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हमारा ये दुष्कृत्य भी मिथ्या हो

*हमारा ये दुष्कृत्य भी मिथ्या हो* ... ✔️सही प्रयोग -  मिच्छामि दुक्कडं / मिच्छा मे दुक्कडं ✖️गलत प्रयोग - मिच्छामी दुक्कडम् / मीच्छा मे दुक्कडंम्/ मिच्छा मे दुक्कडम  *प्राकृत सीखें आगम सीखें* निवेदक -  प्रो डॉ. अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली

जबाब देह और जिम्मेदार भी बने जैन मीडिया

  जबाब देह और जिम्मेदार भी बने जैन मीडिया प्रो डॉ.अनेकांत कुमार जैन,संपादक –पागद भासा ,नई दिल्ली जैन मीडिया में पहले सिर्फ प्रिंट मीडिया ही हुआ करता था जो विद्वान पत्रकारों के द्वारा संचालित और सम्पादित होता था ....इसलिए उसकी जबाबदेही और जिम्मेदारी स्वयमेव तय हो जाती थी | आज सोशल मीडिया और इन्टरनेट चैनल इतने अधिक सस्ते और सुगम हो गए हैं कि इसका सञ्चालन वे लोग भी करने लगे हैं जिन्हें जैन धर्म दर्शन संस्कृति और पत्रकारिता का कोई विशेष अनुभव और ज्ञान नहीं है अतः उनकी जबाब देहि और जिम्मेदारी संदेह के घेरे में है | जैसे साधु संघों और समाज के अप्रिय प्रसंगों को भी प्रेस आजादी और सुधारवादी आन्दोलन के तहत नमक मिर्च लगाकर सब्सक्राइबर बढाने आदि के लिए उछाल तो देते हैं...किन्तु दो चार माह मामला शांत होने के बाद भी उनके विडियो हमेशा के लिए इन्टरनेट पर डले रहते हैं जो दूसरे ईर्ष्या करने वाले सम्प्रदायों के लिए हमेशा के लिए एक अच्छे खासे सबूत हो जाते हैं और श्रमण संस्कृति की महान साधना की परंपरा पर हमेशा के लिए अंकुश लगाते रहते हैं | आम मीडिया और जैन मीडिया में सबसे बड़ा फर्क यही हो सकता ...

जैन जनसंख्या बढ़ाने के कुछ उपाय

*जैनों की जनसंख्या बढ़ाने के कुछ उपाय* प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली  drakjain2016@gmail.com लगभग 2015 में मैंने काफी अनुसंधान और चिंतन पूर्वक एक शोध निबंध ' कैसे बढ़ेगी जैनों की घटती जनसंख्या' इस विषय पर  लिखा था जिसे कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी किया था आज भी यह निबंध मेरे ब्लॉग www.anekantkumarjain.blogspot.in पर पढ़ा जा सकता है और इससे संबंधित व्यख्यान को मेरे चैनल https://youtu.be/YAljR9_qpBo पर विस्तार से सुना जा सकता है ।  इसी बीच कई लोगों के फोन भी मेरे पास इस विषय पर चिंतन करने हेतु आए तथा वर्तमान में कई संस्थाएं और व्यक्ति इस विषय पर गंभीरता से चिंतन कर रहे हैं और कुछ ना कुछ गतिविधियां भी संचालित की है अतः इसी परिपेक्ष्य में मैं बिंदुवार रूप से कुछ उपाय आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूं मेरा विचार है कि यदि इन बिंदुओं के आधार पर कोई ठोस कार्य योजना दीर्घ काल की अवधि तक संचालित की जाए तो निश्चित ही लगभग 25 वर्षों बाद जैनों की जनसंख्या एक अच्छा खासा उछाल आ सकता है । जनसंख्या बढ़ाने जैसा कार्य अल्प अवधि में संभव नहीं है - 1. सभी जै...

क्षमा याचना

क्षमा आत्मा का स्वभाव है किन्तु मिथ्यात्व आदि के कारण ये आत्मा क्रोध आदि विभाव रूप परिणमन करने से हो सकता है आपका दिल भी दुखा हो और हमें यह पता भी ना हो ।मैं प्रयास करूँगा जितना हो सके अपनी कषायों पर काबू रख सकूँ और दुबारा आपको कोई भी कष्ट न दूँ ।पर इस बार तो आपको मुझे क्षमा करना ही पड़ेगा ताकि मुझे सँभलने का अवसर मिल सके ।आपके विशाल ह्रदय की सम्भावना पर ही मैं आपसे क्षमा याचना कर रहा हूँ और आशा करता हूँ कि आप अपनी समता का परिचय अवश्य देंगे । आपका अपना - डॉ अनेकांत कुमार जैन , रूचि जैन ,सुनय,अनुप्रेक्षा ,नई दिल्ली

