*आचार्य महाश्रमण ने कुछ गलत नहीं कहा*
*प्रो अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली*
अभी कुछ दिनों से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्य महाश्रमण जी का एक प्रवचन का वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल किया जा रहा है जिसमें उन्होंने तेरापंथ धर्म संघ के श्रावकों को यह हिदायत दी है कि कन्यायों का विवाह तेरापंथ में ही करना चाहिए ।
इस प्रवचन को लेकर असहमति पूर्वक तरह तरह के मैसेज भी वायरल किये जा रहे हैं ।
मैंने उस प्रवचन क्लिप को बहुत ध्यान से सुना है । मुझे लगता है कि हमें पहले पूरा प्रवचन सुनना चाहिए तथा उनका अभिप्राय समझना चाहिए ।
किसी भी धर्म,सम्प्रदाय,पंथ,जाति या समुदाय को अपनी संस्कृति और विचारधारा के संरक्षण की चिंता सहज रहती ही है ।
उनका अभिप्राय भी कुछ इसी तरह का है । मुझे नहीं लगता वे किसी कट्टरता की बात कर रहे हैं । बल्कि प्राथमिकता की बात कर रहे हैं ।
ऐसा सभी लोग करते हैं और करना भी चाहिये ।
प्रत्येक जैन मां बाप अपनी बेटा या बेटी का विवाह जानबूझ कर अन्य पंथ ,धर्म में नहीं करते हैं ।
प्रथम तो आज की 90% पीढ़ी इन विषयों में आपकी सुनती ही नहीं है आप चाहे जितना राग अलाप लो उनके मंसूबे आपके किसी आग्रह की परवाह नहीं करते हैं ।
फिर भी जहाँ थोड़ा बहुत संभव है वहां माता पिता निम्नलिखित क्रम से विवाह संबंध खोजते हैं -
1. अपने जाति पंथ,सम्प्रदाय ,और धर्म का हो तथा कुलीनता ,समृद्धि और चरित्र निष्ठता हो ।
यदि ऐसा न हो पाए तो ...
2. पंथ न सही सम्प्रदाय और जाति तो अपनी हो ।
3.पंथ और संप्रदाय न हो सके तो कम से कम जाति और धर्म तो अपना हो ।
4. पंथ ,सम्प्रदाय ,जाति न हो सके तो कम से कम धर्म तो अपना हो । णमोकार तो पढ़े ।
4.इनमें से कुछ भी न हो सके तो कम से कम शाकाहारी तो हो ।
5. वो भी न हो पाए तो कम से कम हिंदू संस्कृति तो हो ।
और कुलीनता ,समृद्धि और चरित्र निष्ठता से कोई समझौता नहीं करना चाहिए ।
ये क्रम सभी सोचते हैं ,और सोचना भी चाहिए । सिर्फ मां बाप को ही नहीं बच्चों को भी ।
*हम समन्वय के पक्षधर हैं विलय के नहीं*
और यदि यह नहीं संभाला गया तो कुछ भी नहीं बचेगा ।
जय जिनेन्द्र
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