ा है । इसलिए अब इससे संबंधित अपराधों के लिए कानून भी निर्मित हो गए हैं तथा सजाएं भी मिल रही हैं जो कि कुछ समय पहले तक संभव नहीं थी ।
आज यह आवश्यक हो गया है कि सोशल मीडिया पर कानून के साथ साथ सोशल कंट्रोल भी हो । हमें वर्तमान के अनुरूप अपनी प्रासंगिकता स्थापित करनी पड़ती है ।
कॅरोना काल में लॉक डाउन के कारण ज़ूम ,गूगल मीट,जिओ मीट, मीटिंग एप्प आदि का उपयोग उन लोगों ने भी सीखा जिन्हें मोबाइल लैपटॉप छूना भी पसंद न था । यूट्यूब,व्हाट्सएप,फ़ेसबुक,टेलीग्राम,इंस्टाग्राम,ट्विटर आदि जनसंचार के सबसे ज्यादा माध्यम बने हुए हैं ।
मोबाइल सभी के अधिकार और पहुंच में होने से आज इस पर कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर कैसा भी लिख और लिखवा सकता है । कितने ही विषयों में ऐसा लगता है कि बंदरों के हाथों में उस्तरा लग गया है ।
इसके लिए अब हमें सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार के नियम स्थापित करने होंगे और उनका कड़ाई से पालन भी करना और करवाना होगा ।इस संबंधी विवेक जागृत करना होगा ।
एक श्रावक को प्रत्येक पोस्ट पर अनेकान्त दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए । वर्तमान में फ़ोटो या वीडियो बनाना, उन्हें एडिट करना , ऑडियो रिकॉर्डिंग को मनोनुकूल सेट करना आदि बहुत ही सरल हो गया है तथा हम आप भले न कर पाएं पर आज का बच्चा बच्चा कर लेता है ।
सबसे पहली बात तो किसी भी पोस्ट पर चाहे वह कितनी भी विचित्र हो एक बार में विश्वास नहीं करना चाहिए । उन सूचनाओं का मिलान अधिकृत अखबार की सूचनाओं से अवश्य करना चाहिए क्यों कि प्रिंट मीडिया अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिक होता है ।
जब हमें पता है कि प्रत्येक राजनैतिक और सामाजिक संस्थाओं ने एक सोशल मीडिया विंग सिर्फ मंडन खंडन के लिए ही बनवा रखी है तथा उसमें पेड कर्मचारी काम करते हैं तो हम इन बहकावों में क्यों आते हैं ?
आज किसी को भी बदनाम करना, किसी के भी ऊपर कोई आरोप लगाना भी बहुत आसान हो गया है आज उस पर लग रहा है कल आप पर भी लग सकता है ।
अतः बहुत विचलित न होकर साम्य परिणामों से *जानो और देखो रे संसार* की नीति अपनाना बहुत आवश्यक है । मुझे स्वयं कभी किसी पोस्ट पर इस बात का अफसोस कभी नहीं हुआ कि मैंने इसे फारवर्ड क्यों नहीं किया ? बल्कि कभी कभी कई पोस्टों पर यह पछतावा जरूर हुआ कि इसे भावुकता में fwd क्यों किया ?
हम
राजनीति में
कभी कभी आपसी झगड़ों को बिना समझे किसी एक का पक्ष लेकर व्यर्थ का राग द्वेष कर लेते हैं और बाद में पता चलता है कि वे तो आपस में अंदर से मिले हुए थे या बाद में मिल गए या जिसका हम पक्ष ले रहे थे असली दोषी वही था और हम व्यर्थ ही फंसे ।
सोशल मीडिया पर प्रायोजित झगड़े बड़े बड़े बुद्धिजीवी,व्यापारी,राजनीतिज्ञ बिना अपना नाम आये करवाते रहते हैं और भावुक जनता को अपने स्वार्थ के लिए हथियार बनाते रहते हैं अतः हमें हमेशा इस बात से बचना चाहिए कि कहीं कोई हमारी श्रद्धा और विश्वास को हथियार की तरह इस्तेमाल तो नहीं कर रहा ।
*बाद में वे तो एक हो जाएंगे लेकिन इस वजह से हम जरूर बंट जाएंगे।*
हमारी भावनाओं से खेलने वाले हमारे सबसे बड़े शत्रु होते हैं क्यों कि ये हमें कुछ भी निर्णय करने का मौका नहीं देते ।
अभी आरम्भ में सोशल मीडिया से उत्पन्न होने वाली तमाम राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक समस्यायों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित 5 नियमों का सभी श्रावकों को अवश्य पालन करने चाहिए -
१. बहुत जरूरी होने पर मैं मात्र आगम सम्मत पुष्ट और प्रामाणिक ज्ञानवर्धक लेख,कविता,भजन,प्रवचन ,चित्र,वीडियो आदि ही प्रेषित या अग्रसारित करूँगा ।( क्यों कि यह कार्य आप यदि नहीं भी करें तो धर्म की कोई बहुत बड़ी हानि नहीं है और करते हैं तो बहुत बड़ा उपकार नहीं हैं)
२.मैं धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत झगड़ों को मीडिया पर सार्वजनिक नहीं करूंगा । ( यह आपको अनर्थदण्ड से बचाएगा )
३. मैं किसी भी मुद्दे पर अनावश्यक टीका टिप्पणी नहीं करूंगा और यदि कहीं बहुत आवश्यक हो तो विनम्रता से, भाषा संयम पूर्वक शालीनतापूर्ण कम शब्दों में अपनी बात कहूंगा । किसी पर अपमान जनक टिप्पणी नहीं करूंगा ।( यह आपकी छवि धूमिल होने से बचाएगा)
४. मैं ऐसे अनावश्यक चित्र और वीडिओ न स्वयं बनाऊंगा,न बनवाऊंगा और न अग्रसारित कर उसकी अनुमोदना करूँगा जो हमारे धर्म और समाज की शुद्ध छवि को जरा सा भी दूषित करने वाला हो । ( यह आपको पाप के कृत कारित अनुमोदना के दोष से बचाएगा)
५. मैं सप्ताह में कम से कम एक दिन सोशल मीडिया संबंधी उपवास रखूंगा और उसे बंद रखूंगा ।( यह आपको तनाव,बैचेनी आदि से बचाएगा)
(दिसंबर 2020 में विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित आलेख)
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