मैं अपने दसलक्षण जानना चाहता हूँ

डिजिटल नौ बाढ़ की भी जरूरत

अब नई डिजिटल नौ बाढ़ की भी जरूरत है .... १. यू ट्यूब पर सिर्फ धार्मिक,ज्ञानवर्धक और सूचनाएं ही देखूंगा । २. किसी स्त्री या पुरुष से ऑनलाइन अनावश्यक चैटिंग नहीं करूंगा । ३. रागवर्धक पोस्ट नहीं डालूंगा । ४. पोर्न न देखूंगा , न दिखाऊंगा और न अनुमोदना करूंगा । ५. व्यर्थ ही किसी की DP zoom करके नहीं देखूंगा । ६.  किसी के गोपनीय प्रसंगों का चित्र नहीं लूंगा और न ही उसे वायरल करूंगा । ७.अपनी ओरिजनल फ़ोटो को एडिट करके श्रृंगार भाव प्रेरक खूबसूरत नहीं बनाऊंगा । ८. ऐसा किसी संदेश,चित्र या वीडियो को अग्रसारित नहीं करूंगा जिससे किसी के सम्मान या शील की हानि हो । ९. ऑनलाइन मीटिंग के दौरान कान में ब्लू टूथ  संगीत🎶 लगाकर मीटिंग सुनने का नाटक नहीं करूंगा । डॉ अनेकान्त जैन,नई दिल्ली 19/09/2021 उत्तम ब्रह्मचर्य

प्राकृत पत्रकारिता : एक अनुभव

जिस प्रकार *उदंत मार्तण्ड* हिंदी का प्रथम समाचार पत्र माना जाता है जो कि जुगलकिशोर सुकुल ने 30 मई 1826 को कलकत्ता से पहली बार प्रकाशित किया था । संस्कृत भाषा का प्रथम अखबार *सुधर्मा* श्री के.वी.संपत कुमार ने 14 जुलाई 1970 को मैसूर से प्रारम्भ किया था ।  उसी प्रकार प्राकृत भाषा में प्रकाशित होने वाला  *पागद भासा* नामक अखबार अब तक का प्रथम प्रयास है । यह भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय में प्राकृत भाषा के प्रथम समाचार पत्र के रूप में पंजीकृत हुआ है । आरम्भ में भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय ने इसे DELPRA00001जैसा Title code जारी किया ,क्यों कि उनके रिकॉर्ड के अनुसार इस भाषा में आज तक कोई भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुआ था । मीडिया के क्षेत्र में भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत का प्रयोग ,उसमें समाचार लेखन अब तक की सबसे पहली घटना है । यही कारण है कि विद्वानों के बीच प्राकृत के विभिन्न भेदों के क्रम में अब मीडिया प्राकृत की भी चर्चा होने लगी है । इस पत्रिका का पहला प्रवेश अंक 13 अप्रैल 2014 में महावीर जयंती के दिन कुन्दकुन्द भारती ,नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह म...

दसधम्मसारो (दशधर्मसार) - प्रो अनेकान्त कुमार जैन (प्रकाशित कृति)

Notice- This published book is the collection of many articles which has been published in different newspapers time to time. This is for public domain , welfare and for religious purpose . Any news paper magazine can publish this matter with seqence during the dashlakshan parva upto the kshamavani parva (means Panchmi to Chaturdashi and on ekam.) with the name of author Prof.Dr Anekant Kumar Jain,New Delhi without any cost . No changes are allowed in the matter . दसधम्मसारो (दशधर्मसार )    प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन आचार्य -जैन दर्शन विभाग  श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय  नई दिल्ली -११०१६  Phone 9711397716 anekant76@gmail.com  प्रकाशक जिन फाउंडेशन,नई दिल्ली सन - 2020 भूमिका   आत्मानुभूति  का महापर्व है दशलक्षण जैन परंपरा के लगभग सभी पर्व हमें सिखाते हैं कि हमें संसार में बहुत आसक्त होकर नहीं रहना चाहिए । संसार में रहकर भी उससे भिन्न रहा जा सकता है जैसे कमल कीचड़ में रहकर भी उससे भिन्न होकर खिलता है । यह कार्य अनासक्त भाव स...

