*कषाय नेतृत्व का आवश्यक अंग है ?*
या अनिवार्य योग्यता ?
मंद कषाय वाले को कोई नेतृत्व करने नहीं देता फिर तीव्र कषाय वाला जैसा नेतृत्व करता है वह सभी को न चाहते हुए भी स्वीकारना होता है ।
मनमोहन सिंह जी जैसे विरले ही होते हैं जो बिना चुनाव लड़े नेतृत्व कर लेते हैं और वो भी दो दो बार ।
अब
नेतृत्व के लिए लड़ना अनिवार्य है और बिना तीव्र परिणामों के ,बिना अशुभ कर्मों के और बिना गुंडा गर्दी के कोई लड़ नहीं सकता ।
चुनाव में कई किस्म के कषाय से भरे लोग नामांकन भरते हैं उनमें जो तीव्र और चतुर कषाय का धारक होता है वह जीत जाता है । भद्र परिणामी तो नामांकन करने से भी डरता है ।
मतदाता की मजबूरी है कि उसे
चार गुंडों में से एक गुंडे का चयन करना है क्यों कि उम्मीदवार ही वही हैं । सो उन चार में से अपने स्वार्थ के अनुकूल अपनी धर्म ,जाति का या जो गुंडा हमारा कुछ मतलब साध सकता हो उसे हम वोट दे देते हैं । बस ।
यही यथार्थ है ।
मंद परिणामी मोक्षमार्ग का नेतृत्व इसलिए कर लेते हैं क्यों कि वहां उन्हें वोट नहीं चाहिए, कोई एक ही कुर्सी नहीं है , कोई प्रतियोगिता नहीं है ।
यहां तो कोई वोट न भी दे और परिणाम शुद्ध रहें तो भी सरकार तो अपनी ही बनती है ।
डॉ अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली
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