इस बार मैं अपने दशलक्षण जानना चाहता हूँ

*इस बार मैं अपने दशलक्षण जानना चाहता हूं* *प्रो डॉ अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली* drakjain2016@gmail.com 9/9/2021 दशलक्षण महापर्व आत्मानुसंधान का महापर्व है किंतु जाने अनजाने मैं इन महत्त्वपूर्ण दिनों को भी मात्र धार्मिक मनोरंजनों में व्यतीत कर देता हूँ ।  कई स्कूल दिखा कर  बच्चों से ही पूछा जाय कि तुम्हारा प्रवेश किस स्कूल में करवाया जाए तो वह उस स्कूल का नाम बताता है जहाँ झूले और खिलौने ज्यादा थे और ज्यादा अच्छे थे । प्राइमरी कक्षा का कोई भी बच्चा पढ़ने के लिए स्कूल का चयन नहीं करता है । लेकिन हम बच्चे को स्कूल झूला झूलने और खिलौने खेलने के लिए नहीं भेजते हैं । हमारा उद्देश्य कुछ और होता है । खिलौने तो घर पर भी बहुत हैं और झूले तो पार्क में भी हैं। वैद्य जी चाशनी के साथ दवाई खाने को देते हैं , उनका उद्देश्य दवाई देना है न कि चाशनी चटाना । अब किसी का अभ्यास कड़वी दवाई खाने का नहीं है और उपचार के लिए वह दवा बहुत आवश्यक है तो मजबूरी में चाशनी साथ में देना पड़ती है ताकि कड़वापन सहन हो जाये । चाशनी दवा के प्रभाव को कम ही करती है किंतु और कोई उपाय भी तो नज़र नहीं आता अतः देनी ही पड़ती ह...

दशलक्षण से पूर्व एक वार्तालाप

*दशलक्षण से पूर्व एक वार्तालाप* प्रो अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली भक्त : भाई साहब ,इस बार दसलक्षण पर्व पर कौन कौन से कार्यक्रम हैं ?  अध्यक्ष  :  इस बार प्रातः प्रक्षाल पूजन  के अनन्तर दसलक्षण विधान का भी आयोजन है । भक्त : वाह ! बहुत बढ़िया , और शाम को ?  अध्यक्ष : शाम को सामूहिक आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम , बस । भक्त :  बस ,और शास्त्र सभा, प्रवचन ?  अध्यक्ष :  अब कोरोना के नियमों के कारण सभा करना ठीक नहीं है । संक्रमण का डर है । भक्त : भाई साहब , संक्रमण का डर तो प्रातः भीड़ में भी है । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी है । अध्यक्ष : है तो पर जितना बचा जा सके ,उतना तो बचो । वैसे भी , उसके लिए बाहर से पंडित जी को बुलाना पड़ेगा , उनके रहने खाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी । आवागमन का व्यय देना पड़ेगा ...काफी झंझट है । भक्त : एक तो कई वर्षों से दोपहर का तत्त्वार्थसूत्र का पाठ और प्रवचन बंद है और अब किसी न किसी बहाने शाम के प्रवचन भी बंद हो जायेगे । फिर हम जिनवाणी कहाँ सुनेंगे ?  अध्यक्ष : अरे ! उसकी क्या कमी है ? टीवी , यूट्यूब,ज़ूम पर रात दिन आ तो रहे ह...

आचार्य कुन्दकुन्द की अनिवार्य दिगम्बरत्व दृष्टि

आचार्य कुन्दकुन्द की अनिवार्य दिगम्बरत्व दृष्टि डॉ अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली जस्स वयणं सुणिदूण , सेआम्बरो वि हवदि दिअम्बरो। तं जययपुज्जं णमो दिअम्बरायरियो कुण्डकुण्डस्स।। जिनकी दिव्य वाणी को सुनकर  श्वेताम्बर भी (अपना मताग्रह त्यागकर) दिगंबर  हो रहे हैं ,उन जगत पूज्य महान दिगंबर जैन आचार्य कुन्दकुन्द को मेरा नमस्कार है । दिगंबर मुनि दशा के बिना मुक्ति संभव नहीं है । इस बात की घोषणा आचार्य कुन्दकुन्द ने जिस अंदाज में की है वह उनकी मूल आम्नाय को स्वयमेव ही प्रगट करता है । आचार्य कुंदकुंद अष्टपाहुड ग्रंथ में कहते हैं कि - णवि सिज्झइ वत्थ धरो, जिणसासणे जइ वि होइ तित्थयरो। णग्गो वि मोक्ख मग्गो, सेसा उम्मग्गया सव्वे॥  (सूत्र पाहुड -23)   अर्थात् - जिनशासन में ऐसा कहा है कि- वस्त्रधारी यदि तीर्थंकर भी हो तो वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। एक नग्न वेष ही मोक्षमार्ग है बाकी सब उन्मार्ग हैं।  साथ ही वे यह भी कहते हैं कि अंतरंग निर्मलता रहित नग्नता भी मोक्ष का कारण नहीं है। णग्गो पावइ दुक्खं णग्गो संसार सायरे भमइ। णग्गो न लहइवोहिं जिण—भावण—वज्जिओ सुइदं।। (भावपाहुड-68) जिन रूप...